freedom struggle of india essay in hindi

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

भारत की आजादी का इतिहास, 1857 का विद्रोह, स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी का योगदान, स्वतंत्रता संग्राम की समयरेखा.

सालस्थानघटनानायक (स्वतंत्रता सेनानी)
1857बरहमपुर19वीं इन्फंट्री के सिपाहियों का राइफल अभ्यास से इंकार।
1857मेरठसैनिक विद्रोह
1857अंबालाअंबाला में गिरफ्तारी
1857बेरकपोरमंगल पांडे का ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला और बाद में मंगल पांडे को फांसी दे दी गयी थी. मंगल पांडे
1857लखनउलखनउ में 48वां विद्रोह
1857पेशावरमूल सेना का निरस्त्रीकरण
1857कानपुरदूसरी केवलरी का विद्रोह सतीचैरा घाट नरसंहार बीबीघर में महिलाओं और बच्चों का नरंसहार
1857दिल्लीबदली-की-सेराई की लड़ाई
1857झांसीरानी लक्ष्मीबाई का दत्तक पुत्र के हकों को नकारे जाने के प्रति विरोध प्रदर्शन और हमलावर सेनाओं से झांसी को बचाने का सफल प्रयासरानी लक्ष्मीबाई
1857मेरठसिपाहियों और भीड़ द्वारा 50 यूरोपियों की हत्या
1857कानपुरकानपुर की दूसरी लड़ाईः तात्या टोपे का कंपनी की सेना को हरानातात्या टोपे
1857झेलमदेसी सेना द्वारा ब्रिटिश विरोधी गदर
1857गुरदासपुरत्रिम्मू घाट की लड़ाई
1858कलकत्ताईस्ट इंडिया कंपनी का खात्मा
1858ग्वालियरग्वालियर की लड़ाई जिसमें रानी लक्ष्मीबाई ने मराठा बागियों के साथ सिंधिया शासकों के कब्जे से ग्वालियर छुड़ायारानी लक्ष्मीबाई
1858झांसीरानी लक्ष्मीबाई की मौतरानी लक्ष्मीबाई
1859शिवपुरीतात्या टोपे कब्जे में और उनकी हत्यातात्या टोपे
1876 महारानी विक्टोरिया भारत की साम्राज्ञी घोषित
1885बॉम्बेए ओ हयूम द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठनए ओ हयूम
1898 लॉर्ड कर्जन वायसराय बने
1905सूरतस्वदेशी आंदोलन शुरु
1905बंगालबंगाल का विभाजन
1906ढाकाऑल इंडिया मुस्लिम लीग का गठनआगा खान तृतीय
1908 30 अप्रेलः खुदीराम बोस को फांसी
1908मांडलेराजद्रोह के आरोप में तिलक को छह साल की सजाबाल गंगाधर तिलक
1909 मिंटो-मार्ले सुधार या इंडियन काउंसिल एक्ट
1911दिल्लीदिल्ली दरबार आयोजित। बंगाल का विभाजन रद्द
1912दिल्लीनई दिल्ली भारत की नई राजधानी बना
1912दिल्लीलॉर्ड हार्डिंग की हत्या का दिल्ली साजिश मामला
1914 सेन फ्रांसिसको में गदर पार्टी का गठन
1914कोलकाताकोमारगाता मारु घटना
1915मुंबईगोपाल कृष्ण गोखले की मौत
1916लखनउलखनउ एक्ट पर हस्ताक्षरमोहम्मद अली जिन्ना
1916पुणेतिलक द्वारा पुणे में पहली इंडियन होम रुल लीग का गठनबाल गंगाधर तिलक
1916ंमद्रासएनी बेसेंट द्वारा होम रुल लीग का नेतृत्वएनी बेसेंट
1917चंपारणमहात्मा गांधी द्वारा बिहार में चंपारण आंदोलन शुरुमहात्मा गांधी
1917 राज्य सचिव एडविन शमूएल मोंटेगू द्वारा मोंटेगू घोषणा
1918चंपारणचंपारण अगररिया कानून पास
1918खेड़ाखेड़ा सत्याग्रह
1918 भारत में ट्रेड संघ आंदोलन शुरु
1919अमृतसरजलियावाला बाग नरसंहार
1919 लंदन में इंपिरियल लेजिसलेटिव काउंसिल द्वारा ोलेट अधिनियम पास
1919 खिलाफत आंदोलन शुरु
1920 तिलक का कांग्रेस डेमोक्रेटिक पार्टी गठन
1920 असहयोग आंदोलन शुरुमहात्मा गांधी
1920 अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस शुरुनारायण मल्हार जोशी
1920कलकत्तागांधीजी द्वारा प्रस्ताव पारित जिसमें अंग्रेजों से भारत को अधिराज्य का दर्जा देने को कहा गयामहात्मा गांधी
1921मालाबारमोपलाह विद्रोह
1922चैरी चैराचैरी चैरा घटना
1922इलाहबादस्वराज पार्टी गठितसरदार वल्लभ भाई पटेल
1925
1925काकोरीकाकोरी षडयंत्ररामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद
1925बारडोलीबारडोली सत्याग्रहवल्लभ भाई पटेल
1928बॉम्बेबॉम्बे में साइमन कमीशन आया और अखिल भारतीय हड़ताल हुई
1928लाहौरलाला लाजपत राय पर पुलिस की ज्यादती और जख्मों के चलते उनकी मौतलाला लाजपत राय
1928 नेहरु रिपोर्ट में भारत के नए डोमिनियन संविधान का प्रस्तावमोतीलाल नेहरु
1929लाहौरभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन आयोजितपंडित जवाहरलाल नेहरु
1929लाहौरकैदियों के लिए सुविधाओं की मांग करते हुए भूख हड़ताल करने पर स्वतंत्रता सेनानी जतिंद्रनाथ दास की मौतजतिंद्र नाथ दास
1929 ऑल पार्टी मुस्लिम कांफ्रेंस ने 14 सूत्र सुझाएमोहम्मद अली जिन्ना
1929दिल्लीसेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली में बम फेंका जानाभगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त
1929 भारतीय प्रतिनिधियों से मिलने राउंड टेबल कांफ्रेंस की लाॅर्ड इरविन की घोषणा
1929लाहौरजवाहरलाल नेहरु ने भारतीय ध्वज फहराया
1930 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज घोषित किया
1930साबरमति आश्रमदांडी मार्च के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरुमहात्मा गांधी
1930चिटगांवचिटगांव शस्त्रागार पर छापासूर्य सेन
1930लंदनसाइमन कमीशन की रिपोर्ट पार विचार हेतु लंदन में पहली गोल मेज बैठक
1931लाहौरभगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसीभगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु
1931 महात्मा गांधी और लाॅर्ड इरविन द्वारा गांधी इरविन पैक पर दस्तखत
1931 दूसरी राउंड टेबल बैठकमहात्मा गांधी, सरोजिनी नायडू, मदन मोहन मालवीय, घनश्यामदास बिड़ला, मोहम्मद इकबाल, सर मिर्जा इस्माइल, उसके दत्ता, सर सैयद अली इमाम
1932 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसकी सहयोगी संस्थाएं अवैध घोषित
1932 बिना ट्रायल के गांधी विद्रोह के आरोप में गिरफ्तारमहात्मा गांधी
1932 ब्रिटिश प्रधानमंत्री रामसे मैकडोनाल्ड ने भारतीय अल्पसंख्यकों के लिए अलग निर्वाचक मंडल बनाकर 'सांप्रदायिक अवार्ड' घोषित किया
1932 गांधीजी ने अछूत जातियों की हालत में सुधार हेतु आमरण अनषन किया जो छह दिन चलामहात्मा गांधी
1932लंदनतीसरी राउंड टेबल कांफ्रेंस
1933 अछूतों के कल्याण की ओर ध्यान की मांग पर गांधीजी ने उपवास कियामहात्मा गांधी
1934 गांधीजी ने खुद को सक्रिय राजनीति से अलग किया और सकारात्मक कार्यक्रमों के लिए समर्पित कियामहात्मा गांधी
1935 भारत सराकर अधिनियम 1935 पास
1937 भारत सराकर अधिनियम 1935 के तहत भारत प्रांतीय चुनाव हुए
1938हरीपुराभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का हरीपुरा अधिवेशन हुआ
1938 सुभाष चंद्र बोस को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गयासुभाष चंद्र बोस
1939जबलपुरत्रिपुरी अधिवेशन हुआ
1939 ब्रिटिश सरकार कह नीतियों के विरोध में कांग्रेस मंत्रियों का इस्तीफा। सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दियासुभाष चंद्र बोस
1939 कांग्रेस मंत्रियों के त्यागपत्र के जश्न में मुस्लिम लीग ने उद्धार दिवस मनायामोहम्मद अली जिन्ना
1940 मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग राज्य की मांग करते हुए लाहौर अधिवेशन
1940 लाॅर्ड लिंलीथगो ने अगस्त आॅफर 1940 बनाया जिसमें भारतीयों को उनका संविधान बनाने का अधिकार दिया गया
1940वर्धाकांग्रेस कार्यकारिणी समिति ने अगस्त आॅफर ठुकराया और एकल सत्याग्रह शुरु किया
1941 सुभाष चंद्र बोस ने भारत छोड़ासुभाष चंद्र बोस
1942 भारत छोड़ो आंदोलन या अगस्त आंदोलन शुरु
1942 चर्चिल ने क्रिप्स आंदोलन शुरु किया
1942बाॅम्बेभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत छोड़ो प्रस्ताव शुरु किया
1942 गांधीजी और कांग्रेस के अन्य बड़े नेता गिरफ्तारमहात्मा गांधी
1942 आजाद हिंद फौज का गठनसुभाष चंद्र बोस
1943पोर्ट ब्लेयरसेल्युलर जेल को भारत की अस्थाई सरकार का मुख्यालय घोषित किया गया
1943 सुभाष चंद्र बोस ने भारत की अस्थाई सरकार के गठन की घोषणा कीसुभाष चंद्र बोस
1943कराचीमुस्लिम लीग के कराची अधिवेशन में बांटो और राज करो नारा अपनाया गया
1944मोरेंगजापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज के कर्नल शौकत मलिक ने इस क्षेत्र में अंग्रेजों को हरायाकर्नल शौकत अली
1944शिमलाभारतीय राजनीतिक नेताओं और वायसराय आर्किबाल्ड वेवलीन के बीच शिमला सम्मेलन
1946दिल्लीकेबिनेट मिशन प्लान पास
1946दिल्लीसंविधान सभा का गठन
1946 राॅयल इंडियन नेवी गदर
1946दिल्लीनई दिल्ली में केबिनेट मिशन का आगमन
1946लाहौरजवाहरलाल नेहरु ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालाजवाहरलाल नेहरु
1946 भारत की अंतरिम सरकार बनी
1946दिल्लीभारत की संविधान सभा का पहला सम्मेलन
1947 ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने ब्रिटिश भारत को ब्रिटिश सरकार का पूर्ण सहयोग देने की घोषणा की
1947 लार्ड माउंटबेटन भारत के वायसराय नियुक्त और स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल बने
1947 15 अगस्त 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत भारत के भारत और पाकिस्तान में विभाजन हेतु माउंटबेटन प्लान बनाया गया

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  • Bharat ka Itihaas (Indian History in Hindi) /

महान भारतीय स्वतंत्रता सैनानी

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  • Updated on  
  • अगस्त 5, 2023

Indian Freedom Fighters

लगभग 76 साल पहले, 15 अगस्त 1947 की ऐतिहासिक तारीख को, भारत ब्रिटिश प्रभुत्व से मुक्त हो गया। यहां कई आंदोलनों और संघर्षों की परिणति थी जो 1857 के ऐतिहासिक विद्रोह सहित ब्रिटिश शासन के समय में व्याप्त थे। यह स्वतंत्रता कई क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों के प्रयासों के माध्यम से हासिल की गई थी, जिन्होंने इस संघर्ष को आयोजित करने का बीड़ा उठाया जिसके कारण भारत की स्वतंत्रता हुईं। हालांकि वे सभी विभिन्न विचारधाराओं के थे, लेकिन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को हर भारतीय के दिल में अमर कर दिया। Indian Freedom Fighters in Hindi (स्वतंत्रता सेनानी) के बारे में अधिक जानने के लिए इस ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़ें।

The Blog Includes:

भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, महत्वपूर्ण भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और उनके योगदान, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल, जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, दादा भाई नौरोजी, बिपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय, राजा राम मोहन रॉय, तात्या टोपे, बाल गंगाधर तिलक, अशफाकउल्ला खान , सी. राजगोपालाचारी, राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आज़ाद, रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हज़रत महल, सरोजिनी नायडू, सावित्रिभाई फुले, विजयलक्ष्मी पंडित, भारतीय स्वतंत्रता सैनानीयों द्वारा कोट्स.

भारत से अंग्रेजों को बाहर करने के संघर्ष में देश के हर कोने के लोगों ने भाग लिया। उनमें से कई क्रांतिकारियों ने भारत को अंग्रेजों के अत्याचारी शासन से मुक्त करने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। आइए जानते हैं कुछ महान हस्तियों के बारे में विस्तार से।

  • दादाभाई नौरोजी
  • टांटिया टोपे
  • के. एम. मुंशी
  • अशफाकला खान
  • रानी लक्ष्मी बाई
  • चितरंजन दास
  • बेगम हजरत महल
  • चंद्र शेखर आज़ाद
  • अब्दुल हाफिज मोहम्मद बाराकतुल्लाह

ये भी पढ़ें : भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन

Indian Freedom Fighters in Hindi पर आधारित इस ब्लॉग में कुछ महत्वपूर्ण भारतीय स्वतंत्रता सेनानीयों के नाम और उनके योगदान निम्नलिखित हैं-

दक्षिण अफ्रीका में नेशनल सिविल राइट्स एक्टिविस्ट के पिता,  सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा मूवमेंट, क्विट इंडिया मूवमेंट
इंडियन रिबेलीयन 1857
हिंदू महासभा के प्रमुख और हिंदू राष्ट्रवादी दर्शन के सूत्रधार
भारत के अनौपचारिक राजदूत
1857 का भारतीय विद्रोह
भारतीय विद्या भवन के संस्थापक
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य
विनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन के प्रमुख सदस्य
पंजाब केसरी अगेंस्ट साइमन कमीशन
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक सदस्य
आधुनिक भारत के निर्माता आंदोलन
1857 का भारतीय विद्रोह
क्रांतिकारी विचारों के जनक
बंगाल से असहयोग आंदोलन में नेता और स्वराज पार्टी के संस्थापक
1857 का भारतीय विद्रोह
सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारी में से एक
श्वेत क्रांति, ग्रीन क्रांति, भारत के प्रधानमंत्री
1857 का भारतीय विद्रोह
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के अपने नए नाम के तहत हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) का पुनर्गठन किया
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के India Leader के अंतिम गवर्नर जनरल
क्रांतिकारी लेखक
द्वितीय विश्व युद्ध के राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य

ये भी पढ़ें : 1857 की क्रांति

भारतीय स्वतंत्रता सेनानीयों के बारे में

आइए नीचे Indian Freedom Fighters in Hindi (स्वतंत्रता सेनानी) के बारे में विस्तार से जानते हैं:-

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। इनके पिता का नाम करमचंद गांधी था। मोहनदास की माता का नाम पुतलीबाई था जो करमचंद गांधी जी की चौथी पत्नी थीं। मोहनदास अपने पिता की चौथी पत्नी की अंतिम संतान थे। महात्मा गांधी को ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेता और ‘राष्ट्रपिता’ माना जाता है। महात्मा गांधी Indian Freedom Fighters in Hindi मे से एक महान व्यक्ति थे।

महात्मा गांधी के बारे में 10 रोचक तथ्य 

  • गांधी जी की मातृभाषा गुजराती थी।
  • गांधी जी ने अल्फ्रेड हाई स्कूल, राजकोट से पढ़ाई की थी
  • गांधी जी का जन्मदिन 2 अक्टूबर ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस ‘ के रूप में विश्वभर में मनाया जाता है।
  • महात्मा गांधी जी अपने माता-पिता के सबसे छोटी संतान थे उनके दो भाई और एक बहन थी।
  • उनके  पिता धार्मिक रूप से हिंदू तथा जाति से मोध बनिया थे।
  • माधव देसाई, गांधी जी के निजी सचिव थे।
  • उनकी हत्या बिरला भवन के बगीचे में हुई थी।
  • गांधी जी और प्रसिद्ध लेखक लियो टोलस्टोय के बीच लगातार पत्र व्यवहार होता था।
  • गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह संघर्ष के दौरान , जोहांसबर्ग से 21 मील दूर एक 1100 एकड़ की छोटी सी कालोनी, टॉलस्टॉय फार्म स्थापित की थी।  
  • 1930 में, उन्होंने दांडी साल्ट मार्च का नेतृत्व किया और 1942 में, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ चलाया।

हमारे देश के एक महान Indian Freedom Fighters in Hindi (स्वतंत्रता सेनानी) नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और मां का नाम प्रभावती था, उनके पिताजी कटक शहर के मशहूर वकील थे। सुभाष चंद्र बोस कुल 14 भाई बहन थे। सुभाष चंद्र बोस एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा’ उन्होंने ही यह प्रसिद्ध नारा भारत को दिया। जिससे भारत के कई युवा वर्ग भारत से अंग्रेजों को बाहर निकालने की लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित हुए। नेताजी ने चितरंजन दास के साथ काम किया जो बंगाल के एक राजनीतिक नेता, शिक्षक और बंगलार कथा नाम के बंगाल सप्ताहिक में पत्रकार थे। बाद में वो बंगाल कांग्रेस के वालंटियर कमांडेंट, नेशनल कॉलेज के प्रिंसीपल, कलकत्ता के मेयर और उसके बाद निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रुप में नियुक्त किये गये।

ये भी पढ़ें : इंडियन आर्मी भर्ती

सुभाष चंद्र बोस द्वारा बोले गए अनमोल वचन

  • “तुम मुझे खून दो ,मैं तुम्हें आजादी दूंगा !”
  • “ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं। हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी,  हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए”
  • “आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके! एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशश्त हो सके”
  • “मुझे यह नहीं मालूम की स्वतंत्रता के इस युद्ध में हममे से कौन कौन जीवित बचेंगे ! परन्तु में यह जानता हूँ ,अंत में विजय हमारी ही होगी !”
  • “राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्श सत्य, शिव और सुन्दर से प्रेरित है “
  • “भारत में राष्ट्रवाद ने एक ऐसी सृजनात्मक शक्ति का संचार किया है जो सदियों से लोगों के अन्दर से सुसुप्त पड़ी थी”
  • “मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश की प्रमुख समस्यायों जैसे गरीबी ,अशिक्षा, बीमारी, कुशल उत्पादन एवं   वितरण का समाधान सिर्फ समाजवादी तरीके से ही किया जा सकता है”
  • “यदि आपको अस्थायी रूप से झुकना पड़े तब वीरों की भांति झुकना !”
  • “समझोतापरस्ती बड़ी अपवित्र वस्तु है !”
  • “मध्या भावे गुडं दद्यात — अर्थात जहाँ शहद का अभाव हो वहां गुड से ही शहद का कार्य निकालना चाहिए !”

सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को नादिद ग्राम में हुआ था, जिन्होंने Indian Freedom Fighters in Hindi बनके अंग्रेजों को देश से भगाया था। उनके पिता झवेरभाई पटेल एक साधारण किसान और माता लाड बाई एक साधारण महिला थी। बचपन से ही पटेल कड़ी महेनत करते आए थे, बचपन से ही वे परिश्रमी थे। उन्होंने 1896 में अपनी हाई-स्कूल परीक्षा पास की। स्कूल के दिनों से ही वे होशियार थे। भारत माता की स्वतंत्रता की लड़ाई में उनका महत्वपूर्ण योगदान था इसी वजह से उन्हें भारत का ‘लौह पुरुष’ कहा जाता है। सरदार वल्लभ भाई पटेल जी ने अपने जीवन में महात्मा गाँधी जी से प्रेरणा ली थी और स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेकर अपना योगदान दिया था। हमारे भारत के इतिहास में सरदार वल्लभ भाई पटेल का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। भारत हमेशा इस महान, साहसी, निडर, निर्भयी, दबंग, अनुशासित, अटल महान पुरुष को याद रखेगा।

प्रमुख विचार

  • जीवन की डोर तो ईश्वर के हाथ में है, इसलिए चिंता की कोई बात हो ही नहीं सकती
  • कठिन समय में कायर बहाना ढूंढ़ते हैं बहादुर व्यक्ति रास्ता खोजते हैं
  • उतावले उत्साह से बड़ा परिणाम निकलने की आशा नहीं रखनी चाहिये
  • हमें अपमान सहना सीखना चाहिए
  • बोलने में मर्यादा मत छोड़ना, गालियाँ देना तो कायरों का काम है
  • शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाये, पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम दे सकता है
  • आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आंखें को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का मजबूत हाथों से सामना कीजिये

जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 को ब्रिटिश भारत में इलाहाबाद में हुआ। उनके पिता, मोतीलाल नेहरू (1861–1931), एक धनी बैरिस्टर जो कश्मीरी पण्डित समुदाय से थे, स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष चुने गए। उनकी माता स्वरूपरानी (1868–1938), जो लाहौर में बसे एक सुपरिचित कश्मीरी ब्राह्मण परिवार से थी, मोतीलाल की दूसरी पत्नी थी व पहली पत्नी की प्रसव के दौरान मृत्यु हो गई थी। जवाहरलाल तीन बच्चों में से सबसे बड़े थे, जिनमें बाकी दो लड़कियाँ थी। बड़ी बहन, विजया लक्ष्मी, बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनी। सबसे छोटी बहन, कृष्णा हठीसिंग, एक उल्लेखनीय लेखिका बनी और उन्होंने अपने भाई पर कई पुस्तकें लिखी। जवाहरलाल नेहरु जी को 1955 में ‘भारत रत्न’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। जवाहरलाल नेहरू जी को पंडित नेहरू और चाचा नेहरू भी कहा जाता है, साथ ही में उन्हें आधुनिक भारत का शिल्पकार भी कहा जाता है। जवाहरलाल नेहरु जी को सभी बच्चे चाचा नेहरू कहा करते थे, इस वजह से जवाहरलाल नेहरू जी के जन्मदिन 14 नवंबर को हर वर्ष ‘बाल दिवस’ मनाया जाता है।

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मुगलसराय, उत्तरप्रदेश में ‘मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव’ के यहां हुआ था। उनकी माता का नाम ‘रामदुलारी’ था। उनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। ऐसे में सब उन्हें ‘मुंशी जी’ ही कहते थे। लाल बहादुर शास्त्री जी भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। शास्त्री जी ने ‘ जय जवान ,जय किसान’ का नारा दिया था। 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध शास्त्रीजी के कार्यकाल में लड़ा और जीता गया था। 11 जनवरी 1966 की रात को ताशकंत में शास्त्री जी की संदिग्ध मृत्यु हो गई थी। शास्त्री जी के समाधि स्थल का नाम ‘विजय घाट’ है।

लाल बहादुर शास्त्री जी के अनमोल विचार

  • हम शांति और शांतिपूर्ण विकास में विश्वास करते हैं, न केवल अपने लिए बल्कि दुनिया भर के लोगों के लिए।
  • शासन का मूल विचार, जैसा कि मैं इसे देखता हूं, समाज को एक साथ रखना है ताकि यह निश्चित लक्ष्यों की ओर विकसित हो सके और मार्च कर सके।
  • भारत को अपना सिर शर्म से झुकाना पड़ेगा, अगर एक भी ऐसा व्यक्ति बचा हो जिसे अछूत कहा जाए।
  • हम दुनिया में सम्मान तभी जीत सकते हैं जब हम आंतरिक रूप से मजबूत होंगे और अपने देश से गरीबी और बेरोजगारी को दूर कर सकते हैं।
  • हमारे देश की अनोखी बात यह है कि हमारे पास हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी और अन्य सभी धर्मों के लोग हैं। हमारे पास मंदिर और मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च हैं। लेकिन हम यह सब राजनीति में नहीं लाते … भारत और पाकिस्तान के बीच यही अंतर है।
  • हमारा देश अक्सर आम खतरे के सामने एक ठोस चट्टान की तरह खड़ा हो गया है, और एक गहरी अंतर्निहित एकता है जो हमारी सभी प्रतीत होती विविधता के माध्यम से एक सुनहरे धागे की तरह चलती है।
  • हमें शांति से लड़ना चाहिए क्योंकि हम युद्ध में लड़े थे।
  • हमारा रास्ता सीधा और स्पष्ट है – घर में एक समाजवादी लोकतंत्र का निर्माण, सभी के लिए स्वतंत्रता और समृद्धि, और विश्व शांति और विदेश में सभी देशों के साथ मित्रता का रखरखाव।
  • हम शांति के माध्यम से सभी विवादों के निपटारे में, युद्ध के उन्मूलन में, और, विशेष रूप से, परमाणु युद्ध में शांति में विश्वास करते हैं।
  • हम एक व्यक्ति के रूप में मनुष्य की गरिमा में विश्वास करते हैं, जो भी उसकी जाति, रंग या पंथ और बेहतर, पूर्ण, और समृद्ध जीवन के लिए उसका अधिकार है।

भगत सिंह जी का जन्म 28 सितंबर, 1907 को पाकिस्तान के बंगा में हुआ था। भगत सिंह जी के पिता का नाम सरदार किशन सिंह संधू था और माता का नाम विद्यावती कौर था। भगत सिंह जी एक सिक्ख थे। भगत सिंह जी की दादी ने इनका नाम भागाँवाला रखा था क्योंकि उनकी दादी जी का कहना था कि यह बच्चा बड़ा भाग्यशाली होगा। भगत सिंह एक सच्चे देशभक्त थे। न केवल उन्होंने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी बल्कि इस घटना में अपनी जान तक दे दी। उनकी मृत्यु ने पूरे देश में उच्च देशभक्ति की भावनाएं पैदा कीं। आज भी Indian Freedom Fighters in Hindi में सबसे प्रसिद्ध भगत सिंह जी का नाम बड़े अदब और इज़्ज़त से लिया जाता है।

भगत सिंह के अनमोल विचार

  • मेरी गर्मी के कारण राख का एक एक कण चलायमान हैं में ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी स्वतंत्र हूँ।
  • क्रांति में सदैव संघर्ष हो यह जरुरी नहीं, यह बम और पिस्तौल की राह नहीं है।
  • जो व्यक्ति उन्नति के लिए राह में खड़ा होता है उसे परम्परागत चलन की आलोचना एवम विरोध करना होगा साथ ही उसे चुनौती देनी होगी।
  • मैं यह मानता हूँ की मह्त्वकांक्षी, आशावादी एवम जीवन के प्रति उत्साही हूँ लेकिन आवश्यकता अनुसार मैं इस सबका परित्याग कर सकता हूँ यही सच्चा त्याग होगा।
  • कोई भी व्यक्ति तब ही कुछ करता है जब वह अपने कार्य के परिणाम को लेकर आश्व्स्त (औचित्य) होता है जैसे हम असेम्बली में बम फेकने पर थे।
  • कठोरता एवं आजाद सोच ये दो क्रांतिकारी होने के गुण है।
  • मैं एक इन्सान हूँ और जो भी चीजे इंसानियत पर प्रभाव डालती है मुझे उनसे फर्क पड़ता है।

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दादाभाई नौरोजी का जन्म 4 सितंबर, 1825 को मुम्बई के एक ग़रीब पारसी परिवार में हुआ। जब दादाभाई 4 वर्ष के थे, तब उनके पिता का देहांत हो गया। उनकी माँ ने निर्धनता में भी बेटे को उच्च शिक्षा दिलाई। उच्च शिक्षा प्राप्त करके दादाभाई लंदन की यूनिवर्सिटी के कॉलेज में पढ़ाने लगे थे। 1885 में दादाभाई नौरोजी ने एओ ह्यूम द्वारा स्थापित ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह तीन बार (1886, 1893, 1906) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। Indian Freedom Fighters in Hindi में से एक दादाभाई नौरोजी का हमारी आज़ादी में बहुत बड़ा हाथ है।

दादाभाई नौरोजी की प्रमुख पुस्तकें

  • पावर्टी एंड अन ब्रिटिश रूल इन इंडिया
  • स्पीच एंड राइटिंग
  • ग्रांट ऑफ इंडिया
  • पावर्टी इन इंडिया

कांग्रेस की अध्यक्षता

यह कांग्रेस की तीन बार अध्यक्ष रहे जिनकी डिटेल निम्नलिखित है :-

  • 1886 ( कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन जो कोलकाता में हुआ)
  • 1893 ( कांग्रेस का 9 वां अधिवेशन जो लाहौर में हुआ)
  • 1906 ( कांग्रेस का 22वां अधिवेशन जो कोलकाता में हुआ इसी अधिवेशन में नौरोजी ने सर्वप्रथम स्वराज्य शब्द का प्रयोग किया था)

दादाभाई नौरोजी के प्रमुख विचार

दादाभाई नौरोजी के प्रमुख विचार कुछ इस प्रकार हैं :-

  • नौरोजी गोखले की भाति उदारवादी राष्ट्रवादी थे और अंग्रेजी में न्यायप्रियता में विश्वास रखते ।
  • भारत के लिए ब्रिटिश शासन को वरदान मानते थे ।
  • स्वदेशी और बहिष्कार का सांकेतिक रूप से प्रयोग करने पर बल देते थे ।
  • उन्होंने सर्वप्रथम भारत का आर्थिक आधार पर अध्ययन किया।

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बिपिन चंद्र पाल का जन्म 7 नवंबर 1858 को वर्तमान बांग्लादेश के सिलहट जिले के पोइला गाँव में हुआ था। उनका जन्म एक धनी हिंदू वैष्णव परिवार में हुआ था। उनके पिता रामचंद्र पाल एक फारसी विद्वान और एक छोटे जमींदार थे। बिपिन चंद्र पाल तीन उग्रवादी देशभक्तों में से एक के रूप में प्रसिद्ध थे। जिन्हें ‘लाल-बाल-पाल’ के नाम से जाना जाता था। उन्हें श्री अरबिंदो द्वारा ‘राष्ट्रवाद का सबसे शक्तिशाली पैगंबर’ कहा गया। बिपिन चन्द्र पाल एक प्रख्यात पत्रकार भी थे जिनकी ख्याति पूरे विश्व में फैली हुई थी। उन्होंने अपनी पत्रकारिता का इस्तेमाल देशभक्ति की भावना और सामाजिक जागरूकता  के प्रसारण में किया। उनकी प्रमुख पुस्तकों में स्वराज और वर्तमान स्थिति, हिंदुत्व का नूतन तात्पर्य, भारतीय राष्ट्रवाद, भारत की आत्मा, राष्ट्रीयता और साम्राज्य, सामाजिक सुधार के आधार और अध्ययन शामिल है। वे डेमोक्रेटिक, इंडिपेंडेंट और कई अन्य पत्रिकाओं और समाचारपत्रों के संपादक रहे, इसके साथ ही परिदर्शक, न्यू इंडिया जैसी पत्रिकाएं शुरू की।

बिपिन चंद्र पाल 1858 में ब्रिटिश सेना के खिलाफ सबसे बड़ी क्रांति के दौरान पैदा हुए क्रांतिकारी थे। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे और उन्होंने विदेशी वस्तुओं के परित्याग को प्रोत्साहित किया। उन्होंने लाला लाजपत राय और बाल गंगाधर तिलक के साथ एक तिकड़ी बनाई, जिसे लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाता है, जहां उन्होंने कई क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया।

  • जन्म: 7 नवंबर 1858, हबीगंज जिला, बांग्लादेश
  • मृत्यु: 20 मई 1932, कोलकाता
  • शिक्षा: सेंट पॉल कैथेड्रल मिशन कॉलेज, प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय
  • प्रसिद्ध रूप से जाना जाता है: क्रांतिकारी विचारों के पिता

लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को दुधिके गॉव में हुआ था जो वर्तमान में पंजाब के मोगा जिले में स्थित है। वह मुंशी राधा किशन आज़ाद और गुलाब देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे। उनके पिता बनिया जाति के अग्रवाल थे। बचपन से ही उनकी माँ ने उनको उच्च नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी थी। लाला लाजपत राय यह एक स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ साथ एक लेखक भी थे। उन्होंने अपने कार्य और विचारों के साथ लेखन कार्य से भी लोगों का मार्गदर्शन किया। उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तके – हिस्ट्री ऑफ़ आर्य समाज, शिवाजी का चरित्र चित्रण, दयानंद सरस्वती, भगवत गीता का संदेश, युगपुरुष भगवान श्रीकृष्ण आदि हैं ।

लाला लाजपत राय पर कविता

लाला लाजपत राय उनका नाम था, भारत की आजादी के लिए उनका हर काम था, अंग्रेजी हुकूमत को मिलता करारा जवाब था, भारत की आजादी का उनके आखों में ख्वाब था. गरम उनका स्वभाव था, गरीबों के लिए प्रेम भाव था, अंग्रेज भी उनसे डरते थे, क्योंकि झुकना उनका स्वभाव न था. देश के खातिर प्राणों का बलिदान दिया, स्कूल और कॉलेज खोलकर सबको ज्ञान दिया, देश पर तन-मन-धन न्यौछावर कर डाला देशभक्तों के लहू में चिंगारी लगाकर स्वतंत्रता का वरदान दिया.

Ram Mohan Roy

राम मोहन का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के हूगली जिले के में राधानगर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम रामकंतो रॉय और माता का नाम तैरिनी था। राम मोहन का परिवार वैष्णव था, जो कि धर्म संबंधित मामलो में बहुत कट्टर था। उनकी शादी 9 वर्ष की उम्र में ही कर दी गई। लेकिन उनकी प्रथम पत्नी का जल्द ही देहांत हो गया। इसके बाद 10 वर्ष की उम्र में उनकी दूसरी शादी की गयी जिसे उनके 2 पुत्र हुए लेकिन 1826 में उस पत्नी का भी देहांत हो गया और इसके बाद उसकी तीसरी पत्नी भी ज्यादा समय जीवित नहीं रह सकी। 1803 में रॉय ने हिन्दू धर्म और इसमें शामिल विभिन्न मतों में अंध-विश्वासों पर अपनी राय रखी। राजा राम मोहन रॉय को मुगल सम्राट अकबर द्वितीय ने राजा की उपाधि दी थी। राजा राम मोहन रॉय को अनेक भाषा जैसे कि अरबी, फारसी, अंग्रेजी और हिब्रू भाषाओं का ज्ञान था। राजा राम मोहन रॉय का प्रभाव लोक प्रशासन, राजनीति, शिक्षा और धर्म के क्षेत्र में स्पष्ट था।राजा राम मोहन रॉय को सती और बाल विवाह की प्रथाओं को खत्म करने के लिए जाना जाता है। राजा राम मोहन राय को कई इतिहासकारों द्वारा “बंगाल पुनर्जागरण का पिता” भी माना जाता है। महज 15 साल की उम्र में राजा राम मोहन राय ने बंगाल में पुस्‍तक लिखकर मूर्तिपूता का विरोध शुरू किया था। राजा राम मोहन राय ने अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त कर मैथ्‍स, फिजिक्‍स, बॉटनी और फिलॉसफी जैसे विषयों को पढ़ने के साथ साथ वेदों और उपनिषदों को भी जीवन के लिए अनिवार्य बताया था।

तांतिया टोपे 1857 के विद्रोह के प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। 1814 में उनका जन्म हुआ, उन्होंने अपने सैनिकों को ब्रिटिश शासन के प्रभुत्व के खिलाफ लड़ने के लिए नेतृत्व किया। उन्होंने ब्रिटिश जनरल विन्धम को कानपुर छोड़ देने के लिए मजबूर कर दिया और रानी लक्ष्मीबाई को ग्वालियर बहाल करने में मदद की।

  • जन्म: 1814, येओला
  • मृत्यु: 18 अप्रैल 1859, शिवपुरी
  • पूरा नाम: रामचंद्र पांडुरंग टोपे

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बाल गंगाधर तिलक 1856 में पैदा हुए एक उल्लेखनीय स्वतंत्रता सेनानी थे। अपने उद्धरण के लिए प्रसिद्ध, ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है ‘। उन्होंने कई विद्रोही समाचार पत्र प्रकाशित किए और ब्रिटिश शासन की अवहेलना करने के लिए स्कूलों का निर्माण किया। वह लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल के साथ लाल-बाल-पाल के तीसरे सदस्य थे।

  • जन्म: 23  जुलाई 1856, चिखलीक
  • मृत्यु: 1 अगस्त 1920, मुंबई
  • लोकमान्य तिलक के नाम से प्रसिद्ध

Indian Freedom Fighter in HIndi

22 अक्टूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में जन्मे अशफाकउल्ला खान महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे ‘असहयोग आंदोलन’ के साथ बड़े हुए। जब वह एक युवा सज्जन थे, तभी अशफाकउल्ला खान राम प्रसाद बिस्मिल से परिचित हो गए। वह गोरखपुर में हुई ‘चौरी-चौरा कांड’ के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक थे। वह स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे और चाहते थे कि अंग्रेज किसी भी कीमत पर भारत छोड़ दें। अशफाकउल्ला खान एक लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें बिस्मिल के साथ सच्ची दोस्ती के लिए जाना जाता था, उन्हें काकोरी ट्रेन डकैती के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। इसे 1925 के काकोरी षडयंत्र के नाम से जाना जाता था।

  • जन्म: 22 अक्टूबर 1900, शाहजहांपुर
  • मृत्यु: 19 दिसंबर 1927, फैजाबाद
  • संगठन: हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
  • प्रसिद्ध रूप से जाना जाता है: अशफाक उल्ला खान

freedom struggle of india essay in hindi

बालाजीराव भट, जिन्हें आमतौर पर ‘नाना साहिब’ के नाम से जाना जाता है, का जन्म मई 1824 में बिठूर (कानपुर जिला), उत्तर प्रदेश में हुआ था। वह भारत के मराठा साम्राज्य के आठवें पेशवा थे। शिवाजी के शासनकाल के बाद, वह सबसे शक्तिशाली राजाओं में से एक थे और इतिहास में सबसे साहसी भारतीय स्वतंत्रता योद्धाओं में से एक थे। उनका दूसरा नाम बालाजी बाजीराव था। 1749 में जब छत्रपति शाहू की मृत्यु हुई, तो उन्होंने मराठा साम्राज्य को पेशवाओं के पास छोड़ दिया। उनके राज्य का कोई उत्तराधिकारी नहीं था, इसलिए उन्होंने वीर पेशवाओं को अपना उत्तराधिकारी नामित किया। मराठा साम्राज्य के राजा के रूप में नाना साहिब ने पुणे के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके शासन काल में पूना एक छोटे से गांव से महानगर में तब्दील हो गया था। उन्होंने नए जिलों, मंदिरों और पुलों का निर्माण करके शहर को नया रूप दिया। यह कहते हुए कि, 1857 के विद्रोह में साहिब का महत्वपूर्ण योगदान था, उत्साही विद्रोहियों के एक समूह का नेतृत्व करके उन्होंने कानपुर में ब्रिटिश सैनिकों को पछाड़ दिया। हालाँकि, नाना साहब और उनके आदमियों को हराने के बाद, अंग्रेज कानपुर को वापस लेने में सक्षम थे।

  • जन्म : 19 मई 1824, बिठूर
  • पूरा नाम: धोंडू पंतो
  • मृत्यु: 1859, नैमिशा वन
  • गायब: जुलाई 1857 को कानपुर (अब कानपुर), ब्रिटिश भारत में
  • नाना साहब के नाम से मशहूर

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सुखदेव, जिनका जन्म 1907 में हुआ था, एक बहादुर क्रांतिकारी और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के प्रमुख सदस्य थे। बिना किसी संदेह के, वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक थे। उन्होंने अपने सहयोगियों भगत सिंह और शिवराम राजगुरु के साथ मिलकर काम किया। उन पर ब्रिटिश अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया गया था। दुर्भाग्य से, 24 साल की उम्र में, उन्हें 23 मार्च, 1931 को पंजाब के हुसैनवाला (अब पाकिस्तान में) में भगत सिंह और शिवराम राजगुरु के साथ पकड़ा गया और फांसी पर लटका दिया गया।

  • जन्म: 15 मई 1907, लुधियाना
  • मृत्यु: 23 मार्च 1931, लाहौर, पाकिस्तान
  • शिक्षा: नेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट्स, नेशनल कॉलेज, लाहौर
  • सदस्य: हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)

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कुंवर सिंह का जन्म अप्रैल 1777 में जगदीशपुर के महाराजा और महारानी (अब भोजपुर जिले, बिहार में) के महाराजा और जगदीसपुर की महारानी के यहाँ हुआ था। विद्रोह के अन्य प्रसिद्ध नामों के बीच उनका नाम अक्सर खो जाता है। बहरहाल, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान बहुत बड़ा था। बिहार में विद्रोह का नेतृत्व कुंवर सिंह ने किया था। 25 जुलाई, 1857 को, उन्होंने लगभग 80 वर्ष की आयु में दानापुर में तैनात सिपाहियों की कमान प्राप्त की। कुंवर सिंह ने मार्च 1858 में आजमगढ़ पर अधिकार कर लिया। (अब यूपी में)। 23 जुलाई को जगदीशपुर के पास एक सफल लड़ाई की कमान संभाली।

  • जन्म: नवंबर 1777, जगदीशपुर
  • मृत्यु: 26 अप्रैल 1858, जगदीशपुर
  • पूरा नाम: बाबू वीर कुंवर सिंह
  • वीर कुंवर सिंह के नाम से मशहूर

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एक प्रसिद्ध भारतीय स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे को आमतौर पर अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के विद्रोह के अग्रदूत के रूप में पहचाना जाता है, जिसे भारत की स्वतंत्रता की पहली लड़ाई माना जाता है। ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री (बीएनआई) रेजिमेंट में एक सैनिक के रूप में, उन्होंने सिपाही विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसके कारण अंततः 1857 का विद्रोह हुआ। 1850 के दशक के मध्य में जब भारत में एक नई एनफील्ड राइफल लॉन्च की गई, तो व्यापार के साथ उनका सबसे बड़ा विवाद शुरू हुआ। राइफल के कारतूसों में जानवरों की चर्बी, विशेष रूप से गाय और सुअर की चर्बी के साथ चिकनाई होने की अफवाह थी। कारतूसों के उपयोग के परिणामस्वरूप, भारतीय सैनिकों ने निगम के खिलाफ विद्रोह कर दिया क्योंकि इसने उनकी धार्मिक मान्यताओं का उल्लंघन किया था। पांडे और उनके साथी सिपाहियों ने 29 मार्च, 1857 को ब्रिटिश कमांडरों के खिलाफ विद्रोह किया और उन्हें मारने का भी प्रयास किया।

  • जन्म: 19 जुलाई 1827, नागवा
  • मृत्यु: 8 अप्रैल 1857, बैरकपुर
  • व्यवसाय: सिपाही (सैनिक)
  • मौत का कारण : फाँसी लगाकर दी गई मृत्यु
  • के लिए जाना जाता है: भारतीय स्वतंत्रता सेनानी

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सी राजगोपालाचारी, 1878 में पैदा हुए, 1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने से पहले पेशे से एक वकील थे। राजगोपालाचारी समकालीन भारतीय राजनीति में एक महान व्यक्ति थे। वह स्वतंत्रता पूर्व युग के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य और महात्मा गांधी के कट्टर समर्थक थे। उन्होंने लाला लाजपत राय के असहयोग आंदोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया था।

  • जन्म: 10 दिसंबर 1878,थोरापल्ली
  • मृत्यु:  25 दिसंबर 1972, चेन्नई
  • शिक्षा: प्रेसीडेंसी कॉलेज, बैंगलोर केंद्रीय विश्वविद्यालय (1894), बैंगलोर विश्वविद्यालय
  • सीआर के रूप में प्रसिद्ध, कृष्णागिरी के आम, राजाजी
  • पुरस्कार: भारत रत्न

freedom struggle of india essay in hindi

“देश हित पैदा हुये हैं देश पर मर जायेंगे मरते मरते देश को जिन्दा मगर कर जायेंगे”

“हमको पीसेगा फलक चक्की में अपनी कब तलक खाक बनकर आंख में उसकी बसर हो जायेंगे”

  • जन्म: 11 जून 1897, शाहजहांपुर
  • मृत्यु: 19 दिसंबर 1927, गोरखपुर जेल, गोरखपुर
  • मौत का कारण : फाँसी लगाकर दी गई फांसी
  • संगठन – हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन

राम प्रसाद बिस्मिल सबसे उल्लेखनीय भारतीय क्रांतिकारियों में से एक थे, जिन्होंने ब्रिटिश उपनिवेशवाद से लड़ाई लड़ी और देश के लिए स्वतंत्रता की हवा में सांस लेना संभव बनाया, शाही ताकतों के खिलाफ संघर्ष के बाद, स्वतंत्रता की इच्छा और क्रांतिकारी भावना हर इंच में गूंजती रही। उनका शरीर और कविता। बिस्मिल, जिनका जन्म 1897 में हुआ था, सुखदेव के साथ हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के एक सम्मानित सदस्य थे। वह कुख्यात काकोरी ट्रेन डकैती में भी भागीदार थे, जिसके लिए ब्रिटिश सरकार ने इन्हें मौत की सजा दी थी।

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1906 में पैदा हुए चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता आंदोलन में भगत सिंह के करीबी साथी थे। वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य भी थे और ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ सबसे बहादुर और साहसी भारतीय स्वतंत्रता सेनानी भी थे। ब्रिटिश सेना के साथ युद्ध के दौरान कई विरोधियों की हत्या करने के बाद, उसने अपनी कोल्ट पिस्तौल से खुद को गोली मार ली। उन्होंने वादा किया था कि वह कभी भी अंग्रेजों द्वारा जिंदा नहीं पकड़ा जाएंगे।

  • जन्म: 23 जुलाई 1906, भावरस
  • मृत्यु: 27 फरवरी 1931, चंद्रशेखर आजाद पार्क
  • पूरा नाम: चंद्रशेखर तिवारी
  • शिक्षा: महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ

महिला भारतीय स्वतंत्रता सैनानी

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कई महिला भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, चाहे वह स्थानीय स्तर पर देश के लिए लड़कर हो या पुरुषों के साथ मिलकर। भारत की स्वतंत्रता में महिला स्वतंत्रता सैनानियों ने भी भाग लिया जिनके बारे में नीचे बताया गया है:

  • झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई
  • मैडम भीकाजी कामा
  • कस्तूरबा गांधी
  • अरुणा आसफ अली
  • विजया लक्ष्मी पंडित
  • सावित्री बाई फुले
  • अम्मू स्वामीनाथनी
  • किट्टू रानी चेन्नम्मा
  • दुर्गा देवी

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झांसी की रानी का जन्म मणिकर्णिका 19 नवंबर 1828 वाराणसी भारत में हुआ था। इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे और माता का नाम भागीरथी सप्रे था। इनके पति का नाम नरेश महाराज गंगाधर राव नायलयर और बच्चे का नाम दामोदर राव और आनंद राव था। रानी जी ने बहुत बहादुरी से युद्ध में अपना परिचय दिया था। रानी लक्ष्मीबाई ने अपने दत्तक पुत्र को पीठ पर कसकर बाँधकर अंग्रेजों से युद्ध किया था।

रानी लक्ष्मीबाई के अनमोल विचार

  • शौर्य और वीरता झलकती है लक्ष्मीबाई के नाम में,प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की डोरी थी जिसके हाथ में।
  • दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी
  • बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।
  • मैं झांसी की रानी हूं, और इस धरती मां की बेटी मेरे होते हुए कोई भी फिरंगी झांसी को हाथ नहीं लगा सकता, मैं अपनी झांसी कभी नहीं दूंगी चाहे इसके लिए मुझे अपनी जान भी क्यों न देनी पड़े झांसी मेरी आन है.. शान है.. ईमान है..।
  • मुर्दों में भी जान डाल दे, उनकी ऐसी कहानी है वो कोई और नहीं झांसी की रानी हैं
  • हम लडे़ंगे ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां अपनी आज़ादी का उत्सव मना सके।
  • अपने हौसले की एक कहानी बनाना,हो सके तो खुद को झांसी की रानी बनाना।
  • हर औरत के अंदर है झाँसी की रानी  कुछ विचित्र थी उनकी कहा मातृभूमि के लिए प्राणाहुति देने को  ठानी,अंतिम सांस तक लड़ी थी वो मर्दानी।
  • रानी लक्ष्मी बाई लड़ी तो, उम्र तेईस में स्वर्ग सिधारी तन मन धन सब कुछ दे डाला, अंतरमन से कभी ना हारी।
  • मातृभूमि के लिए झांसी की रानी ने जान गवाई थी, अरि दल कांप गया रण में, जब  लक्ष्मीबाई आई थी

अंग्रेजों को देश से भगाने में बेगम हज़रत महल ने अहम भूमिका निभाई थी, जिनका जन्म अवध प्रांत के फैजाबाद जिले में सन 1820 में हुआ था। उनके बचपन का नाम मुहम्मदी खातून था। बेगम हजरत महल के बचपन का नाम मुहम्मदी खातून था। वह नवाब वाजिद अली शाह के अनुबंध के तहत पत्नियों में से एक थी। स्वतंत्रता संघर्ष में उनका सबसे बड़ा योगदान हिंदुओं और मुसलमानों को अंग्रेजों से लड़ने के लिए एक बल के रूप में एकजुट करना था। यहां तक कि उन्होंने महिलाओं को अपने घरों से बाहर निकलने और स्वतंत्रता के संघर्ष में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने और प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका मानना था कि महिलाएं दुनिया में कुछ भी कर सकती हैं, किसी भी लड़ाई को लड़ सकती हैं और विजेता के रूप में सामने आ सकती हैं।

निश्चित रूप से सरोजिनी नायडू आज की महिलाओं के लिए एक रोल मॉडल हैं। जिस जमाने में महिलाओं को घर से बाहर निकलने तक की आजादी नहीं थी, सरोजिनी नायडू घर से बाहर देश को आजाद करने के लक्ष्‍य के साथ दिन रात महिलाओं को जागरूक कर रही थीं। सरोजिनी नायडू उन चुनिंदा महिलाओं में से थीं जो बाद में INC की पहली प्रेज़िडेंट बनीं और उत्तर प्रदेश की गवर्नर के पद पर भी रहीं। वह एक कवयित्री भी थीं।

महिलाओं को शिक्षित करने के महत्‍व को उन्‍होंने जन जन में फैलाने का ज़िम्मा उठाया था। उन्‍होंने ही कहा था कि अगर आप किसी लड़के को शिक्षित करते हैं तो आप अकेले एक शख्स को शिक्षित कर रहे हैं, लेकिन अगर आप एक लड़की को शिक्षा देते हैं तो पूरे परिवार को शिक्षित कर रहे हैं। उन्‍होंने अपने समय में महिला उत्पीड़न के कई पहलू देखे थे और लड़कियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित होते देखा था। ऐसे में तमाम विरोध झेलने और अपमानित होने के बावजूद उन्‍होंने लड़कियों को मुख्‍य धारा में लाने के लिए उन्हें आधारभूत शिक्षा प्रदान करने की जिम्‍मेदारी उठाई थी।

freedom struggle of india essay in hindi

जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी भी देश के विकास के लिए तमाम गतिविधियों में बढ़ चढ़ कर हिस्‍सा लेती थीं। उन्होंने कई सालों तक देश की सेवा की और बाद में संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंब्ली की पहली महिला प्रेज़िडेंट भी बनीं। वे डिप्लोमेट, राजनेता के अलावा लेखिका भी थीं।

  • एक सच्चे और वीर सैनिक को सैन्य और आध्यात्मिक दोनों ही प्रशिक्षण की जरूरत होती है।- नेता जी सुभाष चन्द्र बोस
  • आराम, हराम है।-  जवाहर लाल नेहरू
  • सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा।- मोहम्मद इकबाल
  • दुश्मनों की गोलियों का हम डटकर सामना करेंगे, आज़ाद हैं, आज़ाद ही रहेंगे।- चन्द्रशेखर आज़ाद
  • भारतीय एकता का मुख्य आधार इसकी संस्कृति ही है, इसका उत्साह कभी भी नहीं टूटा और यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है। भारतीय संस्कृति अक्षुण्ण है, क्योंकि भारतीय संस्कृति की धारा निरंतर बहती रहती है, और हमेशा बहती रहेगी। – मदन मोहन मालवीय
  • अब भी जिसका खून न खौला खून नहीं वो पानी है…जो ना आए देश के काम वो बेकार जवानी है।- चन्द्रशेखर आज़ाद
  • हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुस्तान। – भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
  • मेरा रंग दे बसंती चोला,माय रंग दे बसंती चोला।- सुखदेव
  • मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश सम्राज्य के ताबूत की कील बनेगी। – लाला लाजपत राय
  • अगर लोगों को स्वराज और सच्चा लोकतंत्र हासिल करना है , तो वे इसे कभी असत्य और हिंसा के द्धारा प्राप्त नहीं कर सकते हैं।-   लाल बहादुर शास्त्री
  • “आलसी व्यक्तियों के लिए भगवान कभी अवतार नहीं लेते, वे हमेशा मेहनती व्यक्ति के लिए ही अवतरित होते हैं , इसलिए काम करना शुरु करें।” – बाल गंगाधर तिलक
  • पहले तो वो आप पर बिल्कुल ध्यान नहीं देंगे, और फिर वो आप पर जमकर हंसेंगे, फिर वो आप से लड़ेंगे और फिर आप जीत जाएंगे। – राष्ट्रपिता, महात्मा गांधी
  • विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा। – श्याम लाल गुप्ता
  • आज़ादी मिलती नहीं है बल्कि इसे छीनना पड़ता है।- सुभाष चंद्र बोस

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के 7 महानायक जिन्होंने आजादी दिलाने में मुख्य भूमिका निभाई 1. मंगल पांडे 2. भगत सिंह 3. महात्मा गांधी 4. पंडित जवाहरलाल नेहरू 5. चंद्रशेखर आजाद 6. सुभाष चंद्र बोस 7. बाल गंगाधर तिलक

देश की आजादी का बीज बोने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत थे। मंगल पांडे द्वारा 1857 में जुलाई की आजादी की मशाल से 90 साल बाद पूरा भारत रोशन हुआ और आज हम स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं। आइए जानते हैं ऐसे महान सपूत के बारे में..

अपनी वीरता व निडरता के कारण वे वीरबाला के नाम से जानी गईं। आज सबसे कम उम्र की बलिदानी कनकलता का नाम भी इतिहास के पन्नों से गायब है। बीनादास : बीनादास का जन्म 24 अगस्त 1911 को बंगाल प्रांत के कृष्णानगर गांव में हुआ था।

पारसी परिवार में आज ही के दिन जन्मीं भीकाजी भारत की आजादी से जुड़ी पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं. आज भीकाजी कामा का आज 157वां जन्मदिन है. जर्मनी के स्टुटगार्ट में हुई दूसरी ‘इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस’ में 46 साल की पारसी महिला भीकाजी कामा ने भारत का झंडा फहराया था।

1857 -59′ के दौरान हुये भारतीय विद्रोह के प्रमुख केन्द्रों: मेरठ, दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, झाँसी और ग्वालियर को दर्शाता सन 1912 का नक्शा। विद्रोह का दमन, ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत, नियंत्रण ब्रिटिश ताज के हाथ में।

इन महान स्वतंत्रता सेनानियों में  भगत सिंह, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, डॉ.   राजेंद्र प्रसाद, लाला लाजपत राय, लाल बहादुर शास्त्री और बाल गंगाधर तिलक  शामिल हैं। इनके साथ ही कई और देशभक्त हैं जिन्होंने ब्रिटिश आधिपत्य से मुक्ति के लिए योगदान दिया।

‘ भारत छोड़ो ‘ आंदोलन को आज़ादी से पहले भारत का सबसे बड़ा आंदोलन माना जाता है। देश भर में लाखों भारतीय इस आंदोलन में कूद पड़े थे।

आशा है आपको Indian Freedom Fighters in Hindi पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों के जीवन परिचय के बारे पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें। 

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Freedom Fighters in Hindi | भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी

Freedom fighters in hindi

  • Post author By Admin
  • January 24, 2022

भारत बहुत लम्बे समय तक अंग्रेजो के अधीन था, बहुत लम्बे समय तक अंग्रेजो के अधीन रहने बाद 15 अगस्त 1947 को हमारे देश को आजादी मिली।

लेकिन क्या हमें आजादी ऐसे ही मिल गयी थी, क्या इतने सालों के जुल्म को खत्म करने के लिए अंग्रेज सरकार ऐसे ही मान गयी थी। 

नहीं, अंग्रेज सरकार ने यह माना नहीं था, उन्हें हमें आजाद करने का फैसला मानना पड़ा था, क्यूंकि भारत के कईं शूरवीर लोगो ने उन्हें ऐसा करने पर मजबूर कर दिया था। 

हम उन शूरवीरों को अब freedom fighters यानि की आज़ादी के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारी कहते है। आज हम इस freedom fighters in hindi ब्लॉग में उन्ही साहसी लोगो के बारे में बात करेंगे।

जिनके निरंतर प्रयासों और बलिदानो के बाद आज हम अपने देश में आज़ाद है और अपने अनुसार अपनी ज़िन्दगी जी सकते है।

आज़ादी की इस लड़ाई में अलग अलग लोगों ने भाग लिया, किसी ने शांति के साथ अंग्रेजो तक अपनी बात पहुंचाई तो किसी ने अपने अंदर पनपन रहे देश के लिए ज़ज़्बे के साथ अंग्रेजी हकूमत की टस तोड़ी। 

इन सब लोगों का तरीका बेशक अलग अलग हो लेकिन सबके मन में एक ही विचार था की हमें हमारे देश को आज़ादी दिलानी है।

आज हम इन्ही लोगो के बारे में बात करेंगे और कोशिश करेंगे की हम इन लोगों से प्रेरणा ले सके और ज़रूरत पड़ने पर देश हित के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर सकें। 

Table of Contents

Indian Freedom fighters in Hindi

जैसा की हमनें आपको बताया की भारत को आज़ादी दिलाने में बहुत सारे लोगों ने अपना अपना योगदान दिया, ऐसे बहुत से लोग है,

जिन्होंने इस लड़ाई में अपना योगदान दिया था लेकिन उनका नाम इतिहास के पन्नो में कहीं खो के रह गया है। 

भारत के वह शूरवीर इतने है की यह सम्भव ही नहीं है की हम उन सबका नाम अपने इस freedom fighters in hindi ब्लॉग में लिख सकें। 

लेकिन हम कोशिश करेंगे की हम अधिक से अधिक स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में आपको जानकारी दे सकें। 

पर जिन जिन फ्रीडम फाइटर्स के नाम हम इस ब्लॉग में नहीं लिख पाए, course mentor की पूरी टीम उनका भी पूरा सम्मान करती है और देश के लिए दिए उनके बलदानों के लिए उनका धन्यवाद भी करती है। 

तो चलिए अब हम आपके सामने freedom fighters in Hindi लिस्ट पेश करते है -:

Mangal Pandey Ji

मंगल पाड़े का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर पदेश के बलिया जिले के एक गाँव नगवा में हुआ था। इनका जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

इनके जन्म को लेकर इंतिहासकारों की अलग अलग राय है, कईं इतिहासकार इनका जन्म फैजाबाद जिले के अकबरपुर तहसील में भी बताते है। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम अभय रानी था।

इन्होंने भारत की आजादी की पहली लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी, बहुत लोग इन्हें भारत का प्रथम स्वतरंता सेनानी भी मानते है।

वह पहले ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती हुए थे, वह सेना में पैदल सेना के सिपाही थे, जिनमें उनका सिपाही नंबर 1446 था।

1857 में जब अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ पहली बार विद्रोह किया गया, उस विद्रोह में मंगल पांडे जी का अहम योगदान था।

1857 में हुआ यह विद्रोह ही भारत की आजादी के जंग में नींव की तरह साबित हुआ, इस विद्रोह के बाद ही भारत में आजादी के लिए लड़ाई की लहर दौड़ गई थी।

मंगल पांडे जी को इस विद्रोह की वजह से ईस्ट इंडिया कंपनी ने गद्दार घोषित कर दिया था और फिर 8 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी दे दी गई।

Facts about Mangal Pandey

यह है मंगल पांडे जी के बारे में कुछ अहम बातें -:

  • इन्होंने ने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ पहली जंग शुरू की थी। 
  • जब वह east इंडिया कंपनी सेना में थे तो उस समय कंपनी ने सेना को गाय और सूअर के मास से बने कारतूस दिए थे, लेकिन भारत के बहुत सारे सैनिकों ने उन्हें इस्तेमाल करने से मना कर दिया था, क्यूंकी कारतूस को मुँह से छीलना पड़ता था, उस समय भारतीय हिन्दू और मुस्लिम सैनिकों ने विद्रोह किया था और मंगल पांडे जी ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया था।
  • कहा जाता है की मंगल पांडे जी अंग्रेजी हकूमत के इस फैसले पर इतना गुस्सा थे की उन्होंने अंग्रेजी Lieutenant Baugh पर गोली चला दी, गोली का निशाना तो चूक गया था, लेकिन Lieutenant को वहाँ से जान बचा कर भागना पड़ गया था।
  • इनके जीवन पर मंगल पांडे – दी राइज़ींग नाम से मूवी बन चुकी है, जिसमें आमिर खान जी ने मुख्य किरदार निभाया।

महात्मा गाँधी

Mahatma Gandhi Ji

हमारी इस freedom fighters in Hindi की लिस्ट में अगला नाम है महात्मा गांधी जी का। उनका पूरा नाम था मोहनदास कर्मचंद गांधी।

उनके पिता का नाम कर्मचंद गांधी और माता का पुतलीबाई था। उन्होंने देश को आजाद करवाने में एक बहुत अहम भूमिका निभाई।

वह एक बहुत साफ दिल और साधारण जीवन जीने वाले व्यक्ति थे, वह जो धोती पहनते थे उसके लिए सूत वह खुद चरखा चला कर कातते थे।

देश को आजाद करवाने के लिए उन्होंने कईं आंदोलन किए, वह कहीं पर भी अन्याय होता हुआ नहीं देख पाते थे। साउथ अफ्रीका में अश्वेत लोगो पर हो रहे जुल्म पर भी गांधी जी ने अपनी आवाज उठाई थी।

उनके इन योगदानों और उनके विचारों के वजह से आज केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरा विश्व उनसे प्रेरणा लेता है। उनके अहम योगदानों की वजह से भारत में उन्हें राष्ट्रपिता कहा जाता है।

Facts about Mahatma Gandhi Ji

यह है महात्मा गांधी जी के बारे कुछ facts जो की आपको पता होने चाहिए -:

  • उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा Alfred हाईस्कूल, राजकोट से प्राप्त की थी।
  • उनके जन्म दिवस 2 अक्टूबर को पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाया जाता है।
  • महात्मा गांधी जी के 2 बड़े भाई और 1 बड़ी बहन थी।
  • महात्मा गांधी जी को महात्मा का टाइटल रबिंद्रनाथ टैगोर जी ने दिया था।
  • गांधी जी को 5 बार नोबेल पीस प्राइज के लिए नॉमिनेट किया गया था, पहली बार सन 1937, 1938, 1939, 1947 और उनकी मृत्यु से कुछ दिन पहले यानी की जनवरी 1948 में।

आपको यह भी पसंद आएगा -: Essay on Mahatma Gandhi in Hindi

शहीद सरदार भगत सिंह जी

Shaheed Bhagat Singh Ji

जब भी freedom fighters in Hindi की बात होती है तो सरदार भगत सिंह जी का नाम जरूर लिया जाता है।

आखिर लिया भी क्या ना जाए देश की आजादी में जो उनके योगदान है, उसके लिए पूरा भारत उनका आभारी है।

भगत सिंह जी का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था और केवल 24 वर्ष की उम्र में 23 मार्च 1931 को वो देश के लिए शहीद हो गए।

उन्हें अंग्रेजी सरकार द्वारा फांसी दे दी गई थी, भगत सिंह जी के विचार बाकी स्वतंत्रता सेनानियों से अलग थे, इसलिए अधिकतर स्वतंत्रता सेनानी उनका खुल के समर्थन नही कर पाते थे।

लेकिन भगत सिंह जी हर एक सेनानी की सोच का मान रखते थे, जिन स्वतंत्रता सेनानियो की सोच उनसे अलग थी, वह उन्हे भी पूरा सम्मान दिया करते थे।

भगत सिंह जी ने देशवासियों के मन में देश की आजादी के चिंगारी जगाने में बहुत अहम योगदान दिया।

Facts about Bhagat Singh Ji -:

यह है सरदार भगत सिंह जी से जुड़ी कुछ बातें -:

  • जब भगत सिंह जी के माता पिता उनकी शादी करवाना चाहते थे तो भगत सिंह जी ने यह कह कर घर छोड़ दिया था की अगर देश की आजादी से पहले मेरी शादी होगी तो मेरी दुल्हन केवल मौत होगी।
  • उन्होंने और बटुकेश्वर दत्त जी ने मिलकर असेंबली हॉल, दिल्ली में बम फेंके थे और इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे लगाए थे। वहां पर बम गिराने के बाद वह भागे नही बल्कि खुद पकड़े गए थे।
  • पकड़े जाने पर उन्होंने किसी तरह का डिफेंस नही मांगा और इसे भारत में आजादी की जज्बे को फैलाने के लिए प्रयोग किया।
  • उन्हें मौत की सजा 7 अक्टूबर 1930 को सुनाई गई थी। जेल में रहते हुए उन्होंने भारतीय कैदियों और बाहरी कैदियों के बीच हो रहे भेदभाव को देखकर भूख हड़ताल कर दी थी।
  • भगत सिंह जी पर बहुत फिल्में बनी है, लेकिन उनमें से The Legend of Bhagat Singh मूवी सबसे अधिक प्रसिद्ध है, इस मूवी में अजय देवगन जी ने प्रमुख भूमिका निभाई है।

सुभाषचद्र बोस 

Subhash Chandra Ji

अगली महान शख्सियत जो की हमारी इस freedom fighters in Hindi लिस्ट में है, वह है सुभाष चंद्र बोस।

सुबास चंद्र बोस जी का जन्म 23 जनवरी 1897 में हुआ था और उनकी मृत्यु 18 अगस्त 1945 में देश की आजादी से तकरीबन 2 साल पहले हो गई थी।

सुभाष चंद्र बोस जी को सब लोग नेताजी सुभाष चंद्र बोस कहते है। उन्होंने देशवासियों को आजादी के लिए लड़ने की प्रेरणा दी।

उन्होंने नारा दिया था “तुम मुझे खून दो, मै तुम्हें आजादी दूंगा”। यह नारा आज भी सभी भारतीयों के दिलो में पत्थर पर लिखें अक्षरों की तरह छपा हुआ है।

सुभाष चंद्र बोस ने देश की आजादी की लड़ाई में बहुत अहम योगदान दिया।

Facts about Subhas Chandra Bos

यह है सुभाषचंद्र बोस से जुड़ी कुछ बातें -:

  • सुभाष चंद्र बोस जी स्वामी विवेकानंद जी और श्री रामकृष्ण परमहंसा जी के विचारो से बहुत प्रभावित थे।
  • सुभाष चंद्र बोस जी देश की आजादी के लिए लड़ते हुए 11 बार जेल गए।
  • नेताजी ने जर्मनी में रहते हुए देश की आजादी के लिए लोगो को बहुत सपोर्ट हासिल की।
  • नेताजी की मौत आज भी एक रहस्य है, लेकिन अधिकतर लोगो का कहना है की उनकी मौत ताइवान में हुए प्लेन क्रैश के समय 18 अगस्त 1945 को हो गई थी।
  • कईं लोगों का मानना है की उनकी मौत प्लेन क्रैश में हुई थी और यह वहाँ से बचकर, अपनी पहचान छुपा कर रहने लगे थे।

चंद्रशेखर आज़ाद

Chandra Shekher Ji

चंद्रशेखर आजाद जी का जन्म 23 जुलाई 1906 को वर्तमान अलीराजपुर जिले में हुआ था, उनका नाम चंद्र शेखर तिवारी था। उन्हें आजाद और पंडित जी जैसे उपनामों से बुलाया जाता था।

वह शहीद भगत सिंह जी के साथी थे, वह 9 अगस्त 1925 को हुए काकोरी काण्ड में शामिल थे, जिसमें अंग्रेजी सरकार के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए हथियार खरीदने के लिए अंग्रेजी सरकार का ही खजाना लूट लिया गया था।

उन्होंने भगत सिंह जी के साथ मिलकर लाल लाजपत राय जी की मौत बदला लिया। उन्होंने भगत सिंह जी के असेंबली में बम फेंकने में भी सहायता की।

27 फरवरी 1931 को अंग्रेजी सरकार ने इन्हें अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया और इन्हें surrender करने का कहा, लेकिन इन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया और एक पुलिस इंस्पेक्टर को गोली मार दी।

चंद्र शेखर आजाद जी ने 5 गोलियां चलाकर, 5 लोगो की हत्या कर दी, उसके बाद उन्होंने अंतिम बची गोली खुद को मारकर आत्महत्या कर ली, इन्होने देश की आजादी के लिए देशवासियों में एक अलग ही हुंकार भर दी।

यदि कभी freedom fighters in Hindi जैसी किसी लिस्ट को पेश किया जा रहा हो और इनका नाम ना आएं, तो हम उस लिस्ट को कभी पूरा नहीं मानेंगे।

Facts about Chandra Shekhar Azad

यह है चंद्रशेखर आजाद से जुड़ी कुछ बातें -:

  • चंद्रशेखर आजाद 1921 में जब वह एक स्कूल स्टूडेंट हुए करते थे, तभी आजादी की जंग में हिस्सा लेने लगे थे।
  • इन्होंने गाँधी जी के द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में भाग लिया था, जिसकी वजह से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, जब उन्हें जज के सामने पेश किया गया तो उन्होंने वहाँ अपना नाम आजाद बातया।
  • उन्होंने जब अपने आपको आजाद नाम दिया था, उन्होंने तब यह शपथ ली थी की पुलिस उन्हें कभी जिंदा नहीं पकड़ पाएगी।
  • आजाद जी एक लाइन को बहुत बाहर दोहराया करते थे, जो की कुछ इस प्रकार है “दुश्मनों की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही थे और आजाद ही रहेंगे।”
  • इनके अपने साथी ने ही अंग्रेजों को बताया था की यह अल्फ्रेड पार्क में मोजूद है और यह वहाँ कितनी देर रहेंगे।
  • इनके जीवन पर एक मूवी बनाई गई है, जिसका नाम है शहीद चंद्रशेखर आजाद, इस मूवी में इनकी कहानी को दिखाया गया है।

रानी लक्ष्मी बाई

Rani Lakshmi Bai

हमारी इस freedom fighters in Hindi लिस्ट में अब हम एक महिला के बारे में बात करेंगे।

नीचे हमनें महिला freedom fighters in hindi के लिए एक अलग लिस्ट बनाएंगे, लेकिन हम झांसी की रानी जी के हौंसले से इतना प्रेरित है की हम उनका नाम यहां लिखें बिना नही रह पाए।

रानी लक्ष्मी बाई यानी झांसी की रानी, इनके बारे में जो कुछ भी कहा जाए कम है, इनके नाम को सुनकर ही मन में एक अलग प्रकार का होंसला उत्पन्न हो जाता है।

इनपर एक कविता भी लिखी गई है “खूब लड़ी मर्दानी, वो झांसी वाली रानी थी”।

यह कविता को हम जितनी भी बार पढ़ ले, हमारी आंखों में आसूं आ जाते है, रानी लक्ष्मी बाई के हौंसले के बारे में बात करने के हम खुद को लायक भी नहीं समझते।

इनका जन्म 19 नवंबर 1828 को हुआ था, वह झांसी राज्य की रानी थी, उनके पिता का नाम मोरोपन्त ताम्बे और माता का नाम भागीरथी सापरे था, उनका विवाह झांसी नरेश महराज गंगाधर राव नवेलकर से हुआ था।

उन्होंने 29 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ युद्ध किया, वह पूरे साहस के साथ युद्ध में लड़ी, युद्ध के दौरान ही सिर पर तलवार लगने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई, वह 18 जून 1858 को शहीद हुई थी।

Facts about Rani Lakshmi Bai

यह है रानी लक्ष्मी बाई से जुड़ी कुछ बातें -:

  • इनको इनके माता पिता ने मणिकर्णिका नाम दिया था और इन्हें प्यार से मनु कह कर बुलाया जाता था, शादी के बाद इनको रानी लक्ष्मी बाई के नाम से जाना जाने लगा।
  • उनके पिता ने उन्हीं तीरंदाजी जैसे कईं युद्ध कौशल उनको छोटी उम्र से ही सीखने लगे थे।
  • उन्होंने केवल 4 वर्ष की उम्र में ही अपनी माता को खो दिया था, उनकी माता की मृत्यु के बाद उनके पिता जी ने बड़े लाड़ प्यार से उनको पालन पोषण किया।
  • जब झांसी के महाराज यानि की उनकी पति की मृत्यु हुई तो 1853 में केवल 18 वर्ष की आयु में उन्होंने झांसी राज्य को संभालना शुरू किया।

लाल बहादुर शास्त्री

Lal Bhadur Shashtri

हमारी आज की इस freedom fighters in Hindi लिस्ट में जो अगला नाम है, वह है लाल बहादुर शास्त्री जी का।

लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने थे, उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 में वाराणसी में हुआ था।

उन्होंने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की,शास्त्री जी ने देश की आजादी के संघर्ष में अहम योगदान दिए।

उन्होंने देश के प्रधानमंत्री मंत्री बनने के बाद लगभग 18 महीनो तक देश की सेवा की।

लेकिन फिर 11 जनवरी 1966 को सोवियत संघ रूस में इनकी मृत्यु हो गई।

Facts about Lal Bahadur Shashtri

यह है लाल बहदूर शास्त्री से जुड़ी कुछ बातें -:

  • लाल बहादुर शास्त्री जी के पिता की मृत्यु तभी हो गई थी, जब वह केवल डेढ़ साल के थे।
  • उनके पिता की मृत्यु के बाद उनकी माता जी अपने तीन बच्चों के साथ अपने पिता यानि की शास्त्री जी के नाना जी के घर चले गए, शास्त्री जी का पालन पोषण फिर वहीं पर हुआ।
  • उन्होंने वाराणसी से हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त की, जहां पर वह नंगे पाँव कईं किलोमीटर दूर अपने स्कूल जाया करते थे।
  • यह गाँधी जी के विचारों से बहुत प्रेरित थे और कमाल के इत्तेफाक की बात है की इनका जन्मदिवस भी गाँधी जी के साथ ही आता है।
  • इनकी मौत को बहुत लोग रहस्यमयी मानते है, इनकी मौत के स्पष्टीकरण पर सवाल उठाते हुए The Tashkent Files नाम की एक मूवी भी बनी है।

List of Some Other Freedom Fighters in Hindi

हमारे देश को आजाद करवाने में इतने लोगों ने अहम योगदान दिया है की उन सब का नाम यहाँ बता पान बहुत मुश्किल है। 

फिर भी हम पूरी कोशिश कर रहे है की आपको अधिक से अधिक लोगों के बारे में बता सकें, तो यह रहीं कुछ ओर freedom fighters in Hindi की लिस्ट -:

Freedom Fighters in Hindiउनके बारे में कुछ बात 
लाला लाजपत रायइन्होंने देश में कुछ स्कूल स्थापित करवाए, उसके साथ इन्होंने पंजाब नैशनल बैंक और हिन्दू ऑर्फन रीलीफ मूवमेंट की नींव रखी।
नाना साहबनाना साहब जी ने अंग्रेजों द्वारा दिए गए प्रस्तावों को ठुकरा दिए और 1857 में हुए युद्ध में एक अहम भूमिका निभाई। इन्होंने पुणे के विकास में बहुत योगदान दिया।
सरदार वल्लभभाई पटेलइन्हें भारत का लौह पुरुष भी कहा जाता है, उन्होंने आजादी के बाद भारत का एकीकरण करने में अहम भूमिका निभाई।
दादा भाई नौरोजीइन्हीं भारत का “Grand old man‘ भी कहा जाता है, वह एक उच्च राष्ट्रवादी नेता और राजनेता थे।
तांत्या टोपेतांत्या टोपे का नाम तो आपने सुना ही होगा, यह भारत के प्रथम स्वत्रता संग्राम में प्रमुख सेनानायक थे।
शहीद उधम सिंहशहीद उधम सिंह जी भी एक फ्रीडम फाइटर थे, इन्होंने जलियाँवाले भाग हत्याकांड का बदल लेने के लिए जनरल Michael ‘O’Dwyer
गोपाल कृष्ण गोखलेगोपाल कृष्ण गोखले भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के प्रसिद्ध नरमपंथी थे।
राज गुरुराज गुरु जी भागत सिंह जी और सुखदेव जी के साथी थे, इन्होंने भी देश की आजादी के लिए अपना योगदान दिया, इन्हें भी भगत सिंह जी और सुखदेव जी के साथ फांसी दी गई थी।
सुखदेव थापरसुखदेव जी स्वतंत्रता क्रांतिकारी थे, यह भगत सिंह जी के साथी थे और उन्हें भी भगत सिंह जी के साथ फांसी दी गई थी।
राम प्रसाद बिस्मिलराम प्रसाद बिस्मिल जी भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे, इन्हें भी अंग्रेजी सरकार द्वारा फांसी दी गई थी।
खुदीराम बोसखुदीराम जी ने भी देश की आजादी के लिए बहुत लड़ाईयो में अपना योगदान दिया और 18 वर्ष की उम्र में शहीद हो गए, अंग्रेजी सरकार ने इन्हें फांसी दी थी।
भीमराव अम्बेडकरयह डॉ बाबासाहेबअंबेडकर के नाम से लोकप्रिय थे, यह अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाजसुधारक थे।

Woman Indian Freedom Fighters in Hindi

यह रहीं कुछ महिला freedom fighters in Hindi, जिन्होंने हमारे देश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई।

Woman Freedom Fighters in Hindiउनके बारे में कुछ बात 
झांसी की रानीसन 1857 में हुए विद्रोह में झांसी की रानी यानि रानी लक्ष्मीबाई जी ने अपना अहम योगदान दिया था।
सावित्रिभाई फुलेइन्होंने लड़कियों पर हो रहे उत्पीड़न और उनकी शिक्षा को लेकर अपनी आवाज उठाई और महिलाओ को उनका अधिकार दिलवाने के लिए अपना अहम योगदान दिया।
सरोजिनी नायडूइन्होंने महिला उत्पीड़न के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई, यह INC की पहली प्रेसीडेंट थी, यह उत्तरप्रदेश के गवर्नर पद पर भी रही।
सुचेता कृपलानिइन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था, यह गाँधी जी के सबसे कारीबियों में से एक थी, वह भारत के किसी भी राज्य की मुख्यमंत्री बनने वाली पहली महिला है। 
किटटूर रानी चेन्नम्मा1857 के विद्रोह से 33 साल पहले ही इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था और युद्ध में यह पूरे साहस के साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुई।
बेगम हजरत महलयह भी 1857 के युद्ध में एक अहम भूमिका में थी, इन्होंने ग्रामीणों को अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध एक जुट करने का कार्य किया।
विजयलक्ष्मी पंडितयह जवाहरलाल नेहरू जी की बहन थी, इन्होंने भी देश की सेवा में अपना बहुत योगदान दिया।
भीकाजी कामायह इन प्रवक्ताओ में से एक थी जिन्होंने भारतीय होम रूल सोसायटी को स्थापित किया था, यह साहित्य में भी रुचि रखती थी, उन्होंने कई क्रांतिकारी साहित्य लिखे।
अरुणा आसफ अलीइन्होंने देश की आजादी के लिए लड़ी गई लड़ाइयों में हिस्सा लिया, उसके साथ यह तिहार जेल में राजनीतक कैदीओं की हक के लिए लड़ाई लड़ी, जिस वजह से इन्हें कलकोठरी की सजा सुनाई गई। 
ऊषा मेहताइन्होंने केवल 8 वर्ष की उम्र में ही साइमन गो बैक विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया, इसके बाद इन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भी हिस्सा लिया।

Essay on Freedom Fighters in Hindi

बहुत सारे लोगो ने हमें आज़ादी दिलाने के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए, हम देश के लिए उनके किये बलिदानो के लिए सदा उनके आभारी रहेंगे। 

अधिकतर सेनानी तो ऐसे है जिन्होंने जिस आज़ादी के लिए अपने प्राण भी दे दिए, उन्हें वह आज़ादी देखने के लिए भी नहीं मिली।

उन्होंने हमारे लिए इतना सब कुछ किया है तो यह हमारी ज़िम्मेदारी बनती है की हम उनके आज इस दुनिया में ना होने के बावजूद हमेशा उनको याद रखें। 

हमें उन्हें हमारे दिलो में हमेशा के लिए ज़िंदा रखना है, तो ऐसे में सब यह चाहते है की आने वाली पढियाँ भी उन्हें हमेशा याद रखें। 

आने वाली भी पढियाँ भी यह समझे की जिस हवा में वह सांस ले रहे है, उस हवा में हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष और ज़ज़्बे की महक है।

ताकि आने वाली पढियाँ भी उन्हें याद रखें इसलिए स्कूलो, कॉलेजों में freedom fighters in hindi पर निबंध लिखवाये जाते है। 

हम भी इस ब्लॉग में एक निबंध हमारे स्वतंत्रता सेनानियों पर लिख रहे है ताकि आप उनके बलिदानो को और अच्छे से समझ सकें। 

Indian Freedom Fighters in Hindi

भारत बहुत सालों तक अंग्रेजो की क्रूरता को सहता रहा और उनके अधीन रहा, लेकिन 15 अगस्त 1947 को हमारे देश को आज़ादी मिली। 

लेकिन यह आज़ादी ऐसे ही नहीं मिली बहुत लोगो बलिदानो के बाद हमें यह आज़ादी मिली, वो लोग जो की देश की आज़ादी के लिए लड़े, वह थे हमारे freedom fighters यानि की स्वतंत्रता सेनानी।

बहुत सारे स्वतंत्रता सेनानियों के प्रयासों के बाद जा कर हमें यह आज़ादी मिली है, उन लोगों ने लगातार अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ अपनी आवाज़ उठायी। 

जिसकी वजह से उनमें से कईं को जेल जाना पड़ा, कई लोगो की हत्या कर दी गयी और कईं लोगो को बुरी तरह से प्रताड़ित किया। 

लेकिन इसके बावजूद हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने हार नहीं मानी, उन्होंने उनके सामने आयी हर चुनौती का सामना किया, अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ होने के वजह से उनपर कईं तरह के ज़ुल्म भी किये गए। 

पकडे जाने पर उन लोगो के साथ जानवरो से भी बुरा सुलूक किया जाता था। लेकिन उन सब के मन में एक ही बात थी की उन्हें अपने देश को आज़ाद कराना है।

इसलिए उन्होंने उन पर हुए हर ज़ुल्म का सामना किया और देश के लिए लड़े, वह भी हमारे जैसे आम नागरिक ही थे, लेकिन उनमें एक ज़ज़्बा था की वह अपने देश के लिए कुछ करेंगे। 

उनमें से बहुत लोगो को लड़ना नहीं आता था, लेकिन वह लोग फिर भी जंग में उतरे, उनमें से कहीं शारीरक रूप से ताक़तवर नहीं थे, लेकिन उनके हौसले के आगे शक्तिशाली से शकितशाली व्यक्ति भी हार जाता था।

वह सब लोग एक जैसे नहीं थे, उनमें असमानताएं थी लेकिन एक चीज़ जो समान करती थी, वह थी उनका देश के लिए प्यार और देश को आज़ादी दिलाने का उनका ज़ज़्बा। 

वह अपने से ऊपर अपने देश को मानते थे, इसलिए असामनातये होने के बावजूद भी वह लोग एक साथ एक जुट होकर अंग्रेजो के खिलाफ लड़े और उन्होंने हमारे देश को आज़ादी दिलाई। 

हमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों से प्रेरणा लेनी चाहिए और समझना चाहिए की व्यक्ति का सम्प्रदायिकता नहीं समझना चाहिए, इन सब से ऊपर एक चीज़ होती है वह है देश। 

देश से ऊपर कोई धर्म नहीं होता और ना ही कोई जात होती है, इसलिए हम सब को एक जुट होकर रहना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए की कैसे हम अपने देश के हित में काम आ सकते है।

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Conclusion about Freedom Fighters in Hindi

तो यह था आज का ब्लॉग “Freedom fighters in Hindi” के बारे में। 

हमें उम्मीद है की आपको आज का यह ब्लॉग पसंद आया होगा, इसमें हमें आपको हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी दी। 

हमारे देश को आज़ादी के लिए बहुत अधिक लोगो ने अपने बलिदान दिए है, उनकी वजह से ही हम आज इस आज़ाद देश में जी रहे है। 

हमें उनके बलिदानों को हमेशा याद रखना चाहिए और हमेशा उन्हीं अपने दिलो में ज़िंदा रखना है। 

तो इसी के साथ आज के ब्लॉग में इतना ही, ऐसे ही ओर ब्लॉग्स को पढ़ने के लिए आप course mentor से जुड़ें रहें। 

FAQ about Freedom Fighters in Hindi

फ्रीडम फाइटर को हिंदी में क्या बोलते हैं.

फ्रीडम फाइटर को हिंदी में स्वतंत्रता सेनानी कहते  है, यानि की ऐसे लोग जिन्होने देश को आज़ादी दिलाने के लिए क्रांति की हो, उन लोगो को फ्रीडम फाइटर कहा जाता है। महात्मा गाँधी जी, भगत सिंह जी जैसे बहुत से लोग हमारे फ्रीडम फाइटर है।

भारत में प्रथम स्वतंत्रता सेनानी कौन है?

भारत का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे जी को कहा जाता है, वह अंग्रेजी सेना में एक सिपाही थे। 1857 में जब अंग्रेजो के खिलाफ भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ था, उस संग्राम में इन्होने बहुत भूमिका निभाई थी। 

देश आजाद कराने में कौन कौन थे?

भारत को आज़ाद कराने में किसी एक व्यक्ति का हाथ नहीं था, बहुत सारे लोगो के निरंतर प्रयास के बाद भारत को आज़ादी मिली, लेकिन जिन्होंने इस लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी उनमें से कुछ लोग इस प्रकार है -: 1. मंगल पांडे 2. सरदार भगत सिंह 3. महात्मा गाँधी जी 4. सुभाषचंद्र बोस 5. चंद्रशेखर आज़ाद। 

  • Tags freedom fighters in hindi , indian freedom fighters

freedom struggle of india essay in hindi

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समुदायों की भूमिका पर निबंध – मुफ्त पीडीएफ डाउनलोड

Published by team sy on september 10, 2023 september 10, 2023.

Role of Tribal Uprising in Freedom Struggle Essay in Hindi: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास एक ऐसे उद्घाटन के साथ जुड़ा हुआ है जिसमें जनजाति समुदायों का महत्वपूर्ण योगदान है। इस लेख में हम जनजाति समुदायों के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका पर गौर करेंगे, जिनके उप्रोक्त और आंदोलनों ने ब्रिटिश शासन की गुलामी और न्यायवादी नीतियों के खिलाफ उठाव किया। इन वीर उप्रोक्तों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के स्थापना और उसके सफलता की ओर महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया, और दिखाया कि स्वतंत्रता के लिए समृद्धि और निर्णय की शक्ति केवल शहरी अदिकारियों के हाथ में नहीं बल्कि आम भारतीयों के भी हैं।

Role of Tribal Uprising in Freedom Struggle Essay in English

Table of Contents

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समुदायों की भूमिका पर निबंध

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समुदायों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सांथाल और कोल विद्रोह जैसे मुख्य उप्रोक्त और बीरसा मुंडा के आंदोलनों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई। इन उप्रोक्तों के साहसपूर्ण प्रतिरोध ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को बढ़ावा दिया और नेताओं को प्रेरित किया।

ब्रिटिश शासन से मुक्ति की ओर भारत की स्वतंत्रता संग्राम की यह कहानी है जिसमें विविध और बहुप्रकारी आंदोलनों ने योगदान किया, जिसका परिणामस्वरूप 1947 में स्वतंत्रता हासिल की गई। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, और सुभाष चंद्र बोस जैसे प्रतीकात्मक व्यक्तियों को जिस तरह का महत्व मिलता है कि स्वतंत्रता संग्राम के विचारधारा में जनजाति उप्रोक्त कार्यशैली के महत्व को पहचानना महत्वपूर्ण है। इस निबंध का उद्देश्य है भारतीय स्वतंत्रता की खोज में जनजाति उप्रोक्त की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रकाश में लाना, उनके प्रेरणा स्रोतों की जांच करना, और उनकी बनाए रहने वाली विरासत को छूने का प्रयास करना है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

जनजाति समुदाय, जो भारत के आदिवासी समुदायों को शामिल करते थे, दूरदराज क्षेत्रों में बसे थे, जो मुख्य शहरों से दूर हैं, जहां प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम का प्रागल्भ्य हो रहा था। उनका जीवन गहराई से उनके आवासिय भूमि और प्राकृतिक संसाधनों से जुड़ा था, जिससे उन्हें ब्रिटिश औपचारिक नीतियों जैसे वन कानूनों और भूमि का अधिग्रहण करने के प्रति विशेष रूप से संविदानसम्म किया गया।

जनजाति उप्रोक्त के पीछे के कारण

  • शोषण और उत्पीड़न: ब्रिटिश शासन ने अक्सर जनजाति समुदायों का शोषण किया, जिससे उनकी पूर्वजों की ज़मीनों का त्याग, उनके पारंपरिक जीवन का दिलचस्प रूप में बिगाड़, और बेगर के रूप में प्रबल श्रमिक श्रम का शोषण होता था। इन अन्यायों के सामने कई जनजाति समुदायों के लिए उत्तेजना का कारण बन गए।
  • सांस्कृतिक और पहचान के संरक्षण: जनजाति समुदायों के पास अपनी सांस्कृतिक पहचानों, भाषाओं और परंपराओं के प्रति मजबूत आसक्ति थी। उन्होंने ब्रिटिश शासन को अपने अनूठे जीवन को बचाने के तरीके के रूप में अपने विरोध संगठन के माध्यम से देखा और अपनी धरोहर की रक्षा करने के लिए समझा।

जनजाति उप्रोक्त की योगदान

  • राष्ट्रीय जागरूकता का उत्थान: जनजाति उप्रोक्त ने राष्ट्रीय जागरूकता को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन आंदोलनों ने दिखाया कि स्वतंत्रता की लड़ाई केवल शहरी भड़काऊ वर्ग की नहीं बल्कि भारत के विभिन्न समुदायों की आकांक्षाओं को आवश्यक रूप से शामिल करती है। ये स्वतंत्रता संग्राम की समावेशनीता को बढ़ा दिया।
  • भूगोलिक विस्तार: जनजाति उप्रोक्त ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में घटित हुई, जैसे कि बिहार और बंगाल में सांथाल विद्रोह, मध्य भारत में बस्तर विद्रोह, और पूर्वोत्तरी पहाड़ियों में नागा और मिजो समूहों से आदान प्रदान किया। इस व्यापक भूगोलीक प्रतिभागन ने ब्रिटिश को उनके संसाधनों और ध्यान को फेर देने के लिए मजबूर किया।
  • ब्रिटिश बल का विपणन: ब्रिटिश औपचारिक प्रशासन को जनजाति उप्रोक्त दमन करने के लिए महत्वपूर्ण सैन्य संसाधनों को टूटने के लिए रोकना पड़ा, जिससे उनकी अन्य राष्ट्रीयवादी आंदोलनों को दबाने की क्षमता में कमी आई। इस परिणामस्वरूप गांधी जैसे नेताओं को संगठित करने और जनसंख्या को जुटाने के लिए बड़े शहरों के पास ज़िम्मेदार होने का मौका मिला।
  • बौद्धिक योगदान: जनजाति के नेता, जैसे कि बिरसा मुंडा और अल्लुरी सीताराम राजू, प्रतिरोध के प्रतीक रूप में प्रमुख चिन्हित हो गए और स्वतंत्रता संग्राम के बौद्धिक चर्चा में योगदान किया। उन्होंने अपने अपने अनूठे तरीकों से सामाजिक न्याय और स्वशासन की आवश्यकता को व्यक्त किया।

जनजाति उप्रोक्त की स्थायी विरासत

जनजाति उप्रोक्त की स्वतंत्रता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका का लगातार परिणाम है:

  • संविधानिक सुरक्षा: स्वतंत्र भारत का संविधान जनजाति समुदायों के साथ आनेवाले चुनौतियों को पहचानता है और उनकी सुरक्षा और विकास के लिए धाराओं को शामिल करता है। धारा 244 और 275 जैसे अनुच्छेद जनजाति परिषदों की स्थापना और जनजाति क्षेत्रों के लिए वित्तीय सहायता का प्रावधान करते हैं।
  • जनजाति प्रतिनिधि: भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में संविधानिक रूप से जनजाति समुदायों के लिए आरक्षित सीटें शामिल हैं, जिससे उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठापन और लोकतंत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी सुनिश्चित होती है।
  • सांस्कृतिक पुनर्जीवन: स्वतंत्र भारत के बाद, जनजाति समुदायों की सांस्कृतिक और परंपराओं को सुरक्षित और मनाने के लिए रुचि का पुनर्जागरण हुआ है। इस पहचान ने खत्म होने वाली भाषाओं को पुनर्जीवित करने, पारंपरिक ज्ञान को सुरक्षित करने, और जनजाति की भूमि की सुरक्षा करने के प्रयासों की ओर प्राधान किया है।
  • जनजाति स्वायत्तता: स्वतंत्र भारत में कई जनजाति जनप्रधान क्षेत्रों को अलग-अलग डिग्री की स्वायत्तता प्राप्त है, जिससे वे अपने परंपरागत कानूनों और परंपराओं के अनुसार अपने मामूली काम चला सकते हैं। इसके उदाहरण हैं पूर्वोत्तरी राज्यों में छहवें अनुसूचित क्षेत्र और 1996 के पंचायतों (अनुसूचित क्षेत्रों के लिए विस्तार) अधिनियम।

जनजाति समुदायों का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण और अक्सर अनदेखा होता है। जनजातियों के पीछे की मोटिवेशन उनकी भूमि, संसाधनों, और पहचान से जुड़ी थी। ये आंदोलन राष्ट्रीय जागरूकता को जागरूक करने में, ब्रिटिश संसाधनों को विचारधारा बदलने में मदद करने में, और स्वतंत्रता संग्राम के बौद्धिक चर्चा को धन्य करने में महत्वपूर्ण थे। उनकी स्थायी विरासत स्वतंत्र भारत में जनजाति समुदायों के कल्याण और सशक्तिकरण की देखरेख के लिए संविधानिक सुरक्षा, राजनीतिक प्रतिनिधिता, और सांस्कृतिक पुनर्जीवन के प्रयासों की खास गुज़ारिश करती है। जनजाति उप्रोक्त की भूमिका को मान्यता देना, स्वतंत्रता की मार्ग में भारत की पूर्णिम विचारधारा को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।

FAQs on भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समुदायों की भूमिका

स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समुदायों का महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई और उप्रोक्तों के आंदोलनों से ब्रिटिश सत्ता को कमजोर किया, जिससे स्वतंत्रता संग्राम को और भी शक्तिशाली बनाया।

सांथाल और कोल विद्रोह जैसे मुख्य उप्रोक्त उप्रोक्त उपद्रोह ब्रिटिश शासन के अत्याचारी नीतियों के खिलाफ थे। ये आंदोलन जनजाति समुदायों के भूमि के त्याग, परंपरागत जीवन की बिगड़ती हुई धारा, और बेगर के रूप में ज़बरदस्त श्रमिक काम की नीतियों के खिलाफ उठे।

बीरसा मुंडा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए महत्वपूर्ण योगदान किया। उनका आंदोलन भूमि अधिग्रहण और मजबूर मजदूरी के खिलाफ था, जिससे उन्होंने जनजाति समुदायों की उन्नति और उनके अधिकारों की रक्षा की।

उत्तर-पूर्वी भारत में नागा और मिजो समुदायों के विरोधी आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम के अभियान के अंश थे। इन आंदोलनों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ उठी आवाज़ को मजबूत किया और उत्तर-पूर्वी भारत के जनजाति समुदायों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल किया।

नहीं, जनजाति समुदायों के उप्रोक्तों ने स्वतंत्रता संग्राम को केवल नागरिक अधिकारों की दिशा में बढ़ावा नहीं दिया। उनके आंदोलन ने राष्ट्रीय जागरूकता को जगाने, ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ आवाज़ उठाने, और सामाजिक न्याय की मांग करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके साहसपूर्ण प्रतिरोध ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को सामाजिक और आर्थिक मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाया।

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आजादी के 75 साल: देश के 5 ऐसे स्वतंत्रता सेनानी, जो इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गए

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नई दिल्ली, 10 अगस्त: भारत की आजादी के 15 अगस्त 2021 को 75 साल पूरे होने वाले हैं। भारत को स्वतंत्र कराने के लिए लाखों देशवासियों ने ब्रिटिश शासन से लड़ने के लिए अपना खून-पसीना बहाया है। सैकड़ों ने अंग्रेजी हुकूमतों के खिलाफ प्राणों की आहुति भी दी। इसमें से बहुत सारे स्वतंत्रता सेनानियों के नाम तो हम जानते हैं कि लेकिन कईयों के नाम इतिहास के पन्नों में गुम में हो गए हैं। महात्मा गांधी, भगत सिंह, रानी लक्ष्मी बाई, बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चंद्र बोस, मंगल पांडे और सरदार पटेल जैसे वीर स्वतंत्रता सेनानियों ने आजादी के मार्ग को प्रशस्त किया है। लेकिन इन नामों के अलावा कैसे ऐसे नाम भी हैं, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया है। स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ पर आइए हम आपको पांच ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बताते हैं, जो तिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गए हैं।

1. अवध बिहारी

1. अवध बिहारी

ये एक राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता सेनानी थे। अवध बिहारी ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थे। अंग्रेजी हुकूमतों के खिलाफ अवध बिहारी ने उत्तर प्रदेश और पंजाब में मोर्चा संभाला था। वह राम बिहारी बोस के आंदोलन से जुड़े हुए थे। अवध बिहारी ने ही ब्रिटिश अधिकारी लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंकने की योजना बनाई थी, जिन्होंने 1910 से 1916 तक भारत के वायसराय और गवर्नर-जनरल के रूप में काम किया था। अवध बिहारी को फरवरी 1914 में गिरफ्तार कर लिया गया था और मौत की सजा सुनाई गई थी। अवध बिहारी को 1 मई 1915 को अंबाला सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी।

2. खुदीराम बोस

2. खुदीराम बोस

खुदीराम बोस अपने बचपन से ही ब्रिटिश शासकों के खिलाफ थे। खुदीराम बोस ने अंग्रेजों पर कई बम हमले किए थे। ब्रिटिश शासकों के नाक में दम करने वाले खुदीराम बोस 19 साल की छोटी सी उम्र में ही शहीद हो गए थे। 11 अगस्त 1908 को बम हमलों के आरोप में खुदीराम बोस को मौत की सजा सुनाई गई थी। फांसी के वक्त उनकी उम्र 18 साल 7 महीने 11 दिन थी। फांसी से पहले उनके अंतिम शब्द थे, 'वंदे मातरम'। खुदीराम ने अंग्रेजों पर कई बम हमले किए थे। जिनमें सबसे प्रमुख था मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड पर किया गया बम हमला।

3. बटुकेश्वर दत्त

3. बटुकेश्वर दत्त

1900 की शुरुआत में एक भारतीय क्रांतिकारी थे। व्यापार विवाद बिल के विरोध में बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली में 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय विधान सभा में भगत सिंह के बम विस्फोट किए थे। उन्होंने "इंकलाब जिंदाबाद" का नारा भी लगाया था।

दिल्ली विधानसभा बम मामले में बटुकेश्वर दत्त को भगत सिंह के साथ ही आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। बटुकेश्वर दत्त ने भगत सिंह के साथ भारतीय राजनीतिक कैदियों के अपमानजनक व्यवहार के विरोध में एक ऐतिहासिक भूख हड़ताल भी शुरू की थी।

 4. राम प्रसाद बिस्मिल

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प्रसिद्ध काकोरी रेल डकैती की साजिश का नेतृत्व करने के लिए राम प्रसाद बिस्मिल का याद किया जाता है। राम प्रसाद बिस्मिल एक बहादुर क्रांतिकारी थी। राम प्रसाद बिस्मिल क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक सदस्यों में से भी एक थे। स्वतंत्रता सेनानी होने के अलावा बिस्मिल उर्दू और अंग्रेजी के एक महान कवि और लेखक भी थे। "सरफरोशी की तमन्ना" कविता भी उनके द्वारा लिखी गई है। काकोरी कांड में बिस्मिल को अशफाकउल्लाह खान और दो अन्य लोगों के साथ फांसी की सजा दी गई थी। 19 दिसंबर, 1927 को 30 साल की उम्र में बिस्मिल फांसी दे दी गई थी।

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5. उधम सिंह

जलियांवाला बाग हत्याकांड के पीछे जिम्मेदार शख्स जनरल माइकल ओ डायर की हत्या की साजिश उधम सिंह ने रची थी। कहा जाता है कि शहीद उधम सिंह ने जलियांवाला बाग नरसंहार देखने के बाद शपथ ली थी कि वह इसका बदला जरूर लेंगे। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद उधम सिंह ने माइकल ओ डायर की हत्या की। हालांकि महात्मा गांदी और जवाहर लाल नेहरू दोनों ने उस समय उधम सिंह के बदले की भावना की निंदा की थी।

महात्मा गांधी ने टिप्पणी की थी, "आक्रोश ने मुझे गहरा दर्द दिया है। मैं इसे पागलपन का कार्य मानता हूं ... मुझे आशा है कि इसे राजनीतिक निर्णय को प्रभावित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी"। वहीं नेहरू ने अपने अखबार नेशनल हेराल्ड में लिखा था, "हत्या के लिए खेद है, लेकिन यह पूरी उम्मीद है कि इसका भारत के राजनीतिक भविष्य पर दूरगामी प्रभाव नहीं पड़ेगा" लेकिन सुभाष चंद्र बोस शायद एक मात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने उधम सिंह के उठाए कदम की सराहना की थी। उधम सिंह को 31 जुलाई 1940 को माइकल ओ डायर की हत्या के लिए पेंटनविले जेल में फांसी दी गई थी।

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  • भारत के स्वतंत्रता सेनानी: 100 Freedom Fighters of India in Hindi

Great Freedom Fighters of India in Hindi

100 Freedom Fighters of India in Hindi में आज हम आपको देश के उन वीर नायकों से परिचित करायेंगे, जिनके कारण ही आज सभी देशवासी उस आजाद जिंदगी का आनंद उठा रहे हैं। जिसका सपना देखते-देखते वह इस दुनिया से रुख्सत हो गये, जिन्होंने इस उद्देश्य के लिये अपना सारा जीवन खपा दिया कि हम न सही तो कम से कम हमारे देश के वासी तो उस आजाद भारत में सांस ले सकें जिसकी हम आरजू ही करते रह गये।

देश के लिये प्राण न्यौछावर करने वाले में न तो पुरुष पीछे रहे हैं और न ही स्त्रियाँ। भारत को आजाद कराने में जितना योगदान गाँधीवादियों और अहिंसकों का रहा है, उससे कम क्रांतिकारियों का भी नहीं रहा है। आखिरकार दोनों का ही उद्देश्य अपने देश को आजाद कराना था। स्वतंत्रता के इस विराट आन्दोलन में सैकड़ों-हजारों वीरों ने अपनी आहुतियाँ समर्पित की हैं।

लेकिन देश सिर्फ उन कुछ महान नायकों के बारे में ही जानता है जिन्होंने सबसे आगे रहकर नेत्रत्व किया था। जिन्होंने स्वाधीनता आन्दोलन को हर बार एक नयी दिशा दी थी, पर वह गुमनाम लोग जो इन नेताओं के एक बार कहने पर अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर इस आन्दोलन में कूद पड़े थे, आज भी गुमनाम ही हैं।

वक्त की रेत ने समय बीतने के साथ उनके नामों को ढक लिया, पर भारत की आजादी में उनका प्रत्यक्ष योगदान उनके अद्रश्य हो जाने के बावजूद भी कम नहीं हुआ है। उन सभी अमर वीरों को ह्रदय से याद करते हुए आज हम आपको आजादी के मतवाले उन Indian Freedom Fighters के बारे में बतायेंगे, जिन्हें हर कृतज्ञ देशवासी को अवश्य ही जानना चाहिये।

सामान्य ज्ञान से जुडी यह जरुरी बातें हर किसी को जाननी चाहियें – India GK Facts in Hindi

1. Mahatma Gandhi महात्मा गाँधी

Indian Freedom Fighter 1: महात्मा गाँधी के बारे में कौन भारतीय नहीं जानता? आजादी के आन्दोलन का नेतृत्व करने और उसे अंजाम तक पहुँचाने की अपनी भूमिका का सफल निर्वहन करने के लिये कृतज्ञ राष्ट्र आज भी उन्हें राष्ट्रपिता के रूप में याद करता है। निर्विवाद रूप से यह महान महात्मा गाँधी ही हैं, जिन्हें देश को आजाद कराने के लिये सबसे ज्यादा श्रेय दिया जाता है। क्योंकि इन्होने ही उन सफल आंदोलनों की नींव रखी जिन्होंने अंग्रेजी सरकार की जड़ें हिला दीं।

2 अक्टूबर 1869 के दिन गुजरात के पोरबंदर में पैदा हुआ यह महान देशभक्त अपने उच्च आदर्शों और सिद्धांतों के कारण जन-जन का प्रिय बना। इनके पिता जहाँ रियासत के दीवान थे, वहीं माता पुतलीबाई एक धर्म प्राण महिला। 13 वर्ष की छोटी आयु में ही इनकी शादी हो गयी थी। बाद में यह इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर बने, लेकिन इनके जीवन में बदलाव आया दक्षिण अफ्रीका जाने के बाद।

जहाँ एक छोटी मगर महत्वपूर्ण घटना ने मोहनदास करमचंद गाँधी के महात्मा गाँधी बनने की पटकथा लिख दी। सन 1915 में उनके भारत आने के बाद भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन को एक नयी दिशा मिली। सन 1921 में उन्होंने कांग्रेस की बागडोर संभाली और उसके बाद वह लगातार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से तब तक Indian Freedom Fighters का नेतृत्व करते रहे जब तक कि देश आजाद नहीं हो गया।

2. Aurobindo Ghosh अरविन्द घोष

Indian Freedom Fighter 2: आजादी की लड़ाई में जितना योगदान महात्मा गाँधी का रहा है, उससे कम योगदान अरविन्द घोष का भी नहीं रहा है। अनेकों लोगों को यह जानना अविश्वसनीय और आश्चर्यजनक लग सकता है, लेकिन सत्य यही है। जहाँ महात्मा गाँधी जनसमूह के बीच रहकर और प्रत्यक्ष रूप से Freedom Movement मी भाग ले रहे थे, वहीँ श्री अरविन्द एकांत में और अप्रत्यक्ष रूप से स्वाधीनता आन्दोलन को दिशा दे रहे थे।

श्री अरविन्द ने बरसों तक जो एकांत साधना की थी वह सिर्फ योग के शिखर पर पहुँचने के लिये नहीं थी, बल्कि आजादी के लिये जरुरी वातावरण निर्मित करने के लिये थी। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत के आजाद होने के दो वर्ष बाद ही श्री अरविन्द ने क्यों अपनी नश्वर देह छोड़ दी?

15 अगस्त सन 1872 के दिन जन्मे श्री अरविन्द असाधारण प्रतिभा के धनी एक दार्शनिक और योगी ही नहीं, बल्कि एक सच्चे Freedom Fighter भी थे। लेकिन वह जल्दी ही समझ गये थे कि भारत को आजाद कराने के लिये सिर्फ स्थूल प्रतिरोध से काम नहीं चलेगा, बल्कि इसके लिये सूक्ष्म स्तर पर जाकर जन-जन के मन में आजादी की चिंगारी भड्कानी पड़ेगी। इस बारे में विस्तार से जानने के लिये श्री अरविन्द पर दिया हमारा दूसरा लेख पढ़ें।

Famous Indian Freedom Fighters in Hindi

3. bal gangadhar tilak बाल गंगाधर तिलक.

Indian Freedom Fighter 3: लोकमान्य तिलक के नाम से प्रसिद्ध बाल गंगाधर तिलक भी उन Freedom Fighters में थे जिन्होंने भारत को आजाद कराने में बड़ी भूमिका निभाई थी। 23 जुलाई सन 1856 के दिन महाराष्ट्र में जन्मे आजादी के इस मतवाले को दक्षिण-पश्चिम का सबसे बड़ा Freedom Fighter कहा जा सकता है। तिलक एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे।

ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता हुए, क्योंकि उस समय तक भारत में गांधीजी का आगमन नहीं हुआ था। Freedom Movement में प्रकाहर भूमिका निभाने के कारण ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकारी उन्हें “भारतीय अशान्ति के पिता” कहते थे। Freedom Struggle के दौरान दिया इनका नारा ‘स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मै इसे लेकर ही रहूँगा’ बहुत प्रसिद्ध हुआ था।

अपने समाचार पत्रों के जरिये इन्होने भारतीय जनता को अंग्रेजो की क्रूरता और हीन मानसिकता के बारे में बताया। अंग्रेजों का विरोध करने के कारण तिलक कई बार भी जेल गये। मरणोपरान्त श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गाँधी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा और जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय क्रान्ति का जनक बतलाया।

4. Jawahar Lal Nehru जवाहर लाल नेहरु

Indian Freedom Fighter 4: जवाहर लाल नेहरु की भूमिका आजादी के आन्दोलन में महात्मा गाँधी के पश्चात दूसरे नंबर की थी। 14 नवम्बर सन 1889 में जन्मे जवाहर लाल आगे चलकर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और अपनी मृत्यु होने तक इस पद पर रहे। उनके पिता मोतीलाल नेहरु ने भी एक Freedom Fighter के रूप में आजादी की लड़ाई में भाग लिया था।

सन 1912 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात वह भारत लौटे। यहाँ आकार उन्होंने वकालत शुरू की और फिर महात्मा गाँधी के संपर्क में आकर सक्रिय रूप से Freedom Struggle में शामिल हो गये। जवाहर लाल नेहरु ने आगे बढ़कर आंदोलनों का नेतृत्व किया और कई बार जेल भी गये।

5. Chandra Shekhar Azad चंद्रशेखर आजाद

Indian Freedom Fighter 5: चंद्रशेखर आजाद जिन्हें सारा देश ‘आजाद’ के नाम से जानता है, भारत के उन तीन सबसे प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे जिन्होंने Freedom Movement में भाग लेकर न सिर्फ सशस्त्र क्रांति का बिगुल बजाया, बल्कि देश के लाखों नौजवानों के दिल में देशभक्ति की लौ भी जलाई। 23 जुलाई 1906 के दिन मध्यप्रदेश के अलीराजपुर में जन्मे इस Freedom Fighter ने अंग्रेजों को नाको चने चबवा दिए थे।

सन् 1922 में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले काकोरी काण्ड को अंजाम दिया और फिर भगत सिंह और दूसरे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर स्वाधीनता आन्दोलन को धार दी।

चन्द्रशेखर आज़ाद ने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी। उनके बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारम्भ किया गया आन्दोलन और तेज हो गया। उनसे प्रेरणा लेकर हजारों युवक स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े और अंग्रेजों को देश छोड़कर भागना ही पड़ा।

Top Heros of Freedom Struggle in Hindi

6. maulna abul kalam azad मौलाना अबुल कलाम आजाद.

Indian Freedom Fighter 6: मौलाना अबुलकलाम आजाद जिनका पूरा नाम अबुलकलाम मुहीउद्दीन अहमद था, 11 नवम्बर, 1888 के दिन सऊदी अरब में पैदा हुए Indian Freedom Fighter थे, जिहोने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से आगे बढ़कर भाग लिया था। वह मुस्लिम समाज से सबसे चर्चित चेहरा थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता का समर्थन किया और सांप्रदायिकता पर आधारित देश के विभाजन का विरोध किया। मौलाना आज़ाद को एक ‘राष्ट्रीय नेता’ के रूप में जाना जाता हैं।

वह एक विद्वान, पत्रकार, लेखक, कवि, दार्शनिक थे और इन सबसे बढ़कर अपने समय के धर्म के एक महान विद्वान थे। महात्मा गांधी की तरह भारत की भिन्न-भिन्न जातियों के बीच, विशेष तौर पर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एकता के लिए कार्य करने वाले कुछ महान लोगों में से वह भी एक थे। तीन बार वह कांग्रेस के अध्यक्ष बने और स्वतंत्र भारत में वह भारत सरकार के पहले शिक्षा मंत्री बने।

7. Bhagat Singh भगत सिंह

Indian Freedom Fighter 7: भगत सिंह जिन्हें क्रांतिकारियों का सिरमौर कहा जाता है, एक असाधारण Freedom Fighter थे। 27 सितंबर 1907 के दिन पंजाब के लायलपुर में जन्मे भगत सिंह का पूरा नाम भगत सिंह संधू था। देश की आज़ादी के लिए जिस साहस के साथ, इन्होने शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता।

अपने प्राणों की परवाह न करते हुए इन्होने पहले लाला लाजपत रॉय की मौत का बदला लिया और फिर केन्द्रीय असेम्बली में बफ फेंककर अपने दुस्साहस से अंग्रेजों का दिल दहला दिया। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ विद्रोह को बुलंद करते हुए और सोये देश को जगाने के लिये इन्होने हंसते-हँसते फांसी के फंदे को चूम लिया।

8. Madan Mohan Malviya मदन मोहन मालवीय

Indian Freedom Fighter 8: 25 दिसंबर 1861 के दिन उत्तर प्रदेश के इलाहबाद में जन्मे पंडित मदन मोहन मालवीय एक महान स्वतंत्रता सेनानी (Freedom Fighter) तो थे ही, एक राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद, और बड़े समाज सुधारक भी थे। अपने महान कार्यों के चलते वह महामना कहलाये। मालवीय जी ब्रिटिश सरकार के निर्भीक आलोचक थे और जब तब अपने लेखों और भाषणों से जनता के मन में देशप्रेम की भावना को प्रज्जवलित करते रहते थे।

स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान वह कई बार लम्बे समय तक के लिये जेल गये। दो बार कांग्रेस के और तीन बार हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चुने गये। आजीवन देश सेवा में लगे रहने वाले मालवीय जी एक उच्च कोटि के वक्ता और लेखक थे। अपने धर्म के प्रति निष्ठावान एक प्रगतिशील ब्राहमण के रूप में उन्होंने सारे समाज के अभ्युदय के लिये काम किया जिसके लिये महात्मा गाँधी भी उनके बड़े मुरीद थे।

Eminent Indian Freedom Fighters with Images

9. lala lajpat roy लाला लाजपत राय.

Indian Freedom Fighter 9: लाला लाजपत राय लाल-बाल-पाल की उस तिकड़ी का एक अहम् हिस्सा हैं, जिसने देश में गाँधी के आगमन से पूर्व स्वाधीनता आन्दोलन को दिशा दी थी। 28 जनवरी 1865 को जन्मे लालाजी एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्हें पंजाब केसरी भी कहा जाता है। सन् 1928 में इन्होंने साइमन कमीशन के विरुद्ध एक प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गये थे।

गंभीर चोटों के कारण कुछ दिन पश्चात ही इस महान Freedom Fighter की मृत्यु हो गयी। लाला जी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा और चंद्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निर्णय किया, जिसे उन्होंने सफलता पूर्वक लिया भी। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के प्रमुख नेता थे।

10. Subhash Chandra Bose सुभाष चन्द्र बोस

Indian Freedom Fighter 10: नेताजी के नाम से प्रसिद्ध आजाद हिन्द फ़ौज के संस्थापक सुभाष चन्द्र बोस को कौन नहीं जानता? 23 जनवरी 1897 के दिन उडीसा के कटक में जन्मे सुभाष भारत के महान Freedom Fighters में से एक थे। आजादी के युद्ध में दिया उनका नारा ‘तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूँगा’ आज भी हर वीर भारतीय की जुबान पर रहता है।

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों को भारत से बाहर खदेड़ने के लिये उन्होंने जर्मनी और जापान के सहयोग से अपनी ही एक सेना आजाद हिन्द फ़ौज का गठन किया था। वह दो बार कांग्रेस अध्यक्ष भी बने। फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की और कई बार जेल गये। अंग्रेज इस महान वीर से इतने ज्यादा डर गये थे कि उन्होंने इन्हें इनके ही घर में नजरबन्द कर दिया था।

सुभाष ब्रिटिश सरकार की आँखों में धूल झोंककर विदेश निकल गये और बाहर रहते-रहते ही उन्होंने अपनी सेना का गठन कर लिया। जोश से लबरेज उनकी सेना ने अंग्रेजों को पूर्वोत्तर भारत से खदेड़ ही दिया था, लेकिन जापान के पराजित होने और फिर इस महान Freedom Fighter की प्लेन क्रैश में मृत्यु हो जाने के कारण उनका भारत को आजाद देखने का सपना जीते जी पूरा न हो सका।

11. Gopal Krishna Gokhle गोपाल कृष्ण गोखले

Indian Freedom Fighter 11: गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई, 1866 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ था। यह एक Freedom Fighter (स्वतंत्रता सेनानी) होने के साथ-साथ प्रखर समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक भी थे। महात्मा गाँधी गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। गोखले के परामर्श पर ही उन्होंने सक्रिय राजनीति में भाग लेने से पूर्व एक वर्ष तक देश में घूमकर स्थिति का अध्ययन करने का निश्चय किया था।

गांधी जी को अहिंसा के जरिए स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई की प्रेरणा गोखले से ही मिली थी। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सबसे प्रसिद्ध नरमपंथी थे। गोखले उदारवादी होने के साथ-साथ सच्चे राष्ट्रवादी भी थे। राष्ट्र की सेवा के लिए राष्ट्रीय प्रचारकों को तैयार करने हेतु गोखले ने 12 जून, 1905 को ‘भारत सेवक समिति’ की स्थापना की।

मोहम्मद अली जिन्ना ने भी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु माना था। यह बात अलग है कि बाद में जिन्ना गोखले के आदर्शों पर क़ायम नहीं रह पाए और देश के बंटवारे के नाम पर भारी ख़ूनख़राबा कराया।

20 Freedom Fighters Who Shaped History

12. lal bahadur shastri लाल बहादुर शास्त्री.

Indian Freedom Fighter 12: भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री रहे लाल बहादुर शास्त्री भी भारत के प्रसिद्ध Freedom Fighters में से एक रहे हैं। 2 अक्टूबर 1904 के दिन पैदा हुआ यह महान स्वतंत्रता सेनानी सादा जीवन उच्च विचार का मूर्तिमान प्रतीक था। देश की आजादी के लिये वह न केवल कई बार जेल गये, बल्कि अपनी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी से भी देशवासियों को भी अपना मुरीद बना लिया।

शास्त्रीजी सच्चे गाँधीवादी थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आन्दोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही। जिन आन्दोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन उल्लेखनीय हैं।

13. Vallabh Bhai Patel बल्लभभाई पटेल

Indian Freedom Fighter 13: आधुनिक भारत का निर्माण करने वाले सरदार बल्लभभाई पटेल को आखिर कौन भारतीय भूल सकता है? 31 अक्टूबर, 1875 के दिन गुजरात के नादियाड में जन्मे बल्लभभाई सही मायनों में एक लौह पुरुष ही थे। पहले पराधीन भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में और फिर भारत की आजादी के बाद देश के प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री के रूप में, उन्होंने देश को एक सूत्र में पिरोने में बड़ी अहम भूमिका अदा की।

महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहाँ की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की। बल्लभभाई एक Freedom Fighter और एक राजनेता दोनों ही रूपों में अपूर्व और असाधारण थे। एक ऐसे इन्सान जिस पर भारत आज भी गर्व करता है।

14. Rajendra Prasad राजेंद्र प्रसाद

Indian Freedom Fighter 14: स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने डा. राजेंद्र प्रसाद भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे। 3 दिसम्बर 1884 को बिहार में जन्मे प्रसाद देश की माटी से जुड़े हुए इन्सान थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाने के साथ-साथ उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था। राजेंद्र प्रसाद ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत वकालत के पेशे से की थी।

पर बाद में जब वह महात्मा गाँधी के संपर्क में आये, तो उनकी निष्ठा, समर्पण एवं साहस से प्रभावित होकर Freedom Movement में कूद पड़े। राजेंद्र बाबू देश की आजादी के लिये न केवल कई बार जेल गये, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित लोगों की सेवा करने में भी वह सबसे आगे रहे। 12 वर्षों तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के पश्चात उन्होंने 1962 में अपने अवकाश की घोषणा की।

Notable Indian Freedom Fighters in Hindi

15. ram prasad bismil राम प्रसाद बिस्मिल.

Indian Freedom Fighter 15: ब्रिटिश साम्राज्य को दहला देने वाले काकोरी काण्ड को जिस रामप्रसाद बिस्मिल ने अंजाम दिया था, वह 11 जून, 1897 के दिन उत्तरप्रदेश के शाहजहाँपुर जिले में पैदा हुए थे। भारत का यह महान स्वतन्त्रता सेनानी (Freedom Fighter) सिर्फ एक क्रांतिकारी ही नहीं, बल्कि उच्च कोटि का कवि, शायर, अनुवादक, व साहित्यकार भी था जिसने भारत की आज़ादी के लिये अपने प्राणों की आहुति तक दे दी थी।

इस अमर शहीद ने अपनी शहादत देकर आजादी की वो चिंगारी छेड़ी जिसने ज्वाला का रूप लेकर ब्रिटिश शासन के भवन को लाक्षागृह में परिवर्तित कर दिया। बिस्मिल के ह्रदय में अंग्रेजों से बदला लेने की हूक तब उठी जब लाहौर षड़यंत्र के मामले में सन 1915 में प्रसिद्ध क्रान्तिकारी भाई परमानंद को फाँसी की सजा सुना दी गयी। इसके बाद उन्होंने अपने जैसे विचार रखने वाले क्रांतिकारियों को साथ मिलाकर एक संगठन बनाया और सशस्त्र क्रांति का बिगुल बजाया।

16. Chittaranjan Das चितरंजन दास

Indian Freedom Fighter 16: 5 नवंबर, 1870 को बंगाल की राजधानी कोलकाता में जन्मे चितरंजन दास एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। गांधीजी के भारत आने से पहले वह मदन मोहन मालवीय, लाजपत रॉय, मोतीलाल नेहरु, गोखले और गंगाधर तिलक जैसे अग्रणी नेताओं के साथ उस समय स्वाधीनता आन्दोलन की धुरी थे। देश से असीम प्रेम करने के कारण ही उन्हें देशवासियों से देशबंधु की पदवी मिली। ये महान राष्ट्रवादी तथा प्रसिद्ध वकील होने के साथ-साथ स्वराज्य पार्टी के संस्थापक भी थे।

सन 1921 ई. में अहमदाबाद में हुए कांग्रेस के अधिवेशन के ये अध्यक्ष थे। इन्होने ही अलीपुर कांड में श्री अरविन्द का न्यायालय में बचाव किया था। गांधीजी के आह्वान पर उन्होंने वकालत का अपना बेहद कामयाब पेशा एकदम छोड़ दिया और असहयोग आंदोलन में भाग लिया। आजादी की लड़ाई में यह महान Freedom Fighter कई बार जेल गया। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस इन्हें अपना प्रेरणा स्रोत मानते थे।

17. Vinoba Bhave विनोबा भावे

Indian Freedom Fighter 17: आचार्य के उपनाम से प्रसिद्ध विनोबा भावे जिनका पूरा नाम विनायक नरहरी भावे था, सही मायनों में एक सच्चे गाँधीवादी थे। जिस तरह जवाहर लाल नेहरु को महात्मा गाँधी का राजनैतिक उत्तराधिकारी माना जाता है, उसी तरह से विनोबा भावे को उनका आध्यात्मिक उत्तराधिकारी माना जाता है। ज्यादातर लोग इन्हें इनके प्रसिद्ध सर्वोदय और भूदान आन्दोलन के जनक के रूप में ही जानते हैं, जबकि विनोबा उससे कहीं ज्यादा थे।

11 सितंबर 1895 के दिन महाराष्ट्र के रायगड में जन्में विनोबा एक सच्चे Freedom Fighter, चिन्तक, विचारक, लेखक और समाज सुधारक थे। आजादी की लड़ाई में वह कई बार जेल गये और देश आजाद होने के बाद भी दबे कुचले और निर्धन वर्ग के लिये मरते दम तक संघर्षरत रहे। उनकी सहिष्णुता, जीवन मूल्यों के प्रति निष्ठा, और संतवत जीवन के कारण लोग उन्हें दूसरा गाँधी मानते हैं।

Great Heroes of Indian Freedom Movement

18. khan abdul ghaffar khan खान अब्दुल गफ्फार खां.

Indian Freedom Fighter 18: सीमांत गाँधी के नाम से प्रसिद्ध खान अब्दुल गफ्फार खां का जन्म सन 1890 में भारत के उत्मंजाई में हुआ था। Freedom Movement में वह मुस्लिमों में सबसे लोकप्रिय मुस्लिम नेता थे। महात्मा गाँधी के विचारों और उनके त्याग से प्रभावित होकर वह आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। अपने करिश्माई व्यक्तित्व से उन्होंने मुस्लिम समाज को भी स्वाधीनता आन्दोलन से सक्रियता से जोड़ा। बचपन से ही वह अत्यंत दृढ़ स्वभाव के व्यक्ति रहे, इसीलिये उन्हें बाचा खान के रूप में पुकारा जाता था।

खुद को वह आजादी की लड़ाई का एक सैनिक मात्र कहते थे, लेकिन उनके समर्थक और प्रशंसक उन्हें बादशाह खान के नाम से बुलाते थे। राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेकर उन्होंने कई बार जेलों में घोर यातनायें झेली, फिर भी वह अपनी मूल संस्कृति से विमुख नहीं हुए। इस महान Freedom Fighter का सन 1988 में पाकिस्तान के पेशावर में निधन हुआ।

19. Govind Vallabh Pant गोविन्द वल्लभ पन्त

Indian Freedom Fighter 19: भारत के पर्वतीय राज्यों में आजादी की चिंगारी सुलगाने का श्रेय जाता है, महान Freedom Fighter श्री गोविन्द वल्लभ पन्त को, जिनका जन्म 10 सितम्बर 1887 को उत्तरांचल के अल्मोड़ा जिले में हुआ था। पन्त जी एक प्रतिष्ठित वकील, मिलनसार और उच्च जीवन मूल्यों के प्रति निष्ठावान इन्सान थे। स्वाधीनता आन्दोलन में इन्होने अंग्रेजों की पुरजोर खिलाफत की जिसके कारण इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा।

कुछ प्रमाणित स्रोतों की बात मानी जाय, तो पंतजी स्वतंत्रता संग्रामों में लगभग 7 वर्ष तक अलग-अलग समय जेल में रहे। इनकी आदर्शवादिता और देश के प्रति त्याग के कारण ही इन्हें उत्तर प्रदेश का प्रथम मुख्यमंत्री चुना गया था। यह अंग्रेजी और संस्कृत भाषाओँ के बड़े विद्वान थे। सन 1957 में भारत सरकार ने इन्हें देश के सर्वोच्च रत्न भारत रत्न से सम्मानित किया।

20. Vinayak Damodar Savarkar विनायक दामोदर सावरकर

Indian Freedom Fighter 20: 28 मई 1883 के दिन महाराष्ट्र के नासिक जिले में जन्मे विनायक दामोदर सावरकर, जिन्हें सारा देश वीर सावरकर के नाम से भी जानता है, एक प्रखर राष्ट्रवादी नेता और उन Freedom Fighters में से एक थे, जो देश की आजादी के लिये त्याग की किसी भी हद तक जा सकते थे। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा (हिन्दुत्व) को विकसित करने का बहुत बडा श्रेय सावरकर को जाता है।

वे न केवल स्वाधीनता-संग्राम के एक तेजस्वी सेनानी थे, अपितु महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता भी थे। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था।

अंग्रेजों के अन्दर इनकी वतनपरस्ती का खौफ इस कदर बस गया था कि इन्हें उस समय की सबसे खतरनाक सजा मानी जाने वाली काला पानी की सजा ताउम्र के लिये सुना दी गयी थी। अपने जीवन के 14-15 वर्ष इस महान Indian Freedom Fighter ने सिर्फ जेल की कठोर यातनाएँ सहने में ही बिताये थे।

Name of Indian Freedom Fighters in Hindi

अभी तक हमने आपको उन Male Freedom Fighters के बारे में संक्षिप्त रूप से बताया, जो देश के प्रति अपने त्याग और समर्पण से अपना यश अमर कर, लोगों के दिलों में हमेशा के लिये बस चुके हैं। अब हम आपको उन प्रसिद्ध और गुमनान Freedom Fighters के नामों से परिचित करायेंगे, जिनके बारे में समयाभाव के कारण हम कुछ विस्तार से वर्णन करने में असमर्थ हैं।

क्रम सं०, नाम, जीवनकाल 21,जयप्रकाश नारायण,1902-1979 22,मघफूर अहमद अजाजी,1900-1966 23,मौलाना मोहम्मद अली जौहर,1878-1931 24,अशफाक उल्ला खां,1900-1927 25,हैदर अली,1720-1782 26,टीपू सुल्तान,1750-1799 27,बहादुर शाह जफ़र,1775-1862 28,तात्या टोपे,1814-1859 29,मंगल पांडे,1827-1857 30,मुहम्मद इक़बाल,1877-1938

31,पीर अली खान,1812-1857 32,उधम सिंह,1899-1940 33,बाबू कुँवर सिंह,1777-1858 34,सुखदेव थापर,1907-1931 35, महफुजूल हसन रहमानी, 36,खुदीराम बोस,1889-1908 37,शिवराम राजगुरु,1908-1931 38,जाकिर हुसैन,1897-1969 39,आचार्य जे. बी. कृपलानी,1888-1982 40,फखरुद्दीन अली अहमद,1905-1977

41,चक्रवर्ती राजगोपाला चारी,1878-1972 42,सर्वपल्ली राधाकृष्णन,1888-1975 43,मदनलाल धींगरा,1883-1909 44,सैफुद्दीन किचलू,1888-1963 45,अब्दुल बारी,1892-1947 46,विपिन चन्द्र पाल,1858-1932 47,शौकत अली,1873-1938 48,एस. सत्यमूर्ति,1887-1943 49,आसफ अली,1888-1953 50,मौलवी लियाकत अली,1812-1892

51,सुबोध रॉय,1916-2006 52,अतुलकृष्ण घोष,1890-1966 53,अमरेन्द्रनाथ चटर्जी,1880-1957 54,भूपेन्द्रनाथ दत्त,1880-1961 55,विनोद बिहारी चौधरी,1911-2013 56,श्यामजी कृष्ण वर्मा,1857-1930 57,करतार सिंह सराभा,1896-1915 58,भवभूषण मित्रा,1881-1970 59,बसावन सिंह,1909-1989 60,सुरेन्द्रनाथ टैगोर,1872-1940

61,हेमचन्द्र कानूनगो,1871-1951 62,रमेशचंद्र झा,1925-1994 63,भूपेन्द्र कुमार दत्ता,1892-1979 64,उल्लासकर दत्त,1885-1965 65,प्रफुल्ल चाकी,1888-1908 66,बरिन्द्र कुमार घोष,1880-1959 67,राजेंद्र लाहिड़ी,1901-1927 68,बिनय बासु,1908-1930 69,बादल गुप्ता,1912-1930 70,दिनेश गुप्ता,1911-1931

71,अंबिका चक्रवर्ती,1892-1962 72,बैकुंठ शुक्ला,1907-1934 73,जोगेश चन्द्र चटर्जी,1895-1969 74,लोकनाथ बल,1908-1964 75,उबयदुल्ला सिन्धी,1872-1944 76,रास बिहारी बोस,1886-1945 77,गणेश घोष,1900-1994 78,भगवती चरण वोहरा,1904-1930 79,जतिंद्र नाथ दास,1904-1929 80,रोशन सिंह,1892-1927

81,अनंत लक्ष्मण कन्हेरे,1891-1910 82,वासुदेव बलवंत फडके,1845-1883 83,मन्मथ नाथ गुप्ता,1908-2000 84,शचीन्द्र बक्शी,1904-1984 85,बटुकेश्वर दत्त,1910-1965 86,बाघा जतिन,1879-1915 87,गणेश दामोदर सावरकर,1879-1945 88,कृष्णजी गोपाल कर्वे,1887-1910 89,वंचिनाथान,1886-1911 90,अनंत सिंह,1903-1979

91,सूर्य सेन,1894-1934 92,कुशल कुँवर,1905-1943 93,अल्लूरी सीताराम राजू,1897-1924 94,हेमू कलानी,1923-1943 95,कोमाराम भीम,1901-1940 96,अहमदुल्लाह शाह,1787-1857 97,मरुथू पांडियार,1748-1801 98,पुली थेवर,1715-1767 99,मरुथानायगम,1725-1764 100,तंगुतुरी प्रकाशम्,1872-1957

101,शम्भु दत्त शर्मा,1918-2016 102,सुब्रमण्यम भारती,1882-1921 103,वी. ओ. चिदंबरम पिल्लई,1872-1936 104,सेनापति बपत,1880-1967 105,पोट्टी श्री रामुलु,1901-1952 106,कन्हैया माणिकलाल मुंशी,1887-1971 107,गरिमेल्ला सत्यनारायण,1893-1952 108,तिरुपुर कुमारन ,1904-1932 109,बिरसा मुंडा,1875-1900 110,के मम्में,1921-2017

111,एन. जी. रंगा,1900-1995 112,कान्नेगंती हनुमन्थू,1870-1920 113,तीर्थ सिंह,- 114,प्रीती लता वाडेकर,1911-1932

भारत के बारे में यह अविश्वसनीय तथ्य जानकर आप हैरान रह जायेंगे – Amazing Facts about India in Hindi

Famous Female Freedom Fighters of India

अब हम आपको आजादी की दीवानी और अपने देश से सच्चा प्रेम करने वाली उन पराक्रमी भारतीय वीरांगनाओं (Female Freedom Fighters) से परिचित कराने जा रहे हैं जो भले ही उपर वर्णित स्वतंत्रता सेनानियों के जितनी विख्यात न रही हों और जिन्हें आज इतिहास भी लगभग भूल सा ही गया है, तो भी आजादी में उनका योगदान कम नहीं हो जाता।

इनमे से अधिकांश, साधारण परिवारों में पली-बढ़ी भारतीय नारियाँ थीं, जिन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन (Freedom Movement) में कूदने से पूर्व मुश्किल से ही घर-परिवार की दहलीज लाँघी थीं, लेकिन जब इनमे देशभक्ति का जज्बा जगा, तब यह त्याग और समर्पण में पुरुषों से भी ज्यादा आगे बढ़ गयीं।

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1. Queen Velu Nachiyar रानी वेलू नाचियार

Indian Freedom Fighter : रानी वेलू नाचियार (1730-1796) दक्षिण में स्थित शिवगंगा राज्य की साम्राज्ञी थीं जिन्होंने सन 1780 से 1790 तक शासन किया था। वह अंग्रेजों से लड़ने वाली पहली भारतीय रानी थीं और शायद सबसे पहली वीरांगना भी। सन 1757 में इन्होने न केवल युद्ध जीता, बल्कि अंग्रेजों से अपने राज्य की भूमि को भी मुक्त रखा।

रानी वेलू नाचियार अत्यंत साहसी और द्रढ़ इरादों वाली स्त्री थीं जिसका पता इस बात से चलता है कि उस समय के ब्रिटिश जनरल को न केवल इनसे क्षमा माँगनी पड़ी थी, बल्कि अपनी जान बचाने के लिये युद्धभूमि से भागना तक पड़ गया था। इनकी मृत्यु सन 1796 में हुई थी।

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2. Queen Lakshmibai रानी लक्ष्मीबाई

Indian Freedom Fighter : रानी लक्ष्मीबाई (1828-1858) के बारे में कौन नहीं जानता? सुभद्राकुमारी चौहान की ‘खूब लड़ी मर्दानी’ नामक साहित्यिक रचना से देश का बच्चा-बच्चा इनसे परिचित है। 19 नवंबर 1828 के दिन पैदा हुई रानी लक्ष्मीबाई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की सबसे विख्यात नायिका हैं। पति की मृत्यु के पश्चात झाँसी की साम्राज्ञी बनी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के लज्जाजनक अधीनता स्वीकार करने वाले प्रस्ताव को न मानकर डटकर युद्ध किया।

झाँसी की रानी ने उन्हें लगभग अपने राज्य से बाहर खदेड़ ही दिया था, पर कुछ विश्वासघाती दरबारियों के कारण उन्हें पराजित होना पड़ा। लेकिन रानी ने अंत तक अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार नहीं की। 17 जून 1858 के दिन इस वीर नायिका ने युद्धक्षेत्र में ही वीरगति प्राप्त की।

3. Begum Hazrat Mahal बेगम हजरत महल

Indian Freedom Fighter : बेगम हजरत महल (1820-1879) भी 1857 के स्वाधीनता संग्राम की प्रमुख नायिका हैं। अवध (आधुनिक लखनऊ और इसका समीपवर्ती क्षेत्र) के नवाब वाजिद अली शाह के असमय देहावसान के पश्चात अंग्रेजों ने उन्हें भी झाँसी की रानी की तरह अपमानजनक राज्य हड़पने वाली शर्तें मानने को मजबूर किया। लेकिन बेगम ने जीतेजी अपमान का घूँट पीना अस्वीकार कर दिया और बड़ी होशियारी से अवध की सत्ता हाथ में लेकर अंगेजों के विरुद्ध युद्ध का बिगुल छेड़ दिया।

1857 के विद्रोह के दौरान उन्होंने लम्बे समय तक लखनऊ पर अपना अधिकार बरकरार रखा, लेकिन भारत का दुर्भाग्य बने लालची दरबारियों ने एक बार फिर से देश का सम्मान दाँव पर लगाते हुए अंग्रेजों से मिलकर रानी की पराजय की पटकथा लिख दी। मजबूरन रानी को निर्वासित होकर नेपाल की राजधानी काठमांडू में शरण लेनी पड़ी और अंत में वहीँ पर उनका देहावसान हो गया।

10 Woman Fighters of Freedom Movement

4. bhikaji cama भीकाजी कामा.

Indian Freedom Fighter : भीकाजी कामा (1861-1936) के नाम पर देश में कई सडकों और इमारतों का निर्माण हुआ है, पर फिर भी देश में बहुत कम लोग ही उनके नाम और काम से परिचित होंगे, क्योंकि युवावस्था के पश्चात उनका अधिकांश समय विवशता में देश से बाहर ही गुजरा था। मैडम भीकाजी कामा एक उच्च कुलीन पारसी समुदाय से थीं। पारसी आम तौर पर शांतिप्रिय और विवादों से बचने वाले होते हैं, लेकिन भीकाजी कामा के ह्रदय में देशप्रेम की भावना बचपन से हिलोरे मारती थीं।

जब वह इंग्लैंड में रहकर निर्वासित जीवन बिता रहीं थीं तो उन्होंने वहीँ पर रहते हुए अंग्रेजों का विरोध किया और भारतीय स्वधीनता आन्दोलन की जड़ें मजबूत की। भीकाजी कामा भारत की आजादी के साथ-साथ स्त्री समानता पर भी बहुत जोर देती थीं इसीलिये उन्होंने अपनी अधिकांश संपत्ति लड़कियों की दशा सुधारने हेतु एक अनाथाश्रम को दान कर दी थी। उन्होंने सन 1907 में जर्मनी के स्टटगर्ट में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सभा (International Socialist Conference) में भारतीय झंडे को फहराया था।

5. Sarojini Naidu सरोजिनी नायडू

Indian Freedom Fighter : भारत कोकिला (नाइटिंगेल ऑफ इंडिया) के नाम से विख्यात सरोजिनी नायडू (1879-1949) से ज्यादातर देशवासी परिचित हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात उत्तर प्रदेश राज्य की गवर्नर रहीं सरोजिनी नायडू एक प्रखर स्वतंत्रता सेनानी थीं। इन्होने भारत छोड़ो आन्दोलन और असहयोग आन्दोलन समेत कई आंदोलनों में हिस्सा लिया। यह गाँधीवादी विचारधारा की थीं, लेकिन क्रांतिकारियों के पक्ष को भी इन्होने कई अवसरों पर उचित ठहराया था।

आजादी की लड़ाई में सरोजिनी नायडू कई बार जेल गयीं और अपनी नेतृत्व क्षमता के चलते वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष भी बनीं। अपनी असाधारण काव्य क्षमता का उपयोग इन्होने देशवासियों, विशेषकर स्त्रियों के ह्रदय में देशप्रेम की भावना को प्रबल करने में किया। इन्होने न सिर्फ स्त्रियों को संगठित किया, बल्कि जुलूसों के दौरान अनेकों अवसरों पर उनका नेतृत्व भी किया था। गाँधीजी इन्हें बहुत मानते थे।

6. Kamaladevi Chattopadhyay कमलादेवी चट्टोपाध्याय

Indian Freedom Fighter : कमलादेवी चट्टोपाध्याय (1903-1988) भारत की एक प्रखर समाज सुधारक थीं, पर इसके साथ-साथ वह एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थीं। कमलादेवी ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा हिरासत में लीं गयी पहली भारतीय महिला थीं। उन्हें भारत की वह पहली स्त्री होने का भी गौरव प्राप्त है जो विधायिका की सदस्य बनने हेतु चुनाव लड़ीं थीं।

कमलादेवी ने सामाजिक सुधार के क्षेत्र में बड़ा ही उल्लेखनीय कार्य किया था। यह उनके ही प्रयासों का प्रतिफल था जो दस्तकारी, हथकरघा और थियेटर जैसे कुटीर उद्योग बच पाये थे और जिनकी सहायता से उन्होंने भारतीय स्त्रियों की सामजिक-आर्थिक दशा को सुधारा। National School of Drama और संगीत नाटक अकादमी जैसे सांस्कृतिक संस्थान उनकी ही दूरदर्शिता का परिणाम हैं।

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7. Durgabai Deshmukh दुर्गाबाई देशमुख

Indian Freedom Fighter : दुर्गाबाई देशमुख भी स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख महिला सेनानियों में से एक थीं। उन्होंने कई सत्याग्रह आंदोलनों का नेतृत्व किया और भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में एक अहम् भूमिका निभाई। अनुशासन और जिम्मेदारियों के निर्वहन में यह कितनी कठोर थीं इसका पता सन 1923 में लगी खादी प्रदर्शनी की उस घटना से चलता है जिसमे देश के बड़े-बड़े नेता शिरकत कर रहे थे। उस प्रदर्शनी में दुर्गाबाई को प्रवेश द्वार पर आगंतुकों के टिकट जाँचने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी।

अपने कर्तव्य का ध्यान रखते हुए इन्होने उस समय के शीर्ष नेता और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु को उपयुक्त परिचय पत्र के अभाव में प्रदर्शनी के अन्दर जाने से मना कर दिया था। जब आयोजकों ने नेहरूजी को टिकट थमाया तब कहीं जाकर दुर्गाबाई ने उन्हें प्रवेश करने दिया। अपनी योग्यता और कौशल के चलते यह बाद में भारत की निर्वाचक असेंबली और योजना आयोग की सदस्य भी रहीं।

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Woman Freedom Fighters of India in Hindi

8. sucheta kriplani सुचेता कृपलानी.

Indian Freedom Fighter : सुचेता कृपलानी (1908-1974) को देश के किसी राज्य (उत्तर प्रदेश) की पहली महिला मुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त है। वह गाँधीवादी विचारधारा को मानने वाली थीं और उन्होंने गांधीजी के साथ लंबे समय तक कार्य किया। स्वाधीनता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के पश्चात उन्होंने भारत-पाक विभाजन के समय भी उल्लेखनीय कार्य किया था।

स्त्रियों को संगठित करने और उनकी दशा सुधारने के उद्देश्य से सन 1940 में उन्होंने अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की स्थापना भी की थी। 14 अगस्त 1947 के दिन, आजादी की पूर्व संध्या पर उन्होंने असेंबली में वन्दे मातरम् गाया था।

9. Aruna Asaf Ali अरुणा आसफ अली

Indian Freedom Fighter : अरुणा आसफ अली (1909-1996) के बारे में भी कम ही लोगों ने सुना होगा, पर वह भी स्वाधीनता संग्राम की कुछ विख्यात वीरांगनाओं में से एक थीं। दूसरे स्वतंत्रता सेनानियों की तरह उन्हें भी अंग्रेजों का विरोध करने पर कई बार जेल जाना पड़ा। पर उस घटना के कारण उन्हें विशेष रूप से याद किया जाता है जब सन 1942 में, भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान 33 वर्ष की आयु में, उन्होंनेबंबई के गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का झन्डा फहराया था।

10. Lakshmi Sahgal लक्ष्मी सहगल

Indian Freedom Fighter : लक्ष्मी सहगल (1914-2012) जिन्हें कैप्टन लक्ष्मी सहगल के नाम से ज्यादा जाना जाता है, भारतीय सेना की एक महिला अधिकारी थीं जिन्होंने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा संगठित आजाद हिन्द फौज की ओर से द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया था। वह गाँधी और बोस दोनों के विचारों से प्रभावित थीं, पर जब उन्हें पता चला कि नेताजी अपनी सेना में महिला सैनिकों की भी भर्ती कर रहे हैं तो वह भी उसमे शामिल हो गयीं।

फौज में रहते हुए उन्हें महिलाओं की रेजीमेंट जिसे ‘झाँसी की रानी रेजीमेंट’ के नाम से जाना जाता था, के संगठन का काम दिया गया था। सन 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, आजाद हिन्द फौज के आत्मसमर्पण के पश्चात वह बर्मा में एक कैदी के रूप में कुछ समय तक जेल में भी रहीं थीं। अपनी सेवाओं के लिये कैप्टन लक्ष्मी को पदम् विभूषण से भी सम्मानित किया गया था।

सन 2012 में 97 वर्ष की आयु में उत्तर प्रदेश के कानपुर में इस वीरांगना की मृत्यु हुई थी। इस लेख में हमने सिर्फ 10 Woman Freedom Fighters के बारे में बताया है। भारत की महान और अज्ञात महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में विस्तार से जानने के लिये 10 Female Freedom Fighters of India in Hindi यह लेख पढ़ें। जय हिन्द!

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स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों पर निबंध (Unsung Heroes Of Freedom Struggle Essay) 100, 200, शब्दों मे

freedom struggle of india essay in hindi

Unsung Heroes Of Freedom Struggle Essay in Hindi – गुमनाम नायक वे हैं जिनकी स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए प्रशंसा और सराहना नहीं की जाती है। कई स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत को आज़ाद कराने के लिए संघर्ष किया है, और उनमें से कुछ को हम महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू आदि के रूप में जानते हैं। फिर भी, कुछ को भारत के लिए संघर्ष करने के लिए पर्याप्त सराहना नहीं मिली है। पीर अली खान, खुदीराम बोस, बिरसा मुंडा, कमला दास, कमलादेवी चट्टोपाध्याय आदि जैसे उन्हें “स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों” के रूप में जाना जाता है। यहां ‘स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों’ पर कुछ नमूना निबंध दिए गए हैं।

स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों पर 100 शब्दों का निबंध

भारत की स्वतंत्रता इस विविध राष्ट्र के लिए एक बेहतर भविष्य लाने के लिए एक ऐतिहासिक आंदोलन बन गया है। भारत बहुत लंबे समय तक ब्रिटिश राज के अधीन था, और भारतीयों को कोई स्वतंत्रता नहीं थी। हमारे देश के कुछ वीरों ने ब्रिटिश राज से आजादी के लिए लड़ने के लिए एक कदम उठाने की ठान ली थी।

अन्याय के खिलाफ लड़ने और देश को गौरव से मुक्त करने के लिए कई स्वतंत्रता सेनानी आए और एक साथ हाथ मिलाया। उनमें से कुछ, जैसे महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, भगत सिंह और अन्य, व्यापक रूप से स्वतंत्र भारत आंदोलन के चेहरे के रूप में माने जाते हैं। फिर भी देश के उज्जवल भविष्य के लिए विभिन्न वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। कुछ नायक हैं बिरसा मुंडा, कमला दास, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, खुदीराम बोस, इत्यादि। किसी न किसी रूप में इन लोगों ने देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों पर 200 शब्दों का निबंध

भारत को लगभग 200 वर्षों के बाद अंग्रेजों के शासन से आजादी मिली। इसके परिणामस्वरूप 1857 में स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन का जन्म हुआ, जो लगभग 90 वर्षों तक चला और सभी भारतीयों के लिए एक कठिन समय था। यह एक बड़े संघर्ष में बदल गया और देश में बहुत सारे लोग इस शानदार स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा रहे हैं।

स्वतंत्रता संग्राम के कुछ सबसे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, रानी लक्ष्मीबाई आदि हैं; हालाँकि, राज्य में स्वतंत्रता-संघर्ष दलों की सूची में कई अन्य नाम हैं। ये उन स्वतंत्रता सेनानियों के नाम हैं जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था, लेकिन भारतीय इतिहास में इनके नाम या उनकी वीरता का कोई प्रमाण नहीं मिलता है।

इन स्वतंत्रता सेनानियों को युद्ध के गुमनाम नायक कहा जाता है क्योंकि देश में कोई भी उनके नाम या राष्ट्र के लिए उनके योगदान को नहीं जानता था; फलस्वरूप, उन्हें अनसंग हीरो के रूप में नामित किया गया। भगत सिंह और मंगल पांडे जैसे साहसी भारतीय क्रांतिकारी भी देश के विभिन्न गुमनाम नायकों की सूची का हिस्सा रहे हैं; हालाँकि, भारतीय सिनेमा की फिल्मों के कारण उनके नामों को उजागर किया गया है।

इनके बारे मे भी जाने

  • Online Classes Essay
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  • Subhash Chandra Bose Essay
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स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक पर निबंध (Unsung Heroes of Freedom Struggle Essay in Hindi)

कई लोग आजादी की लड़ाई के लिए एक साथ आए और देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। कुछ स्वतंत्रता सेनानी इतने प्रसिद्ध नहीं थे कि हम उनका नाम याद रख सकें लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में उतने ही वीर और आवश्यक हैं। हालाँकि उनके बारे में काफी कम लिखा गया है, उनके बारे में एक संक्षिप्त इतिहास नीचे लिखा गया है-

1. तिरुपुर कुमारन (Tirupur Kumaran)

तिरुपुर तमिलनाडु में कोयम्बटूर के पास एक शहर का नाम है और हमारे स्वतंत्रता सेनानी कुमारन का घर है। 1932 में कुमारन द्वारा अंग्रेजों के विरोध में एक विरोध मार्च का आयोजन किया गया था। उन्होंने सरकार की अवज्ञा की और भारतीय राष्ट्रीय ध्वज से चिपक कर ब्रिटिश कानून तोड़ा, जिस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। प्रदर्शनकारियों के इस कृत्य से अंग्रेजों को गुस्सा आ गया और अंग्रेजों ने उन पर हमला किया, और कुमारन को बेरहमी से पीटा गया और उन्हें झंडा नीचे करने के लिए मजबूर किया गया।

अंग्रेजों द्वारा बार-बार पीटे जाने के बाद भी, कुमारन ने आत्मसमर्पण नहीं किया और अपनी जान की परवाह न करते हुए झंडे को पकड़ रखा था। उनके शरीर पर गहरे घाव थे और गंभीर रूप से घायल हो गए थे, लेकिन जब वे बेहोश हो गए, तब भी उन्होंने ध्वज पर अपनी पकड़ नहीं खोई और यह सुनिश्चित करते हुए उससे चिपक गए कि वह जमीन पर न गिरे। अपनी अंतिम सांसों के दौरान, उन्होंने केवल एक चीज की परवाह की, वह थी हमारा झंडा, और इस घटना ने उन्हें कोडी कथा कुमारन की उपाधि दी, जिसका अर्थ है कुमारन, राष्ट्रीय ध्वज का रक्षक।

2. कमलादेवी चट्टोपाध्याय (Kamaladevi Chattopadhyay)

कमलादेवी चट्टोपाध्याय का जन्म 3 अप्रैल, 1903 को हुआ था, और उन्होंने एक समाज सुधारक के साथ-साथ एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में काम किया। उन्हें भारत में हस्तकला, ​​हथकरघा और रंगमंच के पुनर्जन्म के पीछे कारण और प्रेरणा शक्ति के रूप में जाना जाता था। उन्होंने सहकारी आंदोलन शुरू करके भारतीय समाज में महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के उत्थान के लिए आवाज उठाकर आजादी की लड़ाई में अपनी भूमिका निभाई। हालाँकि, स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान पर किसी का ध्यान नहीं जा सकता है।

20 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई और 1923 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन के समय लंदन में रह रही थीं। जब उन्हें इस आंदोलन के बारे में पता चला, तो वह जल्द से जल्द भारत लौट आईं और आंदोलन में शामिल हुईं। वह सेवा दल का हिस्सा बन गईं, जो एक गांधीवादी संगठन था जिसे सामाजिक उत्थान को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था।

वह वर्ष 1926 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (AIWC) की संस्थापक मार्गरेट ई. कजिन्स से मिलीं और मद्रास की प्रांतीय विधान सभा का नेतृत्व करने के लिए प्रेरित हुईं। इन सबके साथ ही वह गिरफ्तार होने वाली भारत की पहली महिला थीं। नमक मार्च के दौरान, उसने नमक के पैकेट बेचे और लगभग एक साल तक जेल में रही।

3. खुदीराम बोस (Khudiram Bose)

खुदीराम बोस एक स्वतंत्रता सेनानी हैं जिनकी महिमा की गाथा हमें उनके लिए गर्व के साथ-साथ दया का भी अनुभव कराती है। उन दोनों भावनाओं के पीछे कारण एक ही है। स्वतंत्रता सेनानी केवल 18 वर्ष के थे जब उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी।

वर्ष 1908 में, खुदीराम बोस को उस समय के एक बहुत ही प्रसिद्ध व्यक्ति, कलकत्ता प्रेसीडेंसी के मुख्य मजिस्ट्रेट यानी किंग्सफोर्ड, मुजफ्फरपुर के जिला मजिस्ट्रेट को मारने का काम दिया गया था। किंग्सफोर्ड युवा राजनीतिक कार्यकर्ताओं के प्रति अपने क्रूर और क्रूर व्यवहार के लिए जाने जाते थे। युवा कार्यकर्ताओं पर शारीरिक दंड लागू करने के लिए डीएम अलोकप्रिय थे। मुख्य रूप से यही कारण था कि जब किंग्सफोर्ड को नए जिला मजिस्ट्रेट के रूप में मुजफ्फरपुर स्थानांतरित किया गया, तो बोस को उनकी मृत्यु की जिम्मेदारी दी गई।

यह 20 अप्रैल, 1908 का दिन था, जब बोस ने यूरोपियन क्लब के बाहर एक गाड़ी पर बम फेंक कर किंग्सफोर्ड को मारने का प्रयास किया था क्योंकि ऐसा माना जाता था कि वह गाड़ी किंग्सफोर्ड ले जा रही थी। लेकिन दुर्भाग्य से, बोस ने एक बड़ी गलती की क्योंकि गाड़ी में बैरिस्टर प्रिंगल कैनेडी की बेटी और पत्नी थी। केनेडी प्रसिद्ध मुजफ्फरपुर बार के प्रमुख वकील थे। उस कृत्य के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को खोजने के लिए भारी पुलिस बल तैनात किया गया था। इस बीच, बोस 25 मील पैदल चलकर वेणी रेलवे स्टेशन पहुंचे और वहां दो अधिकारियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें मौत की सजा सुनाई गई और 11 अगस्त, 1908 को उन्हें मार दिया गया।

4. पीर अली खान (Peer Ali Khan)

पीर अली खान का जन्म मुहम्मदपुर में हुआ था, जो उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में स्थित है। सात साल की उम्र में, वह अपने पूर्व घर से भाग गया और पटना आ गया, जहाँ उसे एक जमींदार से आश्रय और आश्रय मिला। पीर को जमींदार ने पाला और शिक्षित किया, और बाद में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के विद्रोह में भाग लिया।

पीर पटना में एक किताबों की दुकान के मालिक थे, जहाँ सभी स्वतंत्रता सेनानी इकट्ठा होते थे और अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने की तकनीकों पर चर्चा करते थे। और सिर्फ स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, किताबों की दुकान एक ऐसा बिंदु था जहां हर व्यक्ति न केवल आपस में बल्कि ब्रिटिश सेना में काम करने वाले भारतीय सैनिकों से भी संपर्क रखता था। पीर अली अंग्रेजों के खिलाफ दैनिक अभियान चलाते थे और 1857 के विद्रोह का एक अभिन्न अंग थे। जब अली दानापुर छावनी के सैनिकों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ साजिश रच रहा था, तो दो पत्र गलत हो गए और अंग्रेजों के हाथ लग गए और अंग्रेजों को पीर अली की संलिप्तता का पता चल गया।

अली को स्थिति के बारे में पता चला। उसने उन लोगों को इकट्ठा किया जो रुचि रखते थे और अंग्रेजों पर हमला करने की योजना बना रहे थे। पीर ने अपने साथी मौलवी मेहदी के साथ लगभग 50 बंदूकें एकत्र कीं और उन्हें चालक दल के सदस्यों के बीच वितरित किया।

4 जुलाई, 1857 को अली और उनके 33 अनुयायियों को गिरफ्तार कर लिया गया। अधिकांश अनुयायियों को बिना सुनवाई के अगले ही दिन फांसी दे दी गई, जबकि पीर अली को बेरहमी से प्रताड़ित किया गया और जिरह की गई। उन्हें 7 जुलाई को फांसी भी दे दी गई थी।

5. मातंगिनी हाजरा (Matangini Hazra)

19 अक्टूबर, 1870, वह दिन था जब अंग्रेजों के खिलाफ एक ताकत के बराबर एक महिला इस दुनिया में आई थी। तामलुक (जिसे पहले मिदनापुर कहा जाता था) से, जो ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रेसीडेंसी में स्थित है, हाजरा भारत छोड़ो आंदोलन के साथ-साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन की बाघिन थी।

एक गरीब परिवार में जन्मी मातंगिनी इतनी सौभाग्यशाली नहीं थीं कि उन्हें उचित शिक्षा प्राप्त हो सके। वह बहुत कम उम्र में शादी के बंधन में बंध गई और 18 साल की उम्र में अपने पति को खो दिया।

1905 वह वर्ष था जब हाजरा स्वतंत्रता आंदोलन की लहर में आया था। वह 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन का हिस्सा बनीं और दांडी मार्च में भाग लेने के लिए अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर ली गईं, जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था और नमक कानून के खिलाफ पानी से नमक का निर्माण किया था। अंग्रेजों ने नमक के उत्पादन और बिक्री पर सरकारी एकाधिकार स्थापित करने के लिए भारतीय नमक कानून पारित किया, और इसलिए समुद्री नमक बनाने के लिए दांडी की ओर चल पड़े, जिसे अवैध माना जाता था। चूँकि समुद्री जल से नमक का उत्पादन दांडी में एक स्थानीय प्रथा थी, इसलिए इसने अंततः लोगों में आक्रोश की भावना को जन्म दिया। बहरामपुर में हाजरा आधा साल जेल में रहा।

दस साल बाद, 1942 में, हाजरा भारत छोड़ो आंदोलन में महात्मा गांधी के साथ थे, उन्होंने अंग्रेजों से देश छोड़ने और भारत में उपनिवेशवाद को समाप्त करने के लिए कहा। 6,000 समर्थकों (ज्यादातर महिला स्वयंसेवकों) का नेतृत्व करते हुए, 71 वर्षीय हाजरा तामलुक पुलिस स्टेशन का नियंत्रण लेने के लिए आगे बढ़ रहे थे। जैसे ही उसने कदम आगे बढ़ाया, उसे ब्रिटिश भारतीय पुलिस ने गोली मार दी और उसने अंतिम सांस ली।

6. बिरसा मुंडा (Birsa Munda)

5 नवंबर, 1875 को जन्मे बिरसा मुंडा एक आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी, लोक नायक के साथ-साथ एक धार्मिक नेता भी थे। वह मुंडा जनजाति के थे। वह एक आदिवासी धार्मिक आंदोलन के प्रमुख थे, जिसके बारे में माना जाता था कि यह पुराने पैटर्न को बदल देता है। 19वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटिश शासन के दौरान बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड के रूप में जाना जाता है) में आंदोलन शुरू हुआ। इसने उन्हें भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति बना दिया।

अपने गुरु जयपाल नाग के मार्गदर्शन में बिरसा ने सलगा में शिक्षा प्राप्त की। बाद में, बिरसा ने खुद को ईसाई धर्म में परिवर्तित कर लिया ताकि वे एक जर्मन मिशन स्कूल में शामिल हो सकें। यह जानने के बाद कि अंग्रेज आदिवासियों को शिक्षा के माध्यम से ईसाई बनाने की योजना बना रहे थे, उन्हें स्कूल छोड़ने से पहले उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा था।

स्कूल छोड़ने के बाद, बिरसा ने ‘बिरसैत’ नामक एक विश्वास बनाने का फैसला किया। इसके गठन के तुरंत बाद, मुंडा समुदाय के कई सदस्य विश्वास का हिस्सा बन गए, और यह अंग्रेजों और आदिवासियों को धर्मांतरित करने की उनकी गतिविधियों के लिए एक चुनौती के रूप में सामने आया।

बिरसा मुंडा अंग्रेजों को चुनौती देने और धर्मांतरण की कुप्रथा के खिलाफ विरोध करने में उनके योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने उरांव और मुंडा समुदायों का समर्थन किया। 1900 में 24 साल की उम्र में बिरसा की मृत्यु हो गई।

7. कमला दास गुप्ता (Kamala Das Gupta)

कमला दास गुप्ता एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं। उनका जन्म वर्ष 1907 में ढाका (वर्तमान में बांग्लादेश में) में एक वैद्य परिवार में हुआ था और उनके पास इतिहास में कला में स्नातकोत्तर की डिग्री थी। लेकिन उनके मन में राष्ट्र के कुछ अच्छे काम करने की इच्छा थी, जिसे पूरा करने के लिए, उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ने और साबरमती में महात्मा गांधी के आश्रम जाने की भी सोची, लेकिन उनके माता-पिता ने मना कर दिया। अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद, वह ‘युगान्तर पार्टी’ के कुछ सदस्यों से परिचित हो गई, और उनका मूल गांधीवाद हिंसक प्रतिरोध के पंथ में परिवर्तित हो गया।

1930 वह वर्ष था जब उसने अंततः घर छोड़ दिया और गरीब महिलाओं के लिए एक छात्रावास का प्रबंधन करना शुरू कर दिया, और वह स्वतंत्रता सेनानियों के लिए बम बनाने की आवश्यक वस्तुओं का भंडारण करती थी। उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया लेकिन आखिरकार हर बार रिहा कर दिया गया। वह कई राहत शिविरों की प्रभारी बनीं और बहुत से लोगों की मदद की। वह एक महिला पत्रिका, ‘मंदिरा’ का संपादन भी करती थीं, जो उनकी यात्रा में पथ प्रदर्शक थी। उन्होंने 19 जुलाई, 2000 को कोलकाता में अपना जीवन खो दिया।

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भारत के स्वतंत्रता सेनानियों की सूची | Freedom Fighters of India list in hindi

भारत के स्वतंत्रता सेनानियों की सूची ( Freedom Fighters of India list and history in hindi)

हम सबको पता है कि हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था और इस आजादी पर हम सब भारतवासी को बहुत गर्व है. हर साल की तरह हम इस साल भी 15 अगस्त को झंडा फेहरायेंगे और 2-4 देशभक्ति गीत गाकर घर आ जायेगें.  हमारी आजादी उन भारत के स्वतंत्रता सेनानियों की वजह से है, जिन्होंने हमारे देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. इन महान हस्तियों को हम बदले में कुछ नहीं दे सकते है, लेकिन कम से कम हम उन्हें इस आजादी के दिन याद तो कर सकते है, उनके बारे में जान तो सकते है.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐसें ऐसें वीरों के नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखे है, जिन्होंने अपने अकेले के दम पर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई शुरू की. हमारे देश में ऐसे वीर योद्धा भी थे, जिन्होंने अपनी युवावस्था में सब कुछ त्याग कर देश की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे.  आज हमारा भारतवर्ष अंग्रेजों से तो आजाद है, लेकिन भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, बेईमानी ने इसे अपना बंधक बना लिया है. इससे आजादी के लिए हमें एक क्रांति लानी होगी, और हमारे देश के युवा शक्ति को एक बार फिर जगाना होगा. आज हम अपने भारत के स्वतंत्रता सेनानियों  के बारे में पढ़कर जानेगें कि कैसे उन्होंने देश की आजादी के लिए जनचेतना और क्रांति को जगाया था.

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Table of Contents

भारत देश के स्वतंत्रता सेनानियों की सूची (   Freedom Fighters of India list in Hindi  )

1. रानी लक्ष्मी बाई – (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});.

भारत देश के उत्तर में झाँसी नाम की जगह है, यहाँ की रानी लक्ष्मी बाई थी. इनका जन्म महाराष्ट्रियन परिवार में हुआ था. उस समय भारत का गवर्नर डलहौजी था, उसने नियम निकाला कि जिस भी राज्य में राजा नहीं है वहां अंग्रेजों का अधिकार होगा. उस समय रानी लक्ष्मी बाई विधवा थी, उनके पास 1 गोद लिया हुआ बेटा दामोदर था. उन्होंने अंग्रेजो के सामने घुटने टेकने से मना कर दिया और अपनी झाँसी को बचाने के लिए उनके खिलाफ जंग छेड़ दी. मार्च 1858 में अंगेजों से लगातार 2 हफ्ते तक युद्ध किया जो वो हार गई थी. इसके बाद वे ग्वालियर चली गई जहाँ एक बार फिर उनका युद्ध अंग्रेजों से हुआ. 1857 में हुई लड़ाई में रानी लक्ष्मी बाई का विशेष योगदान था. इनका नाम भारत के स्वतंत्रता सेनानी  मे बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है.

1828
1842
काशी (वाराणसी)
झाँसी के राजा गंगाधरराव
18 जून 1858

2. लाल बहादुर शास्त्री –

आजाद भारत के दुसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी थे. शास्त्री जी ने देश की आजादी के लिए भारत छोड़ो आन्दोलन,नामक सत्याग्रह आन्दोलन और असहयोग आन्दोलन में हिस्सा लिया था. ये देश के भारत के स्वतंत्रता सेनानी  थे. आजादी के समय उन्होंने 9 साल जेल में भी बिताये. आजादी के बाद वे home मिनिस्टर बन गए और फिर 1964 में दुसरे प्रधानमंत्री. 1965 में हुई भारत पाकिस्तान की लड़ाई में उन्होंने मोर्चा संभाला था. “जय जवान जय किसान” का नारा इन्होंने ही दिया था. 1966 में जब वे विदेश दौरे पर थे तब अचानक दिल का दौरा पड़ने से उनकी म्रत्यु हो गई.

2 अक्टूबर 1904
उत्तर प्रदेश
1966

3. जवाहरलाल नेहरु –

पंडित जवाहरलाल नेहरु को आज बच्चा बच्चा जनता है. ये भारत के स्वतंत्रता सेनानी थे. इनके पिता मोती लाल नेहरु एक बैरिस्टर और नेता थे. 1912 में नेहरु जी विदेश से अपनी पढाई पूरी करने के बाद भारत में बैरिस्टर की तरह काम करने लगे. महात्मा गाँधी के संपर्क में आने के बाद वे आजादी की लड़ाई में कूद पड़े, और भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए. आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरु देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने. आजादी की लड़ाई में वे महात्मा गाँधी के साथ मिल कर अंग्रेजों के खिलाफ खड़े रहे. बच्चों से उन्हें विशेष प्रेम था इसलिए आज भी हम उनके जन्म दिन को बाल दिवस के रूप में मनाते है. दिल्ली में उनका निधन हो गया.

14 नवम्बर 1889
इलाहाबाद
27 मई 1964

4. बाल गंगाधर तिलक –

“स्वराज हमारा जन्म सिध्य अधिकार है और हम इसे लेकर ही रहेंगे.” पहली बार यह नारा बाल गंगाधर तिलक जी ने ही बोला था. बाल गंगाधर तिलक को “भारतीय अशांति के पिता” कहा जाता था. डेकन एजुकेशन सोसाइटी की इन्होंने स्थापना की थी, जहाँ भारतीय संस्कृति के बारे में पढ़ाया जाता था, साथ ही ये स्वदेशी काम से जुड़े रहे. बाल गंगाधर तिलक पुरे भारत में घूम घूम कर लोगों को आजादी की लड़ाई में साथ देने के लिए प्रेरित करते थे. इनकी अंतिम यात्रा में महात्मा गाँधी के साथ लगभग 20 हजार लोग शामिल हुए थे.

23 जुलाई 1856
महाराष्ट्र के रत्नागिरी
1 अगस्त 1920

5. लाला लाजपत राय –

लाला लाजपत राय जी पंजाब केसरी नाम से प्रसिद्ध थे. भारतीय नेशनल कांग्रेस के लाला लाजपत राय बहुत प्रसिद्ध नेता और भारत के स्वतंत्रता सेनानी थे. लाला लाजपत राय लाल बाल पाल की तिकड़ी में शामिल थे. ये तीनों कांग्रेस के मुख्य और प्रसिद्ध नेता थे. 1914 में वे ब्रिटेन भारत की स्थिति बताने गए थे, लेकिन विश्व युद्ध होने की वजह से वे वहां से लौट ना सके. 1920 में जब वे भारत आये, तब जलियाँवाला हत्याकांड हुआ था, इसके विरुद्ध में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया था. एक आन्दोलन के दौरान अंगेजों के लाठी चार्ज से वे बुरी तरह घायल हुए जिसके पश्चात् उनकी म्रत्यु हो गई.

28 जनवरी 1865
पंजाब
17 नवम्बर 1928

6. चंद्रशेखर आजाद –

चंद्रशेखर आजाद नाम की ही तरह आजाद थे, उन्होंने स्वतंत्रता की आग में घी डालने का काम किया था. उनका परिचय इस प्रकार था, चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता की लड़ाई में युवाओं को आगे आने के लिए प्रेरित करते थे, उन्होंने युवा क्रांतिकारीयों की एक फ़ौज खड़ी कर दी थी. उनकी सोच थी की स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए हिंसा जरुरी है, इसलिए वे महात्मा गाँधी से अलग कार्य करते थे. चंद्रशेखर आजाद का खौफ अंगेजों में बहुत था. इन्होंने काकोरी ट्रेन लूटने की योजना बनाई थी और इसे लुटा था. किसी ने इनकी खबर अंग्रेजों को दे दी, जिससे अंग्रेज इन्हें पकड़ने के लिए इनके पीछे पड़ गए. चंद्रशेखर आजाद किसी अंग्रेज के हाथों नहीं मरना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अपने आप को गोली मार ली और शहीद हो गए.

आजाद
स्वाधीनता
जेल
27 फ़रवरी 1931

7. सुभाषचंद्र बोस –

सुभाषचंद्र बोस को नेता जी कहते है इनका जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में हुआ था. 1919 को वे पढाई के लिए विदेश चले गए, तब उन्हें वहां जलियाँवाला हत्याकांड का पता चला, जिससे वे अचंभित हो गए और 1921 को भारत लौट आये. भारत आकर इन्होंने भारतीय कांग्रेस ज्वाइन की और नागरिक अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया. अहिंसावादी गाँधी जी की बातें उन्हें गलत लगती थी, जिसके बाद वे हिटलर से मदद मांगने के लिए जर्मनी गए. जहाँ उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी (INA) संगठित की. दुसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान जो INA की मदद कर रहा था, समर्पण कर दिया, जिसके बाद नेता जी वहां से भाग निकले. लेकिन कहते है 17 अगस्त 1945 को उनका प्लेन क्रेश हो गया, जिससे उनकी म्रत्यु हो गई. इनकी म्रत्यु से जुड़े तथ्य आज भी रहस्य बने हुए है.

23 जनवरी 1897
उड़ीसा
17 अगस्त 1945

8. मंगल पांडेय –

भारत के इतिहास में स्वतंत्रता सेनानीयों में सबसे पहले मंगल पांडे का नाम आता है. 1857 की लड़ाई के समय से इन्होंने आजादी की लड़ाई छेड़ दी और सबको इसमें साथ देने को कहा. मंगल पांडे ईस्ट इंडिया कंपनी में सैनिक थे. 1847 में खबर फैली की ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जो बन्दुक का कारतूस बनाया जाता है, उसमें गाय की चर्बी का इस्तेमाल होता है, इसे चलाने के लिए कारतूस को मुह से खीचना पड़ता था, जिससे गाय की चर्बी मुहं में लगती थी, जो हिन्दू मुस्लिम दोनों धर्मो के खिलाफ था. उन्होंने अपनी कंपनी को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन कुछ नहीं हुआ. 8 अप्रैल 1857 को इनकी म्रत्यु हो गई.

19 जुलाई 1827
उत्तर प्रदेश
8 अप्रैल 1857

9. भगत सिंह –

भगत सिंह का नाम बच्चा बच्चा जानता है. युवा नेता भगत का जन्म 27 सितम्बर 1907 को पंजाब में हुआ था. इनके पिता और चाचा दोनों स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल थे, जिससे बचपन से ही इनके मन में देश के प्रति लगाव था और वे बचपन से ही अपने देश के लिए कुछ करना चाहते थे. 1921 में इन्होंने असहयोग आन्दोलन में अपनी हिस्सेदारी दी, लेकिन हिंसात्मक प्रवति होने के कारण भगत ने यह छोड़ नौजवान भारत सभा बनाई. जो पंजाब के युवाओं को आजादी में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करती थी. चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर इन्होंने आजादी के लिए बहुत से कार्य किये. 1929 में इन्होंने अपने आप को पकड़वाने के लिए संसद में बम फेंक दिया, जिसके बाद इन्हें 23 मार्च 1931 को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी की सजा दी गई.

27 सितम्बर 1907
पंजाब
23 मार्च 1931

10. भीमराव अम्बेडकर –

दलित परिवार में पैदा हुए भीमराव अम्बेडकर जी ने भारत से जाति सिस्टम ख़त्म करने के लिए बहुत कार्य किये. नीची जाति के होने की वजह से उनकी बुधिमियता को कोई नहीं मानता था. लेकिन इन्होंने फिर बुद्ध जाति अपना ली और दूसरी नीची जाती वालों को भी ऐसा करने को कहा, भीमराव अम्बेडकर जी ने हमेशा सबको समझाया की जाति धर्म मानवता से बढ़ कर नहीं होता है. हमें सबके साथ सामान व्यव्हार करना चाहिए. अपनी बुध्दी के बदौलत वे भारत सविधान कमिटी के चेयरमैन बन गए. जनतांत्रिक भारत के संविधान को डॉ भीमराव अम्बेडकर ने ही लिखा था.

14 अप्रैल 1891
महू, मध्यप्रदेश
6 दिसम्बर 1956

11. सरदार वल्लभभाई पटेल –

भारतीय कांग्रेस के नेता सरदार वल्लभभाई पटेल एक वकील थे. वल्लभभाई जी ने नागरिक अवज्ञा आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन में हिस्सा लिया था. वल्लभभाई जी ने देश की आजादी के बाद आजाद भारत को संभाला. आजाद भारत बहुत सारे राज्यों में बंट गया था जहाँ पाकिस्तान भी अलग हो चूका था. उन्होंने देश के सभी लोगों को समझाया कि देश की रक्षा के लिए सभी राजतन्त्र समाप्त कर दिए जायेंगे और पुरे देश में सिर्फ एक सरकार का राज्य चलेगा. उस समय देश को ऐसे नेता की जरुरत थी जो उसे एक तार में बांधे रखे बीखरने ना दे. आजादी के बाद भी देश में बहुत परेशानियाँ थी जिसे सरदार वल्लभभाई पटेल ने बहुत अच्छे से सुलझाया था.

31 अक्टूबर 1875
नाडियाड
15 दिसम्बर 1950 बॉम्बे

12. महात्मा गाँधी –

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात में हुआ था. अहिंसावादी महात्मा गाँधी ने अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई पूरी सच्चाई और ईमानदारी से लड़ी. वे अहिंसा पर विश्वास रखते थे और कभी किसी अंग्रेज को गली भी नहीं दी. इस वजह से अंग्रेज उनकी बहुत इज्जत भी करते थे. सत्याग्रह आन्दोनल, भारत छोड़ो आन्दोलन , असहयोग आन्दोलन, साइमन वापस जाओ, नागरिक अवज्ञा आन्दोलन और भी बहुत से आन्दोलन महात्मा गाँधी ने शुरू किये. वे सबको स्वदेशी बनने के लिए प्रेरित करते थे और अंग्रेजो के सामान को उपयोग करने से मना करते थे. महात्मा गाँधी के प्रयासों के चलते अंग्रेजो ने 15 अगस्त 1947 को देश छोड़ दिया. 30 जनवरी 1948 को नाथू राम गोडसे ने गोली मार कर इनकी हत्या कर दी थी.

2 अक्टूबर 1869
गुजरात
30 जनवरी 1948

13. सरोजनी नायडू –

सरोजनी नायडू एक कवित्री और सामाजिक कार्यकर्ता थी. ये पहली महिला थी जो भारत व भारतीय नेशनल कांग्रेस की गवर्नर बनी. सरोजनी नायडू भारत के संबिधान के लिए बनी कमिटी की मेम्बर थी. बंगाल विभाजन के समय ये देश के मुख्य नेता जैसे महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरु के संपर्क में आई और फिर आजादी की लड़ाई में सहयोग देने लगी. ये पुरे भारत में घूम घूम कर लोगों को अपनी कविता और भाषण के माध्यम से स्वतंत्रता के बारे में बताती थी. देश की मुख्य महिला सरोजनी नायडू का जन्म दिवस अब महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है.

13 फरवरी 1879
हैदराबाद
2 मार्च 1949

14. बिरसा मूंडे –

बिरसा मूंडे का जन्म 1875 को रांची में हुआ था. बिरसा मूंडे ने बहुत से कार्य किये, आज भी बिहार व झारखण्ड के लोग इन्हें भगवान की तरह पूजते है और उन्हें “धरती बाबा” कहते है. वे सामाजिक कार्यकर्त्ता थे जो समाज को सुधारने के लिए हमेशा कुछ ना कुछ करते रहते थे. 1894 में अकाल के दौरान बिरसा मूंडे ने अंगेजों से लगान माफ़ करने को कहा जब वो नहीं माने तो बिरसा मूंडे ने आन्दोलन छेड़ दिया. 9 जून 1900 महज 25 साल की उम्र में बिरसा मूंडे ने अंतिम साँसे ली.

15 नवम्बर 1875
रांची
9 जून 1900 रांची जेल

15. अशफाक़उल्ला खान –

भारत देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले अशफाक़उल्ला खान एक निर्भय, साहसी और प्रमुख स्वतंत्रता संग्रामी थे. वे उर्दू भाषा के कवी थे. काकोरी कांड में अशफाक़उल्ला खान का मुख्य चेहरा था. इनका जन्म 22 अक्टूबर 1900 को उत्तर प्रदेश में हुआ था. क्रन्तिकारी विचारधारा के अशफाक़उल्ला खान महात्मा गाँधी की सोच के बिल्कुल विपरीत कार्य करते थे. उनकी सोच थी की अंग्रेज से शांति से बात करना बेकार है उन्हें सिर्फ गोली और विस्फोट की आवाज सुने देती है. तब राम प्रसाद बिस्मिल के साथ मिल कर इन्होंने काकोरी में ट्रेन लुटने की योजना बनाई. राम प्रसाद के साथ इनकी गहरी दोस्ती थी. 9 अगस्त 1925 को राम प्रसाद के साथ अशफाक़उल्ला खान और 8 अन्य साथियों के साथ मिलकर इन्होंने ट्रेन में अंग्रेजो का खजाना लुटा था.

22 अक्टूबर 1900
उत्तर प्रदेश
19 दिसम्बर 1927 फरीदाबाद जेल

16. बहादुर शाह जफ़र –

मुग़ल साम्राज्य का आखिरी शासक बहादुर शाह जफ़र का नाम भी स्वतंत्रता संग्रामी की सूचि में शामिल है. 1857 की लड़ाई में इन्होने मुख्य भूमिका निभाई थी. ब्रिटिशों की सेना ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ शाह जफ़र ने अपनी विशाल सेना खादी कर दी थी, और खुद अपनी सेना के सेनापति थे. उनके इस काम के लिए उन्हें विद्रोही कहा जाने लगा, तथा उन्हें बंगलादेश के रंगून में निर्वासित कर दिया गया था.

24 अक्टूबर 1775
दिल्ली
7 नवम्बर 1862 म्यांमार

17. डॉ राजेन्द्र प्रसाद –

हम डॉ राजेन्द्र प्रसाद को देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में जानते है, लेकिन देश को आजाद कराने के लिए वे हमेशा सभी देश वासियों के साथ खड़े रहे, स्वतंत्रता की लड़ाई में राजेंद्र प्रसाद का नाम भी सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ था. इन्हें हमारे देश का सविधान का वास्तुकार कहा जाता है. महात्मा गाँधी को अपना आदर्श मानने वाले राजेन्द्र प्रसाद ने कांग्रेस ज्वाइन कर बिहार से एक प्रमुख नेता बन गए. नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आन्दोलन में इन्होने मुख्य भूमिका निभाई थी, जिसके लिए उन्हें कई बार जेल यातनाएं भी सहनी पड़ी थी.

3 दिसम्बर 1884
जिरादेई
28 फ़रवरी 1963 पटना

18. राम प्रसाद बिस्मिल –

राम प्रसाद बिस्मिल स्वतंत्रता सेनानी थे, उनका नाम मैनपुरी व् काकोरी कांड में सबसे ज्यादा प्रख्यात है. ब्रिटिश शासन के वे सख्त खिलाफ थे, वे बहुत बड़े कवी भी थे, जो अपने मन की बात कविताओं के जरिये सब तक पहुंचाते थे. ये हिंदी उर्दू भाषा में लिखा करते थे. ‘सरफरोशियों की तम्मना’ जैसी महान यादगार कविता इन्ही ने लिखी थी.

11 जून 1897
शाहजनापुर
19 दिसम्बर 1927 गोरखपुर जेल

19. सुखदेव थापर –

सुखदेव देश के स्वतंत्रता संग्रामी में से एक थे, उन्होंने भगत सिंह व् राजगुरु के साथ दिल्ली की असेंबली में बम फोड़ा था, और अपने आप को गिरफ्तार करा दिया था. इसके पहले उनका नाम ब्रिटिश अफसर को गोली मारने के लिए भी सामने आया था. सुखदेव भगत सिंह के अच्छे मित्र भी थे, इन्हें भगत सिंह के साथ ही 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी. युवाओं के लिए ये आज भी एक प्रेरणा का स्त्रोत्र है.

15 मई 1907
लुधियाना
23 मार्च 1931 लाहौर जेल

20. शिवराम राजगुरु –

शिवराम राजगुरु भगत सिंह के ही साथी थे, जिन्हें मुख्यतः ब्रिटिश राज के पुलिस अधिकारी को मारने के लिए जाना जाता है. ये हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में कार्यरत थे, जो भारत देश की आजादी के लिए अपने प्राण भी देने को तैयार थे. राजगुरु गाँधी जी की अहिंसावादी बातों के बिलकुल विरोश में थे, उनके हिसाब से अंग्रजो को मार मारकर अपने देश से निकलना चाहिए.

24 अगस्त 1908
पुणे
23 मार्च 1931 लाहौर जेल

21. खुदीराम बोस –

ये सबसे नौजवान स्वतंत्रता संग्रामी रहे है. स्वतंत्रता की लड़ाई के शुरुवाती दौर में ही ये उसमें कूद पड़े थे. बचपन से देशप्रेम के चलते इन्होने आजादी को ही अपनी मंजिल बना ली थी. उन्हें शहीद लड़का कहके सम्मान दिया जाता है. स्कूल में पढने के दौरान खुदीराम ने अपने टीचर से उनका रिवाल्वर मांग लिया था, ताकि वे अंग्रेजो को मार सकें. मात्र 16 साल की उम्र में इन्होने पास के पुलिस स्टेशन व् सरकारी दफ्तर में बम ब्लास्ट कर दिया. जिसके 3 साल बाद इन्हें इसके जुल्म में गिरफ्तार किया गया, और फांसी की सजा सुने गई. जिस समय इनको फांसी हुई थी, इनकी उम्र 18 साल 8 महीने 8 दिन थी.

3 दिसम्बर 1889
हबीबपुर
11 अगस्त 1908 कलकत्ता

22. दुर्गावती देवी (दुर्गा भाभी) –

ब्रिटिश राज के खिलाफ ये महिला उस समय खड़ी रही जब देश में महिलाओं को घर से बाहर तक निकलने की इजाज़त नहीं थी. भगत सिंह जब ब्रिटिश ऑफिसर को मार कर भागते है, तब वे दुर्गावती के पास मदद के लिए जाते है. दुर्गावती भगत सिंह व् राजगुरु के साथ ही ट्रेन में सफ़र करती है, जहाँ दुर्गावती इन्हें ब्रिटिश पुलिस से बचाती है. दुर्गावती भगत सिंह की पत्नी बन जाती है, जिससे किसी को शक ना हो. इनके पति का नाम भगवतीचरण बोहरा था, जो भगत सिंह के साथ ही आजादी के लड़ाई में खड़े हुए थे. उनकी पार्टी के सभी लोग इन्हें दुर्गा भाभी कहा करते थे. दुर्गावती नौजवान भारत सभा की मेम्बर भी थी.

7 अक्टूबर 1907
बंगाल
15 अक्टूबर 1999 गाज़ियाबाद

23. गोपाल कृष्ण गोखले –

भारत के स्वतंत्रता सैनानी की सूची में शामिल नाम की बात करें तो उनमें गोपाल कृष्ण गोखले का नाम कभी नहीं भूला जा सकता है. गोपाल कृष्ण गोखले पेशे से एक शिक्षक थे, जो बाद में कॉलेज के प्रिंसिपल भी बने. गोपाल कृष्ण जी अपनी बुद्धिमता के कारण जाने जाते थे. भारत को आजाद कराने में इन्होने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था. इसलिए इन्हें स्वतंत्रता सेनानी कहा जाता है. इन्हें महात्मा गांधी जी अपना राजनितिक गुरु भी मानते थे वे उनके काफी स्नेह एवं उनका सम्मान करते थे. उनकी भारत के देश के प्रति कर्त्तव्य एवं देश भक्ति के कारण वे काफी प्रचलित हुए, और अल्पायु में ही उनकी मृत्यु हो गई.

जन्म9 मई, 1866
जन्मस्थानकोल्हापुर, मुंबई
मृत्यु19 फरवरी, 1915

24. मदन मोहन मालवीय –

मदन मोहन मालवीय जी का नाम कौन नहीं जानता, ये भारत के पहले और आखिरी ऐसे व्यक्ति थे जिन्हेंमहामना की सम्मानजनक उपाधि मिली थी. पेशे से मदनमोहन मालवीय जी एक पत्रकार एवं वकील दोनों थे. ये अपनी मातृभूमि से बहुत प्रेम करते थे. मदनमोहन मालवीय जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 4 बार अध्यक्ष चुने गए थे. इन्होने ने ही बनारस में स्थित बनारस हिन्दू विश्वविध्यालय औपनिवेशक की स्थापना की. और यह भारत में शिक्षा का एक बहुत ही महत्वपूर्ण केंद्र बन गया. भारत के स्वतंत्र होने में इनका भी बहुत बड़ा योगदान रहा था.

जन्म25 दिसंबर, 1861
जन्मस्थानइलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज)
मृत्यु12 नवंबर 1946

25. शहीद उधम सिंह –

आपने सन 1919 में हुए जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के बारे में तो सुना ही होगा, उस हत्याकांड के चश्मदीद गवाह कम उम्र के वीर बहादुर शहीद उधम सिंह जी थे. जिन्होंने अपनी आँखों से उस हत्याकांड को देखा जिसमें हजारों लोगों की मृत्यु हुई थी. इस हत्याकांड का जिम्मेदार डायर ने जिस क्रूरता से यह हत्याकांड कराया था, उसे इन्होने अपनी आँखों से देखा और फिर उन्होंने संकल्प लिया कि ‘आज से उनके जीवन का केवल एक ही संकल्प है डायर की मृत्यु’. इसके बाद वे क्रांतिकारी दलों के साथ शामिल हुए और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी नेताओं की पद चिन्हों पर चलते हुए इन्होने अपना योगदान दिया और फिर अल्पायु में ही उनकी मृत्यु हो गई.  

जन्म26 दिसंबर, 1899
जन्मस्थानसुनम गांव, जिला संगरूर, पंजाब
मृत्यु31 जुलाई, 1940

भारत के अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ( Some Other Freedom Fighters of India list)

1.नाना साहेब
2.तांतिया टोपे
3.विपिन चन्द्र पाल
4.चित्तरंजन दास
5.राजा राममोहन दास
6.
7.
8.कस्तूरबा गाँधी
9.गोविन्द वल्लभ पन्त
10.
11.
12.रसबिहारी बसु
13.
14.मदन लाल ढींगरा
15.गणेश शंकर विघार्थी
16.करतार सिंह सराभा
17.बटुकेश्वर दत्त
18.सूर्या सेन
19.गणेश घोष
20.बीना दास
21.कल्पना दत्ता
22.एनी बीसेंट
23.सुबोध रॉय
24.अश्फाक अली
25बेगम हज़रात महल

इनके जीवन से हम बहुत कुछ सीख कर अपने जीवन में उतार सकते है. आज भी भारत को ऐसे ही क्रन्तिकारीयों की जरुरत है, जो देश को भ्रष्टाचार, गरीबी से आजाद कराये. आप किस स्वतंत्रता सेनानी के जीवन से सबसे ज्यादा प्रभावित होते है.

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भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के नाम, जानकारी सूची Name List of Indian Freedom Fighters in Hindi

इस अनुच्छेद मे हमने प्रमुख भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के नाम, जानकारी सूची Name List of Indian Freedom Fighters in Hindi लिखा है जिसमे हमने उन महान लोगों के नाम और जानकारी विषय मे विस्तार से बताया है। इन महान देशभक्तों मे से कुछ लोगों से शांति तो कुछ लोगों ने उग्र रूप के माध्यम से अपनी भूमिका निभाई। इन्हीं के कोशिशों के कारण आगे चलकर हमारा देश भारत आज़ाद हुआ।

इसी प्रकार के क्रूर कार्यों को सहन नया करके कुछ महान लोगों ने स्वतंत्रता की लड़ाई पर भाग लिया। इन्हीं मे कुछ मुख्य क्रांतिकारियों और स्वयंत्रता सेनानियों के नाम और जानकारी हमने इस लेख मे बताया है।

Table of Content

1. शहीद उधम सिंह Shaheed Udham Singh

शहीद उधम सिंह का जन्म जुलाई 31, 1899 को संगरूर जिला, पंजाब, भारत मे हुआ था। जनरल डायर के कहने पर जलियाँवाला बाग मे हजारों लोगों को ब्रिटिश पुलिस वालों ने गोली से भून डाला। इसका बदला लेने के लिए शहीद उधम सिंह ने लंदन मे जनरल डायर (माइकल ओ ड्वायर) को मार डाला। इसके कारण उन्हें जुलाई 31, 1940 को फांसी लगा दी गई।

2. लाला लाजपत राय Lala Lajpat Rai

3. झांसी की रानी rani of jhansi (laxmi bai), 4. तात्या टोपे tatya tope, 5. महात्मा गांधी mahatma gandhi.

इनको सभी लोग प्यार से “बापू” कहकर सम्बोधित करते हैं। इनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। देश को आजाद करवाने में इनका बड़ा योगदान है।

6. सुभाषचंद्र बोस Subhash Chandra Bose

7. गोपाल कृष्ण गोखले gopal krishna gokhle.

गोपाल कृष्ण गोखले, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक भारतीय उदार राजनीतिक नेता और एक समाज सुधारक थे। उनका जन्म 9 मई, 1866 को कोथलुक, रत्नागिरी जिला, महाराष्ट्र, भारत मे हुआ था। गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी के संस्थापक थे।

8. शहीद भगत सिंह Shaheed Bhagat Sing

9. राज गुरु raj guru.

इनका पूरा नाम शिवराम राज गुरु था। उनका जन्म 24 अगस्त 1908 को महाराष्ट्र मे हुआ था। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन मे इनकी मुख्य भूमिका थी। यह महाराष्ट्र के रहने वाले थे। इन्होंने लाहौर 1928 मे एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी को मार डाल था।

10. सुखदेव थापर Sukhdev Thapar

11. राम प्रसाद बिस्मिल ram prasad bismil.

लेकिन, वह अंतिम समय में “बिस्मिल” नाम से ही लोकप्रिय हुए। वे आर्य समाज से जुड़े थे जहाँ उन्हें स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश से प्रेरणा मिली। 19 दिसम्बर 1927 को उन्हें , वह अंतिम समय में “बिस्मिल” नाम से ही लोकप्रिय हुए। वे आर्य समाज से जुड़े थे जहाँ उन्हें स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश से प्रेरणा मिली। 19 दिसम्बर 1927 को उन्हें गोंडा जैल मे दो दिन पहले ही फांसी लगा दी गई।

12. खुदीराम बोस Khudiram Bose

13. अशफाक उल्ला खां ashfaqulla khan.

जाऊँगा खाली हाथ मगर, यह दर्द साथ ही जायेगा;जाने किस दिन हिन्दोस्तान, आजाद वतन कहलायेगा।

बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं, फिर आऊँगा-फिर आऊँगा; ले नया जन्म ऐ भारत माँ! तुझको आजाद कराऊँगा।। जी करता है मैं भी कह दूँ, पर मजहब से बँध जाता हूँ; मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कह पाता हूँ। हाँ, खुदा अगर मिल गया कहीं, अपनी झोली फैला दूँगा; औ’ जन्नत के बदले उससे, यक नया जन्म ही माँगूँगा।।

14. डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद Dr. Rajendra Prasad

15. रानी लक्ष्मी बाई rani lakshmi bai, 16. लाल बहादुर शास्त्री lal bahadur shastri.

इन्होने “जय जवान जय किसान” का नारा दिया था। इनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुग़लसराय में हुआ था। देश को आजाद करवाने के लिए इन्होने अनेक आंदोलनों में हिस्सा लिया। 1921 में असहयोग आंदोलन, 1930 में दांडी मार्च, 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई।

17. मंगल पांडे Mangal Pandey

18. जवाहरलाल नेहरु jawaharlal nehru.

पश्चिमी कपड़ो और विदेशी सम्पत्ति का त्याग कर दिया। उन्होंने खादी कुर्ता और टोपी पहनना शुरू कर दिया। 1920-1922 में असहयोग आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लिया और इस दौरान पहली बार गिरफ्तार किए गए। कुछ महीनों के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।

19. लाला लाजपत राय Lala Lajpat Rai

20. बाल गंगाधर तिलक bal gangadhar tilak.

ये एक स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और वकील थे। इनका जन्म 23 जुलाई 1856 को रत्नागिरी जिले में हुआ था। ये अंग्रेजी शिक्षा के घोर विरोधी थे। ये मानते थे की अंग्रेजी शिक्षा भारतीय सस्कृति के प्रति अनादर सिखाती है।

21. विनायक दामोदर सावरकर Vinayak Damodar Savarkar

विनायक दामोदर सावरकर को मराठी मे स्वातंत्र्यवीर सावरकर के नाम से जाना जाता है। उनका जन्म 28 मई 1883, मे भागूर, बॉम्बे मे हुआ था। वे एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता और राजनेता थे जिन्होंने हिंदू राष्ट्रवादी दर्शन को सूत्रबद्ध किया। साथ ही वह हिंदू महासभा में एक अग्रणी व्यक्ति भी थे। उनके घर बॉम्बे मे ही फरवरी 26, 1966 को उनकी मृत्यु हो गई।

22. चन्द्रशेखर आजाद Chandrashekhar Azad

23. भीमराव अम्बेडकर bhimrao ambedkar, 24. सरदार वल्लभभाई पटेल sardar vallabh bhai patel.

वह गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने। स्वतंत्रता आन्दोलन में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष भी कहा जाता है इनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 नडीयाद गुजरात में हुआ था। 1928 में इन्होंने गुजरात में बारडोली आंदोलन का नेतृत्व किया।

निष्कर्ष Conclusion

Featured Image Source –  https://www.inmemoryglobal.com/remembrance/2015/08/say-thank-you-to-the-freedom-fighters/

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स्वतंत्रता पर निबंध: शीर्ष 4 निबंध | Essay on Freedom: Top 4 Essays in Hindi

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स्वतंत्रता पर निबंध: शीर्ष 4 निबंध | Essay on Freedom: Top 4 Essays in Hindi!

Essay # 1. स्वतंत्रता की संकल्पना ( Concept of Freedom) :

राजनीति के एक सिद्धांत के रूप में ‘स्वतंत्रता’ के दो अर्थ लिए जाते हैं । पहले अर्थ में स्वतन्त्रता को ‘मानवीय अस्तित्व का एक गुण’ माना जाता है जिसका अभिप्राय यह है कि जहाँ प्रकृति के अन्य तत्व-वस्तुएं या जीव-जंतु प्रकृति के निर्विकार नियमों (Immutable Laws) से नियमित होते हैं, वही मनुष्य प्रकृति के नियमों का ज्ञान प्राप्त करके उन्हें अपने उद्देश्यों की पूर्ति का साधन बना लेता है । अतः वह अपनी जीवन को मनचाहा रूप दे सकता है ।

दूसरे अर्थ में स्वतन्त्रता ‘मनुष्य की एक दशा’ है जिसमें मनुष्य स्वयं-निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति में समर्थ होता है और उस पर बाहर से कोई बंधन नहीं लगा होता है । यह बात महत्वपूर्ण है कि स्वतंत्रता की ‘दशा’ का विचार तभी हमारे सामने आता है जब हम मनुष्य में स्वतंत्रता के ‘गुण’ या क्षमता को स्वीकार करके चलते हैं । राजनीति-सिद्धांत का मुख्य सरोकार ‘स्वतंत्रता की दशा’ से है ।

साधारणतः स्वतंत्रता की मांग का आधार ‘मनुष्य का विवेकशील प्राणी’ होना है । इस विचार की व्याख्या करते हुए जे॰आर॰ ल्यूकस ने अपनी पुस्तक ‘The Principles of Politics- 1976’ में लिखा है कि ”स्वतंत्रता का तात्त्विक अर्थ यह है कि विवेकशील लोगों को जो कुछ सर्वात्तम प्रतीत हो, वही कुछ करने में वह समर्थ हो और उसके कार्यकलाप बाहर के किसी प्रतिबंध से न बँधे हों ।”

ADVERTISEMENTS:

औपचारिक दृष्टि से, स्वतंत्रता की संकल्पना को ‘प्रतिबंधों का अभाव’ माना जाता है और ऐसी स्वतंत्रता की मांग विवेकशील लोगों के लिए की जाती है । जो सिद्धांत सभी मनुष्यों को समान रूप से विवेकशील मानता है, वह सबको समान स्वतंत्रता देने की मांग करता है परंतु जो सिद्धांत कुछ ही लोगों को विवेकसम्पन्न मानता है, वह इसका विरोध करता है । वास्तव में सच्ची स्वतंत्रता वही है जो सबको समान रूप से प्राप्त हो ।

बार्कर ने ‘Principles of Social and Political Theory -1951’ में स्वतंत्रता के नैतिक आधार पर विशेष बल देते हुए कांट को उद्धृत किया है कि ‘विवेकशील प्रकृति अपने-आप में साध्य है’ (Rational nature exists as an end-in-itself) ।

चूंकि मनुष्य इसी विवेकशील प्रकृति की श्रेणी में आता है, इसलिए मानव मात्र को सदैव एक साध्य मानकर चलना चाहिए, केवल साधन मानकर कभी नहीं चलना चाहिए ।

औपचारिक प्रतिबंध न होते हुए भी यथार्थ परिस्थितिया मनुष्य को बहुत कुछ करने से रोकती है । उदाहरण के लिए, मनुष्य पीड़ाग्रस्त होने पर मनचाहा कार्य नहीं कर सकता । मनुष्य केवल विवेकशील ही नहीं, संवेदनशील प्राणी भी है । वह भूख-प्यास या दुख-दर्द के कारण विवश हो सकता है ।

अतः स्वतंत्रता का सबसे विस्तृत अर्थ यह होगा कि मनुष्य अपने भीतर या बाहर से किसी भी तरह की विवशता से ग्रस्त न हो ताकि वह जो कुछ सर्वोत्तम समझता है, उसे करने में कोई भी बाधा अनुभव न करे । साथ ही, स्वतंत्रता का सिद्धांत यह मांग भी करता है कि जो मनुष्य पराधीन होते हुए भी पराधीनता की मांग नहीं करता, उसे स्वाधीनता का रास्ता दिखाकर उसके सोए हुए विवेक को जगाना चाहिए ।

स्वतंत्रता के सार्थक प्रयोग के लिए इस पर युक्तियुक्त निबंधन भी आवश्यक है अन्यथा यह स्वच्छंद बन जाएगा । स्वच्छंदता की स्थिति में एक मनुश्य की स्वतंत्रता दूसरे मनुष्य की विवशता बन सकती है । बडी मछली छोटी मछली को अपना आहार बनाने की स्वतंत्रता चाहे तो छोटी मछली को अपने प्राणों से हाथ धोने पड़ेंगे ।

एल.टी. हॉबहाउस ने अपनी कृति ‘The Elements of Social Justice – 1922’ में कहा है कि ”एक व्यक्ति की निरंकुश स्वतंत्रता का अर्थ यह होगा कि बाकी सब घोर पराधीनता की बेडियों से जकड़े जाएंगे । अतः दूसरी ओर से देखा जाए तो सबको स्वतंत्रता तभी प्राप्त हो सकती है जब सब पर कुछ-न-कुछ प्रतिबंध लेगा दिए जाए ।”

यही कारण है कि स्वतंत्रता कानून और व्यवस्था की मांग करती है और उसके साथ पहली शर्त यह जुडी रहती है कि दूसरों को भी वैसी ही और उतनी ही स्वतंत्रता का अधिकार है । इस तरह स्वतंत्रता पर समानता का अंकुश रहता है परंतु केवल समानता का नियम अपना लेना पर्याप्त नहीं होगा ।

एक-दूसरे को धक्का मारकर गिरा देने का ‘समान अधिकार’ स्वतंत्रता की परिभाषा में नहीं आएगा; स्वतंत्रता के सिद्धांत का प्रयोग कल्याण के पथ पर चलने के संदर्भ में करना चाहिए, विनाश के पथ पर चलने के संदर्भ में नहीं ।

स्वतंत्रता और सत्ता (Authority) के सम्बन्ध के विषय में भिन्न-भिन्न विचारकों ने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण व्यक्त किया है । टॉमस हॉब्स का कहना है कि राज्य की सत्ता के सारे लाभ तभी उठाए जा सकते हैं जब व्यक्ति की स्वतंत्रता को अत्यंत सीमित कर दिया जाए । इस तरह उसने व्यक्ति की स्वतंत्रता को गौण माना है ।

इसके विपरीत, जॉन लॉक और जे.एस. मिल जैसे विचारक यह तर्क देते हैं कि व्यक्ति की स्वतंत्रता को सार्थक बनाने के लिए राज्य की सत्ता को यथासंभव सीमित करना जरूरी है । नागरिकों का नैतिक समर्थन प्राप्त करने के लिए राज्य को नागरिकों की लोकतंत्रीय स्वतंत्रताओं की यथेष्ट रक्षा करनी चाहिए ।

इनमें विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता (Freedom of Thought and Expression) सभा करने और संघ बनाने की स्वतन्त्रता (Freedom of Assembly and Association) का विशेष महत्व है । इन स्वतंत्रताओं की रक्षा नहीं होने पर नागरिक राज्य के प्रति विद्रोह पर उतारू हो जाते हैं ।

कानून और स्वतंत्रता के संबंधों पर डी.डी. रफील ने अपनी पुस्तक ‘Problems of Political Philosophy -1976’ में विचार व्यक्त किया है । चूँकि स्वतंत्रता सामाजिक जीवन की सीमाओं से बँधी होती है, इसीलिए किसी व्यक्ति को वहीं तक स्वतन्त्रता प्रदान की जा सकती है जहाँ तक वह दूसरों की स्वतंत्रता में बाधक न हो । जहाँ एक व्यक्ति की स्वतंत्रता दूसरे व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा पैदा कर सकती है, वही उस पर प्रतिबंध लगाना जरूरी हो जाता है ।

ऐसा कोई प्रतिबंध कानून के द्वारा ही लगाया जा सकता है । कानून हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कहीं तक रोक लगा सकता है, या कानून के कौन-कौन से प्रतिबंध स्वतंत्रता के सिद्धांत के विरुद्ध नहीं माने जा सकते-यह एक जटिल विषय है ।

रफील ने ऐसे 4 क्षेत्रों को चिहिनत किया है जिनमें कानून के प्रतिबंध तर्कसंगत माने जाते हैं । ये क्षेत्र हैं- अपराध के क्षेत्र, दीवानी विवादों के क्षेत्र, आर्थिक नियंत्रण के क्षेत्र और समाज-कल्याण व्यवस्था के क्षेत्र ।

स्वतंत्रता की अन्य धारणाएं इस प्रकार हैं:

I. राजनीतिक स्वतंत्रता ( Political Freedom) :

किसी व्यक्ति की राजनीतिक स्वतंत्रता वह है जिसके द्वारा वह अपनी सरकार के चयन, देश के नीति-निर्माण और प्रशासन में भाग लेता है । राजनीतिक स्वतंत्रता लोकतंत्र की रीढ़ है परन्तु लोकतंत्र स्वयं में स्वतंत्रता का प्रमाण नहीं है । हो सकता है कि कोई अन्य शासन प्रणाली अनुमति-मूलक हो और लोकतंत्रीय प्रणाली प्रतिबंधमूलक । अतः वैयक्तिक स्वतंत्रता के लिए राजनीतिक स्वतंत्रता पर्याप्त नहीं है ।

II. आंतरिक स्वतंत्रता ( Internal Freedom) :

इसकी मांग है कि व्यक्ति अपने क्रियाकलाप में स्वयं की इच्छा से निर्देशित हो, क्षणिक आवेग या परिस्थिति के वश में न हो जाए । यह स्वतंत्रता व्यक्ति की अपनी नैतिक कमजोरी या क्षणिक आवेगों के कारण नष्ट हो सकती है । दूसरों के द्वारा बाध्य किए जाने से यह सम्बन्धित नहीं है । अतः यह वैयक्तिक स्वतंत्रता से भिन्न है ।

III. शक्ति रूपी स्वतंत्रता (Powerful Freedom):

इसकी मांग है कि व्यक्ति अपनी इच्छाएँ पूरी करने में सक्षम हो और अनेक विकल्पों में से अपनी पसंद का विकल्प चुने सके । यह स्वतन्त्रता व्यक्ति की कार्यक्षमता पर निर्भर है; दूसरों के अहस्तक्षेप से इसे कुछ लेना-देना नहीं है ।

संभव है कि कोई व्यक्ति विधि के अंतर्गत जो कुछ नहीं कर सकता, उसे करने में वह सक्षम हो, और जो कुछ करने से उसे कोई रोक नहीं रहा है, उसे करने में वह स्वयं असक्षम हो । अतः शक्ति रूपी स्वतंत्रता भी वैयक्तिक स्वतंत्रता से अलग है ।

अतः हेयक का कहना है कि स्वतंत्रता के उचित रूप को पहचानने के लिए उसके मूल अर्थ (प्रतिबंध का अभाव) को सुरक्षित रखना ही श्रेयस्कर है ।

स्वतंत्रता और समानता (Freedom and Equality) :

हेयक का कथन है कि स्वतंत्रता का ध्येय समाज की प्रगति है न कि व्यक्ति का उन्नयन । समाज में किसी विशेष स्वतंत्रता का मूल्यांकन करते समय यह नहीं देखना चाहिए कि वह कितने व्यक्तियों को प्राप्त है बल्कि यह देखना चाहिए कि वह स्वतंत्रता अपने-आप में कितनी महत्वपूर्ण है ।

अतः हेयक स्वतंत्रता के समान वितरण में विश्वास नहीं करता । उसका कहना है कि समाज में कोई स्वतंत्र न हो, इससे तो बेहतर है कि कुछ लोग स्वतंत्र हों । इसी प्रकार सब लोगों को थोडी-थोडी स्वतंत्रता देने से अच्छा है कि कुछ लोगों को पूरी स्वतंत्रता दे दी जाए, चाहे बाकी लोग उससे वंचित ही क्यों न रह जाएँ ।

किसी स्वतंत्रता का महत्व निर्धारित करते समय यह नहीं देखना चाहिए कि उसका प्रयोग कितने लोग कर पाएंगे बल्कि यह देखना चाहिए कि वह सभ्यता को कितनी ऊँचाई तक ले जाएगी ? हेयक की दृष्टि में लोगों का महत्व इसलिए है कि वे सामाजिक उन्नति के साधन हैं, इसलिए नहीं कि वे स्वयं साध्य हैं ।

मिल्टन फ्रीडमैन के विचार:

अमेरिकी अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रीडमैन राजनीति चिंतन के क्षेत्र में ‘अहस्तक्षेप मूलक उदारवाद’ के प्रबल समर्थक हैं ।

राजनीति चिंतन के क्षेत्र में उन्होंने विभिन्न विचार व्यक्त किए , जो निम्नलिखित हैं:

पूंजीवाद और स्वतंत्रता:

फ्रीडमैन ने अपनी पुस्तक ‘Capitalism and Freedom -1962’ के अंतर्गत आर्थिक प्रणाली और राजनीतिक प्रणाली के सम्बन्ध पर विचार करते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि स्वतंत्रता के लिए पूंजीवाद आवश्यक शर्त है । सी.बी. मैक्फर्सन ने कहा है कि फ्रीडमैन ने हर्बर्ट स्पेंसर के पुराने तर्कों को ही नए गा से दोहराने की कोशिश की है ।

उसने लिखा है कि उदारवाद की दृष्टि से व्यक्ति या परिवार की स्वतंत्रता ही किसी सामाजिक व्यवस्था को जांचने की अंतिम कसौटी है । प्रतिस्पर्धात्मक पूंजीवाद व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अनिवार्य है अर्थात् यह आर्थिक स्वतंत्रता की ऐसी प्रणाली है जो राजनीतिक स्वतंत्रता की आवश्यक शर्त है ।

कहने का तात्पर्य यह है कि जो समाज आर्थिक दृष्टि से समाजवादी हो, वह राजनीतिक दृष्टि से लोकतंत्रीय नहीं हो सकता अर्थात् वह वैयक्तिक स्वतंत्रता की रक्षा नहीं कर सकता ।

फ्रीडमैन के शब्दों में, ”राजनीतिक स्वतंत्रता के लक्ष्य की पूर्ति के लिए आर्थिक प्रबंध इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वे शक्ति के जमाव या फैलाव को प्रभावित करते हैं । प्रतिस्पर्धात्मक पूंजीवाद ऐसा आर्थिक संगठन है जो प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक स्वतंत्रता की व्यवस्था करता है और राजनीतिक स्वतंत्रता को भी बढावा देता है, क्योंकि वह आर्थिक शक्ति को राजनीतिक शक्ति से अलग करता है और इस तरह से वह एक प्रकार की शक्ति को दूसरे प्रकार की शक्ति की कमी पूरी करने में सहायता देता है ।”

Essay # 2. स्वतंत्रता के आर्थिक और राजनीतिक आयाम ( Economic and Political Dimensions of Freedom) :

फ्रीडमैन ने स्वतंत्रता के आर्थिक और राजनीतिक आयामों में तार्किक सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न किया है । उन्नत समाजों में उदारवाद को इस चुनौती का सामना करना पड़ता है कि आर्थिक गतिविधियों को वैयक्तिक स्वतंत्रता के साथ कैसे समन्वित किया जाए?

लाखों-करोडों लोगों की आर्थिक गतिविधियों में समन्वय स्थापित करने के दो ही तरीके हैं । पहला तरीका केंद्रीकृत प्रशासन का है, जो बल-प्रयोग पर आधारित है अर्थात् यह ‘सर्वाधिकारवादी’ शासन की तकनीक है । दूसरा तरीका व्यक्तियों के स्वैच्छिक सहयोग का है अर्थात् यह लोकतंत्रीय शासन को बाजार-व्यवस्था के साथ मिलाने की तकनीक है ।

तार्किक दृष्टि से केंद्रीकृत समाजवादी नियोजन में राजनीतिक स्वतंत्रता की कोई संभावना नहीं है जबकि पूंजीवादी व्यवस्था में राजनीतिक स्वतन्त्रता की पूरी संभावना रहती है ।

इस तरह बाजार-व्यवस्था आर्थिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए पर्याप्त तो होगी, परंतु राजनीतिक स्वतंत्रता की समस्या फिर भी बनी रहेगी । अतः फ्रीडमैन के अनुसार, राजनीतिक स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि किसी मनुष्य को उसके सहचर किसी प्रकार बाध्य न कर सके ।

सरकार के कार्य:

फ्रीडमैन वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकतम विस्तार के लिए मांग करता है कि सरकार को केवल वही कार्य करने चाहिए जिन्हें बाजार-व्यवस्था या तो बिल्कुल नहीं कर सकती या जिन्हें करने में इतना ज्यादा खर्च आता है कि उनके लिए राजनीतिक व्यवस्था का उपयोग ही अधिक उपयुक्त होगा ।

सरकार का कार्य बाजार-व्यवस्था को सहारा देना और उसके बचे-खुचे कार्यों को करना है, न कि उस पर नियंत्रण करना, अर्थात् सरकार को कल्याणकारी या विनियमन (Regulation) के कार्यों से कोई मतलब नहीं रखना चाहिए । सरकार का काम कानून और व्यवस्था कायम रखना, संपत्ति-अधिकारों को परिभाषित करना, अनुबंधों को लागू करना, असहाय और अनाथ लोगों को संरक्षण प्रदान करना, आदि है ।

आइजिया बर्लिन के विचार :

बर्लिन के अनुसार राज्य केवल व्यक्ति की नकारात्मक स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है, सकारात्मक स्वतंत्रता की रक्षा करना राज्य के कार्य क्षेत्र में नहीं आता । बर्लिन के अनुसार, नकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ है व्यक्ति को अपने विवेक के अनुसार अपना रास्ता चुनने से रोका न जाए ।

सकारात्मक स्वतंत्रता यह मांग करती है कि व्यक्ति का अपने ऊपर पूरा नियंत्रण होना चाहिए । कोई व्यक्ति कही तक सकारात्मक स्वतंत्रता का प्रयोग कर सकता है यह उसके चरित्र, क्षमता या साधनों पर निर्भर है, राज्य इसमें कुछ भी नहीं कर सकता । राज्य केवल यह कर सकता है कि जहाँ तक हो सके, वह व्यक्ति की स्वयं निर्धारित गतिविधियों पर कोई प्रतिबंध न लगाए ।

यदि कोई व्यक्ति आजाद पंछी की तरह पंख फैलाकर आकाश में नहीं उड सकता, या हेल मछली की तरह समुद्र में तैर नहीं सकता तो यह उसकी अपनी कमी है । ऐसी हालत में वह शिकायत नहीं कर सकता कि उसे राजनीतिक स्वतन्त्रता से वंचित किया जा रहा है अर्थात अपनी आकाक्षाएं पूरी कर पाने की क्षमता या अक्षमता व्यक्ति का अपना मामला है, राज्य का इससे कोई सरोकार नहीं । बर्लिन ने सत्तावाद का खण्डन किया है और उदारवादी-व्यक्तिवादी सिद्धांत को आगे बढाया है ।

Essay # 3. सृजनात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा (C oncept of Creative Freedom) :

मैक्फर्सन ने तर्क दिया है कि पूंजीवाद की नैतिक विफलता यह है कि पूंजीपतियों को ‘अतिरिक्त मूल्य’ (Surplus Value) कमाने का अवसर देता है परंतु स्वत्वमूलक व्यक्तिवाद की नैतिक विफलता यह है कि वह कारीगरों के एक बहुत बड़े वर्ग को अपनी क्षमता और निपुणता का सृजनात्मक उपयोग करने से रोकता है ।

मैक्फर्सन के शब्दों में, ”किसी घोड़े या मशीन की क्षमता की परिभाषा यह होगी कि वह कितना काम कर सकती है, चाहे उससे काम लिया जाए अथवा न लिया जाए परंतु मनुष्य तभी मनुष्य रह सकता है जब वह अपनी शक्ति और कौशल का प्रयोग उन प्रयोजनों की सिद्धि के लिए कर सके जिन्हें उसने अपनी चेतना से खुद निर्धारित किया हो ।”

मैक्फर्सन का मानना है कि पश्चिमी लोकतंत्रीय सिद्धांत में दो तरह के विचार पाए जाते हैं पहला विचार ‘उपयोगिताओं का अधिकतम विस्तार’ है जबकि दूसरा ‘शक्तियों का अधिकतम विस्तार’ पहले विचार के तहत मनुष्य को एक उपभोक्ता के रूप में देखा जाता है, जो एक उपयोगितावादी दृष्टिकोण है ।

दूसरा विचार एक नैतिक संकल्पना है जिसमें मनुष्य को केवल उपभोक्ता के रूप में नहीं बल्कि एक कर्ता या सृजनकर्ता के रूप में देखा जाता है । कार्य करने की क्षमता उसकी मुख्य विशेषता है । मैक्कर्सन ने दो प्रकार की शक्ति में अंतर किया है- दोहन शक्ति (Extractive Power) और विकासात्मक शक्ति (Developmental Power) ।

दोहन शक्ति का अर्थ है कि मनुष्य अपने उद्देश्यों की सिद्धि के लिए दूसरों की क्षमताओं का कितना इस्तेमाल कर सकता है जबकि विकासात्मक शक्ति का अर्थ है कि मनुष्य अपनी क्षमताओं का कितना विकास और इस्तेमाल कर सकता है ?

मैक्कर्सन ने लिखा है कि बाजार समाज के तहत निर्धन लोगों की विकासात्मक शक्ति नगण्य होती है और दोहन शक्ति तो बिल्कुल ही शून्य होती है जबकि पूंजीपतियों की दोहन शक्ति उनकी संपत्ति के मूल्य से जुडी होती है क्योंकि इसके बल पर वे दूसरों की क्षमताओं को खरीदकर अपने लाभ के लिए प्रयोग कर सकते हैं ।

मैक्फर्सन ने विकासात्मक शक्ति के अन्तर्गत मानवीय क्षमता की सूची इस प्रकार दी है- तर्कपूर्ण ज्ञान की क्षमता; नैतिक निर्णय और कार्रवाई की क्षमता; कलात्मक सृजन या सोच की क्षमता, मैत्री और प्रेम की भावात्मक गतिविधि की क्षमता और प्रकृति के उपहार को बदलने की क्षमता । मानवीय क्षमताओं के बारे में यह दृष्टिकोण भौतिक उत्पादन करने वाले श्रम की क्षमता के विचार से कहीं अधिक व्यापक है ।

मैक्फर्सन का मानना है कि मनुष्य की विकासात्मक शक्ति का अधिक विस्तार ही उसकी ‘सृजनात्मक स्वतंत्रता’ की कुंजी है ।

इसके मार्ग में तीन तरह की रुकावटें उत्पन्न हो सकती हैं:

(1) जीवन-निर्वाह के पर्याप्त साधनों का अभाव

(2) श्रम के प्रयोग के साधना तक पहुँच का अभाव और

(3) दूसरों के अतिक्रमण से संरक्षण का अभाव ।

ये सारे अभाव दो प्रकार की समस्याएं उत्पन्न करते हैं- प्रौद्योगिक और भौतिक समस्याएं तथा सांस्कृतिक और विचारधारात्मक समस्याएं । मैक्कर्सन को पूरा विश्वास है कि इन समस्याओं का समाधान बाजार समाज के ढांचे में संभव नहीं है क्योंकि उसमें निर्धन लोगों की विकासात्मक शक्ति निरंतर पूंजीपतियों को हस्तांतरित होती रहती है ।

केवल समाजवादी समाज में ही इनका समाधान संभव है । चूंकि समाजवादी समाज में उत्पादन के साधन सामाजिक स्वामित्व के अधीन होंगे, अतः वे व्यक्तियों को अपनी-अपनी क्षमताओं का सृजनात्मक प्रयोग करने के लिए उपलब्ध होंगे । इस प्रकार के समाज में व्यक्ति बाजार की जरूरतों के मुताबिक अपने कौशल का विकृत उपयोग करने के लिए बाध्य नहीं होंगे ।

Essay # 4. नकारात्मक और सकारात्मक स्वतंत्रता ( Negative and Positive Freedom):

यदि कोई व्यक्ति कुछ करना चाहता हो और कर भी सकता हो, तो उसे वैसा करने से रोका न जाए । इस तरह की स्वतंत्रता को नकारात्मक या औपचारिक (Formal) स्वतंत्रता कहते हैं । इस प्रकार की स्वतंत्रता से यह संकेत मिलता है कि व्यक्ति के कार्य में राज्य की ओर से कोई सहायता नहीं दी जाएगी । व्यक्ति को नकारात्मक स्वतंत्रता प्रदान करते समय राज्य केवल अपने ऊपर संयम रखता है, सामाजिक व्यवस्था से कोई छेड़छाड़ नहीं करता ।

जाहिर है, इस तरह की स्वतंत्रता जनसाधारण के लिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि जब समाज भारी आर्थिक विषमताओं से ग्रस्त हो, तब नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थकों में आइजिया बर्लिन, एफ.ए. हेयक, मिल्टन फ्रीडमैन आदि के नाम प्रमुख हैं ।

सकारात्मक या तात्त्विक स्वतंत्रता  का आशय है कि राज्य द्वारा दुर्बल वर्गों की सामाजिक और आर्थिक असमर्थताओं को दूर करने के प्रयत्न करने चाहिए ताकि सबको अपने सुख के साधन जुटाने का उपयुक्त अवसर मिल सके । इसके लिए सामाजिक-आर्थिक जीवन के विस्तृत विनियमन की आवश्यकता हो सकती है परंतु ये विनियमन और प्रतिबंध समाज के हित में होते हैं ।

साधारणतः राजनीतिक, नागरिक या कानूनी स्वतंत्रता अपने-अपने सीमित अर्थ में नकारात्मक स्वतंत्रता होती है । परंतु सामाजिक-आर्थिक स्वतंत्रता सकारात्मक स्वतंत्रता की मांग करती है । उदाहरण के लिए, भूख-प्यास या लाचारी से स्वतंत्रता सकारात्मक स्वतंत्रता की द्योतक है क्योंकि इसकी स्थापना के लिए राज्य को ठोस प्रयत्न करने होंगे ।

स्वतंत्रता का सकारात्मक पक्ष ही उसे सामाजिक संकल्पना में परिणत कर देता है क्योंकि स्वतंत्रता का यह सिद्धांत उन प्रतिबंधों और विवशताओं को हटाने की मांग करता है जो सामाजिक व्यवस्था से पैदा हुई हों, और जिन्हें हटाना व्यावहारिक भी हो । सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थकों में टी॰एच॰ ग्रीन, एच॰जे॰ लॉस्की, जे॰एस॰ मिल, क्रिश्चियन बे, आदि के नाम लिए जा सकते हैं ।

संक्षेप में, नकारात्मक स्वतंत्रता उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण होगी जो स्वयं अपने जीवन को मनचाहा रूप देने में समर्थ हों परंतु जो लोग सामाजिक-आर्थिक विवशताओं से घिरे हों और अपने जीवन को सवांरने में सर्वथा असमर्थ हों, उनके लिए सकारात्मक स्वतंत्रता की व्यवस्था आवश्यक होगी ।

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The Freedom Struggle – its various stages and important contributors or contributions from different parts of the country

Last updated on September 30, 2023 by Alex Andrews George

Indian Freedom Struggle

The Indian Freedom Struggle is a saga that begins with the onset of British colonialism in the 17th century.

The East India Company initially entered India as traders, gradually expanding their control until they established a full-fledged colonial administration.

With the Battle of Plassey in 1757, the Company secured a decisive victory, marking the commencement of British dominance over Indian territories.

Early Resistance (1757-1857)

From the early days of colonization, various sections of Indian society resisted British rule. The period witnessed a series of uprisings, including tribal revolts, peasant movements, and local mutinies, each signifying discontent and opposition against foreign subjugation.

First War of Independence (1857)

The Revolt of 1857, often termed the First War of Independence, was a significant turning point. Sparked by the introduction of the new Enfield rifles, the uprising saw widespread participation from soldiers, civilians, and royalty alike, reflecting a collective aspiration for freedom.

Formative Years (1858-1905)

Following the Revolt of 1857, the British government officially took control of the East India Company. The subsequent years saw the formation of early political groups and the articulation of constitutional demands, laying the groundwork for an organized national movement.

Swadeshi and World War I (1905-1918)

The Swadeshi Movement, initiated against the partition of Bengal, advocated for the boycott of British goods and the promotion of self-reliance. World War I further intensified the struggle, as expectations for self-governance grew among Indians who contributed significantly to the war effort.

Gandhian Era (1919-1947)

The entry of Mahatma Gandhi transformed the Indian nationalist movement. With his principles of truth, non-violence, and Satyagraha, Gandhi mobilized masses across the country, leading pivotal campaigns like the Non-Cooperation Movement, Civil Disobedience Movement, and the Quit India Movement.

Subaltern and Revolutionary Contributions

Parallelly, subaltern groups, including tribal communities, women, and lower castes, played an indispensable role, fighting for both national independence and social emancipation. The freedom struggle also witnessed the emergence of revolutionary groups seeking to overthrow British rule through armed rebellion.

Towards Independence

The persistent efforts of various factions within the Indian freedom movement eventually bore fruit in 1947 when India gained independence. This triumph was, however, accompanied by the painful partition of the country into India and Pakistan, leaving behind a legacy of both unity and division.

Table of Contents

Early Resistance to British Rule (1757-1857)

The seed of the Indian freedom struggle was sown immediately after the Battle of Plassey in 1757 when the British East India Company took control over Bengal. During this phase, India saw sporadic uprisings mainly due to the oppressive policies of the British.

Major Uprisings

Between 1757 and 1857, numerous revolts erupted in different parts of the country. These were primarily led by local chieftains, peasants, and tribal leaders who were directly affected by the harsh revenue policies and administrative practices imposed by the British. Some notable uprisings include the Sanyasi Rebellion (1763-1800), the Chuar Rebellion in Bengal, and the Paika Rebellion in Odisha in 1817.

Key Figures

  • Rani Laxmibai of Jhansi: Born as Manikarnika, Rani Laxmibai played a crucial role in the Indian Rebellion of 1857. Her courage and leadership were evident as she led her army against the British, becoming a symbol of resistance and an inspiration for future generations.
  • Kunwar Singh: A prominent leader during the Indian Rebellion of 1857, Kunwar Singh led the revolt in Bihar. Despite being in his old age, his commitment to the cause made him a notable figure in the struggle against British rule.
  • Bahadur Shah II: The last Mughal emperor, also known as Bahadur Shah Zafar, played a symbolic role in the 1857 Rebellion. He was declared the emperor of India by the rebelling sepoys, providing a symbolic unity to the rebellion against the British.

The First War of Independence (1857)

The Revolt of 1857 marked a significant turn in the Indian freedom struggle. Often referred to as the First War of Independence, it was a major, but ultimately unsuccessful, uprising against the British East India Company.

The revolt began in Meerut on May 10, 1857, and soon spread to several parts of northern and central India. Major battles occurred in Delhi, Lucknow, Kanpur, and Jhansi, with local rulers, sepoys, and civilians participating actively.

Notable Figures

  • Mangal Pandey: Pandey played a pivotal role in igniting the rebellion. A sepoy in the British East India Company, his act of rebellion in Barrackpore is often considered the first spark of the 1857 uprising.
  • Tantia Tope: A close associate of Nana Sahib, Tantia Tope was a general in the Indian Rebellion of 1857. He was instrumental in the recapture of Gwalior and led his troops with agility and surprise against the British forces.

Formative Phase (1885-1905)

Post-1857, nationalistic sentiments were channelled into forming organized movements. The Indian National Congress (INC) was established during this period, marking the beginning of a new phase in the Indian freedom struggle.

Indian National Congress

Founded in 1885 by A.O. Hume, the INC played a significant role in the freedom struggle. Initially, it was a platform for civil servants to express their views on British policies, but over time, it became the principal leader of the Indian nationalist movement.

Leaders of the Phase

  • Dadabhai Naoroji: Known as the ‘Grand Old Man of India’, Naoroji was a prominent leader of the INC and the first Indian to be a British MP. He was one of the earliest leaders to demand ‘Swaraj’ or self-rule for India.
  • Gopal Krishna Gokhale : A mentor to Mahatma Gandhi, Gokhale was a senior leader of the INC and founder of the Servants of India Society. He advocated for social reforms and was a strong supporter of constitutional means to achieve political self-rule.

Swadeshi Movement (1905-1911)

The Swadeshi Movement was a turning point in India’s struggle for freedom, initiating widespread public protest against British rule for the first time. The Movement began as a response to the partition of Bengal by Viceroy Lord Curzon in 1905, aimed at dividing and ruling by creating religious divisions.

Context and Overview

Curzon’s decision was ostensibly based on administrative convenience, but it was widely perceived as a ‘divide and rule’ strategy. In response, the Swadeshi Movement emerged with a call for the boycott of British goods and the promotion of Indian-made products. It was not just a form of economic nationalism but also a powerful cultural and social revolution.

Prominent Contributors:

  • Bal Gangadhar Tilak : Often referred to as ‘Lokmanya’, Tilak was one of the first and strongest advocates of Swaraj. He was one of the prime architects of modern India and probably the strongest advocate of Swadeshi. Tilak used the movement to represent the major grievances of the people and exposed the British government’s exploitation of the Indian people.
  • Bipin Chandra Pal: Known as the ‘Father of Revolutionary Thoughts’, Pal was part of the Lal-Bal-Pal triumvirate that was at the forefront of the Swadeshi Movement. He advocated the boycott of British goods and emphasized self-reliance and national education as the key to national regeneration.
  • Lala Lajpat Rai : Rai played a pivotal role in the Swadeshi Movement. Being a fervent nationalist, he supported the boycott of British goods and institutions. He played a key role in promoting Swadeshi goods and ideas through speeches and writings, inspiring many to join the movement.
  • Rabindranath Tagore : Nobel laureate and cultural icon, Tagore actively participated in the Swadeshi Movement. He promoted the idea of self-reliance through the use of Swadeshi goods and the boycott of foreign products. He also composed many songs and writings during this time to inspire a sense of nationalism and unity among Indians.

Key Events and Impact

  • Swadeshi and Boycott: The twin strategies of Swadeshi and Boycott were employed. The people were urged to boycott British goods and promote the use of Indian goods. This led to a surge in the Indian indigenous industry.
  • Formation of banks: Many Indians, inspired by the movement, established indigenous banks and insurance companies to strengthen the economic base of the colonized nation.
  • Educational Boycott: There was a widespread boycott of government schools and colleges. National educational institutions like the Bengal National College were established.
  • Spread of the Movement: Initially starting in Bengal, the movement spread to other parts of India, fostering a sense of nationalism and unity among diverse groups of people.

Challenges and Legacy

Though the Swadeshi Movement eventually slowed down due to various reasons including differences within the INC and repressive measures by the British, it left an indelible mark on India’s struggle for freedom. The Movement sowed the seeds for future mass movements led by Gandhi and others, creating a legacy of resistance and self-reliance that would continue until India gained independence in 1947.

Gandhian Era (1915-1947)

The Gandhian Era marks a significant chapter in India’s freedom struggle, embodying non-violent resistance, civil disobedience, and grassroots mobilization. Mohandas Karamchand Gandhi, or Mahatma Gandhi , played an instrumental role during this period, shaping the course of the movement towards attaining Swaraj or self-rule.

The Gandhian Era was characterized by mass participation and the introduction of non-violent resistance as a powerful tool against colonial oppression. Gandhi, with his unique philosophy and methodology, mobilized the common masses, making the struggle for independence truly inclusive and participatory.

Gandhi’s Return & Philosophy

  • Return to India: Gandhi returned to India from South Africa in 1915, immersing himself in the Indian socio-political environment.
  • Philosophy: His philosophy centred on truth, non-violence, and simplicity, with Satyagraha or ‘truth force’ being his method for civil resistance.

Non-Cooperation Movement (1920-1922)

  • Overview: Gandhi launched the Non-Cooperation Movement in response to the Jallianwala Bagh Massacre and the repressive Rowlatt Act.
  • Major Events: Mass boycott of British goods, services, and institutions, including schools, colleges, and courts.
  • Key Contributors: Alongside Gandhi, leaders like Jawaharlal Nehru , Sardar Patel , and Maulana Azad played crucial roles.

Civil Disobedience Movement (1930-1934)

  • Introduction: It was a mass protest against the British-imposed salt tax, exemplified by the Dandi Salt March led by Gandhi.
  • Dandi March: Gandhi’s 240-mile march to the Arabian Sea town of Dandi to make salt, symbolically challenged the British monopoly.
  • Notable Participants: Sarojini Naidu, Maulana Abul Kalam Azad, and Vallabhbhai Patel were active participants.

Quit India Movement (1942)

  • Background: With World War II intensifying, Gandhi sought to leverage the global situation to push for India’s immediate exit from British rule.
  • Main Events: Despite mass arrests of leaders, the movement saw widespread participation across India, with protests, strikes, and demonstrations.
  • Key Figures: Aruna Asaf Ali, Jayaprakash Narayan, and Usha Mehta were among those who played pivotal roles.

Sub-Movements & Other Leaders

  • Khilafat Movement: Working in tandem with the Non-Cooperation Movement, it sought to protect the Ottoman Caliphate, showcasing Hindu-Muslim unity.
  • Subhash Chandra Bose: Though differing from Gandhi’s ideology, Bose contributed immensely to the freedom struggle, notably through the Azad Hind Fauj.

Legacy of the Gandhian Era

  • Philosophy & Tactics: Gandhi’s philosophies continue to inspire movements for civil rights and social change across the world.
  • Constitutional Developments: The era witnessed significant constitutional developments, like the Government of India Act 1935, which shaped India’s political future.
  • Path to Independence: The sustained resistance eventually led to the British conceding to the demand for independence, culminating in the attainment of freedom in 1947.

Subaltern Contributions to the Indian Freedom Struggle

Subaltern contributions refer to the efforts of groups that were socially, politically, and geographically outside of the hegemonic power structure. These groups, often overlooked in mainstream narratives, played a crucial role in the Indian Freedom Struggle.

The subaltern contributions to the Indian Freedom Struggle offer a narrative of resistance and assertion by groups that were marginalized and oppressed. These stories of resilience and struggle are vital to understanding the multifaceted and inclusive nature of India’s journey to independence.

Tribal Movements

  • Overview: Tribal communities resisted British rules that affected their traditional rights and livelihoods.
  • Birsa Munda: Leader of the Munda tribe, Birsa led the Munda Rebellion against British rule, aiming to establish the Munda Raj and remove the British government and missionaries.
  • Alluri Sitarama Raju: He led the Rampa Rebellion of 1922-24 against the British in response to the implementation of the Madras Forest Act, which restricted the tribal people’s access to forests.

Women in the Freedom Struggle

  • Overview: Women participated actively in the freedom struggle, breaking traditional norms and contributing significantly to the movement.
  • Sucheta Kriplani: She was a freedom fighter who worked closely with Mahatma Gandhi during the Partition riots. She was India’s first woman Chief Minister, serving as the head of the Uttar Pradesh government.
  • Kasturba Gandhi: Kasturba was a political activist involved in the Indian Independence Movement and the wife of Mohandas Karamchand Gandhi. She was imprisoned in British jails multiple times along with her husband.
  • Aruna Asaf Ali: Known for hoisting the Indian National Congress flag at the Gowalia Tank maidan in Bombay during the Quit India Movement, Ali was a strong supporter of civil rights and an advocate for women’s empowerment.

Lower Caste Movements

  • Overview: Lower caste movements aimed to eradicate caste-based discrimination and ensure social justice and equality.
  • B.R. Ambedkar : A jurist, economist, and social reformer, Ambedkar campaigned against social discrimination towards the untouchables and supported the rights of women and labourers. He played a pivotal role in drafting the Constitution of India.
  • Periyar E.V. Ramasamy: Founding the Self-Respect Movement and Dravidar Kazhagam, Periyar worked against caste-based discrimination and Brahminical supremacy. He was also a strong advocate for women’s rights.

Other Minority Contributions

  • Overview: Various minority groups also participated actively in the freedom struggle.
  • Maulana Abul Kalam Azad : An Indian scholar and a senior leader of the Indian National Congress, Azad was the first Minister of Education in India. He supported education for the underprivileged and played a significant role in developing the Indian Institutes of Technology (IITs).
  • Sikh Community: The community played a vital role, with figures like Bhagat Singh and Udham Singh becoming symbols of resistance against British rule.

Revolutionary Movements in the Indian Freedom Struggle

Revolutionary movements formed a vital aspect of the Indian freedom struggle, providing a militant alternative to the non-violent approach advocated by Gandhi and the Indian National Congress. These groups sought to achieve independence through armed struggle and subversion against British colonial rule.

The revolutionary movements in the Indian freedom struggle were pivotal in mobilizing and inspiring the masses towards the cause of independence. Although their methods differed significantly from the mainstream, non-violent struggle, the revolutionaries’ courage, and commitment left an indelible mark on India’s journey towards freedom, making them unforgettable heroes of the nation’s history.

Hindustan Socialist Republican Association (HSRA)

  • Overview: Established in 1928, the HSRA aimed to overthrow the British colonial authority through an armed revolution.
  • Bhagat Singh : A prominent leader in the HSRA, Singh is celebrated for his courage and commitment to the independence cause. He was involved in several high-profile actions, including the bombing of the Central Legislative Assembly and the killing of British police officer J.P. Saunders.
  • Chandrasekhar Azad: A mentor to Singh, Azad was involved in the Kakori train robbery and other actions aimed at undermining British rule. He vowed never to be captured alive and kept his promise until his last breath.
  • Rajguru and Sukhdev: Close associates of Singh and Azad, both played critical roles in various revolutionary activities and were eventually executed alongside Singh.

Azad Hind Fauj (Indian National Army – INA)

  • Overview: Founded in 1942, the INA was an armed force comprising Indian prisoners of war and expatriates in Southeast Asia, aiming to overthrow British rule with Japanese assistance during World War II.
  • Subhas Chandra Bose : The most prominent leader of the INA, Bose was a charismatic figure who sought international alliances to support India’s independence struggle. He coined the famous slogan “Give me blood, and I shall give you freedom!” inspiring many to join the INA.

Other Noteworthy Movements & Figures

  • Anushilan Samiti and Jugantar: These were two prominent revolutionary organizations in Bengal involved in a series of bombings, assassinations, and robberies as forms of protest against British rule.
  • Surya Sen: Leader of the Chittagong Armoury Raid, Sen was a school teacher who led a group of revolutionaries in a daring raid on British armouries.
  • Rash Behari Bose: He played a key role in the Ghadar Conspiracy and later collaborated with Japanese forces to support the Indian independence movement during World War II.

Legacy & Impact

While the revolutionary movements did not directly lead to India’s independence, they had significant impacts:

  • Inspiring the Masses: The courage and sacrifices of the revolutionaries inspired many Indians to join the independence movement.
  • Shaping National Consciousness: These movements helped foster a sense of nationalism and urgency among the general population, creating widespread support for India’s struggle for freedom.
  • Pressurizing Colonial Powers: The activities of these groups kept the British authorities on edge, forcing them to deploy significant resources to maintain control.

The Indian Freedom Struggle: Conclusion

The Indian Freedom Struggle is a journey of countless sacrifices, movements, and leaders, each contributing towards the cherished goal of independence.

It’s a testament to the indomitable spirit of the people of India, their enduring fight for justice, and the diverse paths they tread to secure national freedom.

Understanding this struggle is imperative for appreciating the value of freedom and the democratic principles that modern India is built upon.

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About Alex Andrews George

Alex Andrews George is a mentor, author, and social entrepreneur. Alex is the founder of ClearIAS and one of the expert Civil Service Exam Trainers in India.

He is the author of many best-seller books like 'Important Judgments that transformed India' and 'Important Acts that transformed India'.

A trusted mentor and pioneer in online training , Alex's guidance, strategies, study-materials, and mock-exams have helped many aspirants to become IAS, IPS, and IFS officers.

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Essay On Unsung Heroes Of Freedom Struggle In Hindi 500+ Words

Essay On Unsung Heroes Of Freedom Struggle In Hindi

हैलो दोस्तों, इस पोस्ट में “ Essay On Unsung Heroes Of Freedom Struggle In Hindi “, में, हम Unsung Heroes Of Freedom Struggle के बारे में हिंदी में निबंध के रूप में विस्तार से पढ़ेंगे. तो…

चलो शुरू करते हैं…

Essay On Unsung Heroes Of Freedom Struggle In Hindi

परिचय | introduction:.

किसी देश की स्वतंत्रता उसके नागरिकों पर निर्भर करती है। हर देश में कुछ बहादुर दिल होते हैं जो स्वेच्छा से अपने देशवासियों के लिए अपनी जान दे देते हैं।

किसी भी देश को आजाद कराने में स्वतंत्रता सेनानी की अहम भूमिका होती है। भारत अंतहीन स्वतंत्रता सेनानियों की भूमि है।

कई ज्ञात हैं और कई अनसुने हैं। उन सभी के पास आजादी के लिए लड़ने का अपना तरीका है जैसे कुछ ने अहिंसा का रास्ता चुना है। जबकि कुछ हाथों में पिस्टल और तलवार लेकर अपनी वीरता का परिचय देते हैं।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हमारे देश के कई सारे ऐसे युवा भी हैं जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों को भी कुर्बान कर दिया लेकिन हम लोग आज भी उन लोगों से परिचित नहीं है.

भारत के ऐसे कई स्वतंत्रता सेनानी हैं जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान दिया लेकिन उनके नाम से आज भी हम लोग अनजान हैं.

हमारा देश, भारत अंग्रेजों के अधीन था। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने हमारी आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

भारत के कुछ महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानी महात्मा गांधी, भगत सिंह, लाल बहादुर शास्त्री, जवाहरलाल नेहरू और कई अन्य हैं।

लेकिन कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हैं जिनके बारे में शायद हमने नहीं सुना होगा। उनमें से अधिकांश ने भारत को स्वतंत्रता दिलाने में अपने प्राणों की आहुति दे दी। हम उन्हें “भारत के अनसंग हीरोज” कहते हैं।

उनका एकमात्र ध्यान स्वतंत्र भारत को देखना था। लेकिन इस देश के नागरिक के रूप में हमें उनमें से कुछ के बारे में पता होना चाहिए।

यहां कुछ स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बताया गया है जिनके बारे में आपने शायद नहीं सुना होगा। ये गुमनाम नायक भी एक कारण हैं कि हम एक स्वतंत्र देश में रहते हैं।

हमें उनके बलिदानों का सम्मान करना चाहिए और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करते हुए सद्भाव और शांति से एक साथ रहने का लक्ष्य रखना चाहिए।

वे मातंगिनी हाजरा, हजरत महल, सेनापति बापट, अरुणा आसफ अली, भीकाजी कामा, तारा रानी, पीर अली खान, कमला देवी, गरिमेला, तिरुपुर कुमारन, बिरसा मुंडा, दुर्गाबाई आदि थीं।

आइए स्वतंत्रता संग्राम के अनसंग नायकों के बारे में विस्तार से पढ़ें।

Unsung Heroes Of Freedom Struggle Postcard Writing In English

Essay On Unsung Heroes Of Freedom Struggle In English

Essay On My Vision For India In 2047 In 500+ Words

मातंगिनी हज़रा | Matangini Hazra:  

हाजरा एक जुलूस के दौरान भारत छोड़ो आंदोलन और असहयोग आंदोलन का हिस्सा थीं, वह भारतीय ध्वज के साथ आगे बढ़ती रहीं। वह ‘वंदे मातरम’ के नारे लगाती रही।

पीर अली खान | Peer Ali Khan

वह भारत के शुरुआती विद्रोहियों में से एक थे। वह 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा थे और उन 14 लोगों में शामिल थे जिन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका के कारण मौत की सजा दी गई थी।उनके काम ने कई लोगों को प्रेरित किया लेकिन पीढ़ियों बाद, उनका नाम फीका पड़ गया।

गैरीमेला सत्यनारायण | Garimella Satyanarayana

वह आंध्र के लोगों के लिए एक प्रेरणा थे, एक लेखक के रूप में, उन्होंने आंध्र के लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित करने के लिए प्रभावशाली कविताएं और गीत लिखने के लिए अपने कौशल का इस्तेमाल किया।

बेगम हजरत महल | Begum Hazrat Mahal

वह 1857 के भारतीय विद्रोह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थीं। अपने पति के निर्वासित होने के बाद, उन्होंने अवध की कमान संभाली और विद्रोह के दौरान लखनऊ पर भी अधिकार कर लिया। बाद में बेगम हजरत को नेपाल जाना पड़ा, जहां उनकी मौत हो गई।

अरुणा आसफ अली | Aruna Asaf Ali

उनके बारे में बहुत कम लोगों ने सुना है, लेकिन जब वह 33 वर्ष की थी, तब उसने कुछ प्रमुखता प्राप्त की जब उसने 1942 में बॉम्बे में गोवालिया टैंक मैदान में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का झंडा फहराया।

निष्कर्ष |Conclusion

सबसे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों निस्संदेह महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस , भगत सिंह, मंगल पांडे, और इसी तरह, लेकिन ऐसे अन्य भी हैं जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान दिया लेकिन उनके नाम अंधेरे में फीका पड़ गए।

कई स्वतंत्रता सेनानियों थे जिन्होंने अत्याचारी ब्रिटिश शासकों की नजर से नजर मिलाया और एक स्वतंत्र भारत के नारे को बढ़ाने की हिम्मत की।

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  5. Freedom Fighters in Hindi

    Essay on Freedom Fighters in Hindi. बहुत सारे लोगो ने हमें आज़ादी दिलाने के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए, हम देश के लिए उनके किये बलिदानो के लिए सदा ...

  6. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समुदायों की भूमिका पर निबंध

    Role of Tribal Uprising in Freedom Struggle Essay in Hindi: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास एक ऐसे उद्घाटन के साथ जुड़ा हुआ है जिसमें जनजाति समुदायों का महत्वपूर्ण योगदान है। इस लेख ...

  7. आजादी के 75 साल: देश के ...

    75 years of Independence: 5 unsung heroes of India freedom struggle who Lost in history देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें

  8. National Movements and Freedom Struggle

    Here is an essay on the 'National Movements and Freedom Struggle' for class 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on the 'National ...

  9. भारत के स्वतंत्रता सेनानी: 100 Freedom Fighters of India in Hindi

    Notable Indian Freedom Fighters in Hindi. 15. Ram Prasad Bismil राम प्रसाद बिस्मिल. Indian Freedom Fighter 15: ब्रिटिश साम्राज्य को दहला देने वाले काकोरी काण्ड को जिस रामप्रसाद बिस्मिल ...

  10. The Revolutionary Movement in India

    Read this article in Hindi to learn about the revolutionary movement in India. ईस्ट इंडिया कंपनी ने जैसे-जैसे भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार किया भारतीयों का विरोध भी उसी क्रम में बढ़ता गया ...

  11. स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों पर निबंध (Unsung Heroes Of Freedom

    Unsung Heroes Of Freedom Struggle Essay in Hindi - गुमनाम नायक वे हैं जिनकी स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए प्रशंसा और सराहना नहीं की जाती है। कई स्वतंत्रता सेनानियों ने ...

  12. भारत के स्वतंत्रता सेनानियों की सूची

    भारत देश के स्वतंत्रता सेनानी Swatantra Senani / Freedom Fighters of India in Hindi के माध्यम से हमने समस्त वीरो के जीवन परिचय देने का प्रयास किया है|

  13. Independence Day 2021: आजादी की लड़ाई ...

    Independence Day 2021: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी ( Mahatma Gandhi ) की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण थी। उन्होंने सत्य और अहिंसा के पथ पर चलकर बापू ने देश को ( Independence Day ...

  14. भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के नाम, जानकारी Indian Freedom Fighters in

    भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के नाम, जानकारी सूची Name List of Indian Freedom Fighters in Hindi. इस अनुच्छेद मे हमने प्रमुख भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के नाम ...

  15. www.historydekho.com

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  16. India's Struggle for Independence: Indian Freedom Movement

    Learn more about India's Struggle for Independence. Hope you liked the mega article on the Indian freedom struggle. This article on India's struggle for independence is the 6th part of the article series on Modern Indian History. Click the link to read the 6-part framework to study modern Indian History. This is an easy-to-learn approach to ...

  17. स्वतंत्रता पर निबंध: शीर्ष 4 निबंध

    स्वतंत्रता पर निबंध: शीर्ष 4 निबंध | Essay on Freedom: Top 4 Essays in Hindi! Essay # 1. स्वतंत्रता की संकल्पना (Concept of Freedom):राजनीति के एक सिद्धांत के रूप में 'स्वतंत्रता' के दो अर्थ लिए ...

  18. Female Freedom Fighters,5 Women Freedom Fighters: भारत की वो वीरांगनाएं

    Indian Freedom Fighters In Hindi: आज हम बताने जा रहे हैं, पांच एसी महिलाओं के बारे में जिन्‍होंने इस लड़ाई में अहम योगदान निभाया। ... 5 Unknown Women Freedom Fighters Of India;

  19. Hindi Journalism and its contribution in Indian freedom struggle

    Hindi journalism has been the backbone of the freedom struggle through formation & propagation of the nationalist ideology and bulding up of strong national sentiment & consciousness among the masses. Its contribution has always been saluted by the Indian people. ( Author is a technocrat and academician.) Er.

  20. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भूमिका

    भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भूमिका किसी भी राष्ट्र के सुदृढ़ ढाँचे, उस राष्ट्र के निर्माण और रख-रखाव में जितना हिस्सा पुरुष वर्ग का है ...

  21. The Freedom Struggle

    The Indian Freedom Struggle is a journey of countless sacrifices, movements, and leaders, each contributing towards the cherished goal of independence. It's a testament to the indomitable spirit of the people of India, their enduring fight for justice, and the diverse paths they tread to secure national freedom. ... Essay Writing Course for ...

  22. Essay On Freedom Struggle Of India In Hindi

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  23. Essay On Unsung Heroes Of Freedom Struggle In Hindi 500+ Words

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